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ऊन (पावागिरी) के निर्माता राजा बल्लाल
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वही पृष्ठ १११ पर-विक्रमसिंह के राजगद्दी पर उस समय बह्मणवाड का शासक था। (जैन ग्रन्थ प्रशस्ति उसके भ्रातृ पुत्र यशोधवल को स्थापित कराया गया। सग्रह भाग २ प्रस्तावना पृष्ठ ७८) इस घटना की ' पुष्टि तेजपाल के वि० सं० १२८७ की
इससे रणधोरीय के पुत्र बल्लाल ने अर्णोराज को पाबू पहाड़ी प्रशस्ति से भी होती है। इसमें कहा गया है,
भयभीत किया होगा ऐसा लगता है। कुमारपाल चरित में "अर्बुद परमार यशोधवल ने, यह विदित होते ही कि,
ठीक इसके विरुद्ध लिखा है कि, खुद कुमारपाल ने ही बल्लाल कुमारपाल का विरोधी तथा शत्रु हो गया है,
चौहान वशी अर्णोराज की हत्या की थी। लेकिन यह मालवाधिप बल्लाल को हत कर दिया।" इन विवरणो से
कवि सिंह का उल्लेख समकालीन होने से अधिक प्रमाण बलाल नाम के दो भिन्न व्यक्ति प्रतिभाषित होते है।
लगता है। इससे राजा बल्लाल की शक्ति को ठीक कल्पना इतना स्पष्ट होते हुए भी कही-कहीं मालव नरेश को ही उज्जयिनी नरेश समझकर वर्णन मिलता है । जैसा
पाती है। बह्मणवाड के क्षत्रिय भुल्लण भी जब उसके कीति-कौमुदी के अनुसार-कुमारपाल ने गुजरात पर
सामन्त राजा थे, तब ऐसा लगता है कि अर्णोराज की आक्रमण करने वाले मालवराज बल्लाल का शिरच्छेद कर
हत्या कर यह बल्लाल (उज्जयिनीराज) ऊपर बताये दिया था। ऐसा ही अभिप्राय प्रायः व्यासजी का भी
मुजब गुजरात मे आक्रमण कर कुमारपाल के विरुद्ध रहा दिखता है। जबकि वे स्वय पृष्ठ १०२ पर लिखते है कि,
होगा। और इसी समय कुमारपाल ने इसकी हत्या की -उसने (उज्जयिनी नरेश ने) मालव नरेश बल्लाल से । एक सैनिक अभिसन्धि कर ली थी।"
प्रतः ऐसे उज्जयिनी नरेश बल्लाल की ऐतिहासिक इसका समाधान शायद इस तरह हो सकता है कि,
खोज स्वतत्र होनी चाहिए। क्योकि सम्पूर्ण मालव राज्य किसी समय मालवा की राजधानी उज्जयिनी थी। इसलिए पर अधिकार जमाने वाला होगा या न होगा, लेकिन इसी मालव नरेश को उज्जयिनी नरेश कहा गया हो। लेकिन समय 'मालवनरेश' ऐसी उपाधि जिसको होगी और मज या भोज परमार राजामो के समय से मालवा की जिसकी हत्या यशोधवल ने की थी, ऐसे एक बल्लाल राजधानी घारा नगरी थी। यानी ई. सन की ११वीं राजा के इतिहास पर हाल ही खेरला शिलालेख से प्रकाश शदी से पूर्व ही उज्जयिनी का महत्त्व कम हो गया था। पड़ने की सम्भावना है। प्रतः उस समय से मालव नरेश को उज्जयिनी नरेश नहीं ता० २४-१२-६७ को डॉ. य. ख. देशपाण्डे तथा कहा जाता।
प्रो० म० श० वाबगावकर इन्होने नागपुर के 'तरुण भारत' ऐसा हो सकता है कि, धाराधिपति परमार राजामों नाम के दैनिक वर्तमान पत्र मे 'खेरला गांव' (जिला की परम्परा में (उस समय या शद) बल्लाल नाम के वंतूल-म० प्रदेश) के एक शिलालेख पर प्रकाश डाला है। किसी भी राजा का उल्लेख न मिलने से उज्जयिनी नरेश उसमे एक राजा नृसिह-बल्लाल-जैतपाल ऐसी राज परपरा को ही मालव नरेश कह दिया हो।
दी है। लेखन का काल प्रारम्भ में शक स०१०७६ (ई. अतः उज्जयिनी नरेश एक विशिष्ट और निश्चित १ वम्हणवाडउ णामे पट्टणु, परिणरणाह-सेणदल वट्टणु । स्थान के राजा होने से उनकी ऐतिहासिक खोज होनी जो भुजई परिण समकाल हो, चाहिए । इसके लिए कवि सिंह या सिद्ध विरचित प्रद्युम्न रणधोरीय हो सुग्रहो बल्लाल हो ॥ चरित प्रशस्ति संशोध्य हैं। ग्रंथ प्रशस्ति में 'बह्मणवार्ड' जासु भिच्चु दुज्जण-मणसल्लणु, नगर का वर्णन करते हुए लिखा है कि, उस समय वहां खत्तिउ गुहिल उत्तु जहि भुल्लणु ॥ रणधोरी या रणवीरका पुत्र बल्लाल था, जो अर्णोराज लहि सपत्तु मुणोसरु जावहिं, को भयभीत करने के लिए काल स्वरूप था । और जिसका भवु लेउ पाणंदिउ तावहिं ।। मांडलिक मुत्य अथवा सामन्त गुहिल वंशीय क्षत्रिय भुल्लन
पज्जुण्ण चरियं (मादि भाग)