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________________ ५६ अनेकान्त है। इसमें अनेक महापुरुष हुए है। प्रतिष्ठित मन्दिर पूर्वकाल में अत्यन्त समृद्ध थी। इसकी समद्धि का उल्लेख और मूर्तियां विक्रम की १२वीं शताब्दी से पूर्व की नहीं खजुराहो के स० १०५२ के शिलालेख मे पाया जाता मिलतीं। है। इस नगरी में गगनचुम्बी अनेक विशाल भवन बने विक्रम की १३वी शताब्दी के विद्वान पं० आशाधर हुए थे। यह नागराजाओं की राजधानी थी। इसकी जी ने महीचन्द्र साहु का उल्लेख किया है, जो पौरपट्ट खुदाई मे अनेक नागराजारों के सिक्के वगैरह प्राप्त हुए वंशी समुद्धर श्रेष्ठी के पुत्र थे। इनकी प्रेरणा से 'सागार- हैं। 'नव नागा: पद्मावत्या कातिपुर्या' वाक्य से भी स्पष्ट धर्मामृत' की टीका की रचना की। इनके द्वारा प्रतिष्ठित है। ग्यारहवीं शताब्दी मे रचित सरस्वती कठाभरण मे कई मूर्तिया देवगढ़, आहार आदि मे पाई जाती है । बार- भी पद्मावती का वर्णन है। मालती माधव में भी पद्माहवी (११२२)शताब्दी के उत्कीर्ण पचराई लेख का ऊपर वती का वर्णन पाया जाता है। वर्तमान में ग्वालियर मे उल्लेख किया गया है। १३वी १४वी और १५वी शताब्दी 'पद्मपवाया' नाम का एक छोटा सा गाँव बसा हुआ है के तीन लेख नीचे दिये जाते है : जो देहली से बम्बई जाने वाली रेलवे लाइन पर देवरा स० १२५२ फाल्गुण सुदि १२ सोमे पोर पाटान्वये नामक स्टेशन से कुछ ही दूरी पर स्थित है। इस कारण यशहृद रुद्रपाल साधु नाल भार्या यनि..... "पुत्र सोल पद्मावती नगरी ही पद्मावती पुरवालो के निकास का भीमू प्रणमन्ति नित्यम्। स्थल है। उपजातियो मे यह एक समृद्ध जाति रही है। (-चन्देरी का पार्श्वनाथ मन्दिर) जिसकी जनसख्या चालीस हजार के लगभग है। इसमे सं० १३४५ प्राषाढ सुदि २ बधौ (धे) श्री मूल सघे भी अनेक विद्वान, त्यागी, ब्रह्मचारी और साधु पुरुष हुए भट्टारक श्री रत्नकीर्ति देवा. पौरपाटान्वये साधु याहृद है। वर्तमान में भी है जो धर्मनिष्ठ है, जैनधर्म के परम भार्या वानी सुतश्चासी प्रणमन्ति नित्यम् । श्रद्वाल और धावक व्रतो का अनुष्ठान करते है। इनके (-प्रानपुरा चन्देरी) द्वारा अनेक मन्दिर और मूर्तियो का निर्माण भी हुआ है। स० १२१० वैशाख सुदी १३ पौर पाटान्वये साह महाकवि रइधू जैसा विद्वान कविभी इसी जातिमे उत्पन्न टुडु भार्या यशकरी तत्सत साह भार्या दिल्ली नलछी हुअा था। जिसने सं० १४४८ से १५२५ तक अनेक ग्रन्थों तत्सुत पोषति एतै प्रणमन्ति नित्यम् । की रचना की, और अनेक मूर्तियों की प्रतिष्ठा सम्पन्न की (आहार क्षेत्र लेख) सवत् १४६७, १५०६ और १५२५ की प्रतिष्ठित मूर्तियो ___ सं० १४०३ वर्षे माघसूदी बधे मूल संघे भट्टारक मे कुछ मूर्तिया रइधु के द्वारा प्रतिष्ठित मिलती श्री पद्मनन्दि देव शिष्य देवेन्द्रकीति पौरपट्ट अष्टशाखा है। ग्वालियर किले की मूर्तियों का निर्माण और प्रतिष्ठा प्राम्नाय सं० थणऊ भार्या पुतस्तत्पुत्र स० कालि भार्या रइधू के समय में हुई है। कवि छत्रपति की और कवि आमिणि तत्पुत्र स० जसिघ भार्या महासिरि तत्पुत्र स०... ब्रह्म गुलाल की कविताएं भी भावपूर्ण है। रइध की प्रायः (चन्देरी की ऋषभदेव मूर्ति) सभी रचनाएँ तोमरवशी राजा डूगर सिंह और कीर्ति देवगढ के एक लेख में जो स० १४६३ का है, उसमे सिह के राज्यकाल मे रची गई है। यद्यपि यह उपजाति पौरपाटान्वय के साथ अष्टशाखा का भी उल्लेख है। अन्य उपजातियो की अपेक्षा कुछ पिछड़ी हुई है। फिर अष्टशाखा और चार शाखा का उल्लेख परवारों में ही भी अपना शानदार अस्तित्व बनाए हुए है। ये सभी पाया जाता है। जब तक भारतीय जैन मूर्तियो के समस्त दिगम्बर जैन पाम्नाय के पोषक और वीस पथ के प्रबल लेख संकलित होकर नहीं पाते, तब तक हम उन उप- समर्थक है । प्रचारक है । पद्मावती पुरवाल ब्राह्यण भी जातियों के सम्बन्ध में विशेष कुछ नहीं कहा जा सकता। पाये जाते है। यह अपने को ब्राह्मणो से सम्बद्ध मानते पद्मावती पुरवाल-इस उपजाति का निकास 'पोमा- है। इस जाति के विद्वानो मे ब्राह्मणो जैसी वृत्ति पाई वई' (पद्मावती) नाम की नगरी से हमा है। यह नगरी जाती है। वर्तमान मे इसमे अनेक विद्वान और प्रतिष्ठित
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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