SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ भनेकान्त ३. कर्म प्रकृति संस्कृत-मूल अभयचन्द्र सिद्धान्त साधन के रूप में अपनाया गया है। इस अंक में गांधीजी चक्रवर्ती, सम्पादक अनुवादक डा. गोकुलचन्दजी एम. के सिद्धान्तों और जैन सिद्धान्तों की तुलना की गई है। ए.पी० एच० डी०, प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ काशी। इस अंक में अनेक लेख पठनीय है-जैसे स्वतंत्रता संग्राम पृष्ठ ७५, मूल्य दो रुपया। में हिंसा की भूमिका-श्री उ० न० वर । अध्यक्ष प्रस्तुत ग्रंथ संस्कृत के गद्यसूत्रों में कर्म प्रकृतियों के खादीग्रामोद्योग कमीशन। गांधीजी के जीवन में अहिंसा स्वरूप का वर्णन किया है। प्रकृति, प्रदेश स्थिति और अनु. का प्रयोग, मांसाशन का मन और तन पर कुप्रभाव, दया भाग इन चार प्रकार के बंधों का स्वरूप भी दिया हुआ है। जब हिंसा बन जाती है? अहिंसा के कुछ सूत्र आदि । अनुवाद मूलानुगामी है। ग्रन्थ कर्ता अभयचन्द सैद्धान्तिक इस सामयिक उपयोगी सामग्री प्रकाशन के लिए अणुव्रत चक्रवर्ती है । उनका समय ईसा की तेरवीं शताब्दी है ग्रंथ- समिति धन्यवाद की पात्र है। कार के सम्बन्ध में सम्पादकजी ने जो लिखा है वह प्रायः ५. महावीर जयन्ती स्मारिका-प्रधान सम्पादक ठीक है । अभयचन्द सिद्धान्ती की इस कृति का अनेकान्त पं० भंवरलाल पोल्याका जैन दर्शनाचार्य प्रकाशक राजके पाठवें वर्ष की किरण ११ में मुख्तार साहब ने परिचय स्थान जैन सभा, जयपुर, मूल्य २ रुपया। दिया था। ग्रंथ उपयोगी है। पाठकों को कर्म प्रकृति प्रस्तुत स्मारिका ४ खंडों में विभाजित है। ३ खंड मंगा कर अवश्य पढ़ना चाहिए । की सामग्री हिन्दी भाषा मे दी हुई है और चतुर्थ खण्ड ४. अणुव्रत (विशेषांक)-सम्पादक रिषभदास की अंग्रेजी मे । लेखों का चयन सन्दर और नयनाभिराम रांका, प्रबन्ध सम्पादक हर्षचन्द प्रकाशक रामेश्वरदयाल है। स्मारिका अपने उद्देश्य में सफल होती जा रही है । अग्रवाल, प्र. भा० अणुव्रत समिति छतरपुर रोड, राजस्थान सभा की कर्तव्य परायणता और सम्पादक एवं महरौली, नई दिल्ली ३०, वार्षिक मूल्य १० रुपया। सम्पादक मंडल तथा प्रकाशक की तत्परता शोध-खोज के प्रस्तुत विशेषांक गांधी शताब्दी के उपलक्ष मे प्रका- लेखों से परिपूर्ण स्मारिका, पत्र जगत में अपना महत्वपूर्ण शित किया गया है । यह प्रणुव्रत समिति के नैतिक जागरण स्थान रखती है। श्रद्धेय पं० चैनसुखदासजी का प्रभाव का अग्रदूत पाक्षिक पत्र है । तेरा पंथी सम्प्रदाय के विद्वान सचमुच खटकता है। ऐसे पत्रों में खोजपूर्ण लेखों के प्राचार्य तुलसीगणी के प्रयत्नों का यह सुफल प्रयास है साथ कुछ ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक चित्रों का न कि अणुव्रत का व्यापक प्रचार करने एवं जीवन की होना कुछ खटकता है। परन्तु उनका शिष्य वर्ग उनके अनैतक धारा को नैतिकता मे बदलने मे अणुव्रत एक आदर्श कार्य को कायम रखेगा ऐसी आशा है। ★ दानी महानुभावों से वीर-सेवा-मन्दिर एक प्रसिद्ध शोध-सस्थान है, उसकी लायब्रेरी से अनेक रिसर्चस्कालर अपनी थीमिस के लिए उपयोगी ग्रंथ लेकर अनुसन्धान करते है । लायब्रेरी में इस समय पांच हजार के लगभग ग्रन्थ है । गोम्मट सार जीवकाण्ड की भारतीय जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था कलकत्ता से प्रकाशित बडी टीका की लक्षणावली के लिए आवश्यकता है जो महानुभाव भेंट स्वरूप या मूल्य से प्रदान करेगे इसके लिए हम उनके बहुत प्राभारी होगे । जिन शास्त्र भंडारों में हस्तलिखित ग्रंथों की व्यवस्था नही हो रही है । उनसे निवेदन है कि वे अपने भण्डार के उन हस्तलिखित ग्रंथों को वीर सेवामन्दिर लायब्रेरी को प्रदान कर दे । यहाँ उनकी पूर्ण व्यवस्था है, उससे रिसर्च स्कालरों को विशेष सुविधा हो जायगी । पाशा है मन्दिर और भण्डार के प्रबन्धक अपनी उदारता का परिचय देकर अनुगृहीत करेंगे। प्रेमचन्द्र जैन मंत्री, वीरसेवामन्दिर २१, दरियागंज, दिल्ली।
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy