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अनकान्त
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परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्षसिन्धुरविषन।-... . सकलनयविलसितानां विरोषमधनं नमाम्यनेकान्तम् ।।
वर्ष २२ किरण १
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वोर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६ वीर निर्वाण सवत् २४६५, वि० सं० २०२६
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अप्रेल सन् १९६६
तीर्थंकर त्रय स्तवनम्
केवलणारण दिरणेसं चोत्तीसादिसयभूदि संपण्णं । अप्पसरूवम्मि ठिदं, कुथु जिरणेसं रणमंसामि ॥६६ संसारण्णवमहरणं तिहुयरणभवियारण मोक्ख संजणणं । संदरिसिय सयलत्थं पर जिरणरणाहं रामं सामि ॥६७ भव्वजगमोक्खजगणं मुणिद-देविद-णमिद-पथकमलं। अप्प - सुहं - संपत्तं मल्लि जिणेसं णमंसामि ॥६८
-प्राचार्य यतिवृषभ मर्थ-जो केवलज्ञानरूप प्रकाश युक्त सूर्य है, चौतीस अतिशयरूप विभूति से संपन्न, और प्रात्मस्वरूप में स्थित है, उन कुथु जिनेन्द्र को नमस्कार करता हूँ।
जो संसार-ममुद्र का मथन करने वाले और तीनो लोको के भव्य जीवों को मोक्ष के उत्पादक है तथा जिन्होने सकल पदार्थों को दिखला दिया है ऐसे अर जितेन्द्र को नमस्कार करता हूँ।
__ जो भव्य जीवो को मोक्ष प्रदान करने वाले है, जिनके चरण कमलो को मुनीन्द्र और देवेन्द्रो ने नमस्कार किया है, और जो प्रात्मसुख को प्राप्त कर चुके है, उन मल्लि जिनेन्द्र को नमस्कार करता है।