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________________ शीलवती सुदर्शन यहां क्यों बुला रखा है ? उसने कहा पाप इन्द्र के समान जिनके सामने कुछ भी नहीं है। मानों तीन लोक का सुन्दर प्रोजस्वी हैं, इतने दिनों से मैं आपकी चाह मे थी। सौंदर्य इनमें भरा है। रानी ने तत्काल कपिला से उनके बडी कठिनता से प्राज यह योग मिला है । सुदर्शन ने उसे सम्बन्ध में पूछा। कपिला ने कहा-दुनिया बड़ी रंगबिरगी अनेक प्रकार से समझाया तो भी उसके मदन का नशा न है, बाहर से कुछ लगती है और अन्दर से कुछ होती है। उतरा, प्रत्युत वह कहने लगी कि या तो आप मेरा कहना देखने में तो यह पुरुष कितना सुन्दर मौर मनमोहक है । माने अन्यथा मै होहल्ला मचा कर आपको बदनाम कर इसका नाम सुदर्शन है, यह नगर का धनीमानी सेठ है। दूंगी। धर्मनिष्ठ सुदर्शन दोनों ओर सकट में फस तो गया, इसके चार पुत्र है, यह सुन्दरी इसकी पत्नी है, पर वास्तब किन्तु ऐसे विषम अवसर पर भी उसने विवेक और धीरता मे यह हिजडा है। से काम लिया। वह घबडाया नही, प्रत्युत् दृढता के साथ रानी बोली! कपिला तू किस सनक मे बह गई, जो असत्य का प्राश्रय लेकर बोला-तू तो पगली हो रही है। तू बहकी हुई मप्रिय बाते कर रही है। ऐसा होना संभव मै पुरुष नहीं हैं, सन्तान भी मेरी नहीं है, और न मेरे मे नही। कपिला बोली ! रानी जी मैने जो कुछ कहा है वह पुरुषत्व है। बात भरोसा करने लायक जैसी तो नही थी, सब यथार्थ है । रानी! इतना सुन्दर कामदेव-सा रूपकिन्तु सेठ सुदर्शन ने अपने वाक चातुर्य से उसे भरोसा वाला तेजस्वी पुरुष और हिजड़ा यह सभव नही जचता। करा दिया। वह खिन्न होकर ज्यों की त्यो खड़ी रह गई, यह इतना सुन्दर मोर मोहक है, मन को अपनी मोर सुदर्शन ने कहा, जो भी हा मेरी इस गुप्त बात को प्रकट खीचनेवाला ऐसा पुरुष तो मैंने पाजतक देखा ही नहीं, मत करना। कपिला बोली, पाप भी मेरी इस बात को यह तो कही स्वर्ग के देवों से भी बढ़कर है। मागे न बढाना। बस किर क्या था, यह सन्वि दोनो को कपिला ! यही तो बात है जो मन को पाश्चर्य में स्वीकृत हो गई । कपिला का संकेत पाकर बाहर से दासी डाल देती है। ने दरवाजा खोल दिया। सेठ सुदर्शन वहां से इस तरह रानी ! आश्चर्य तो इस बात का है कि तुझे इस निकला जैसे बन्धन में पड़ा हुआ कोई वन्दी अप्रत्याशित मौका पाकर निकल जाता है। घर पहुँचकर उसने सदा के कपिला ! बस, यह मत पूछो। लिए यह नियम कर लिया कि मैं किसी स्त्री के प्रामत्रण रानी को यह बात लग गई, नरमी-गरमी से उसे पर कही नही जाऊगा। पटाया और सारी बात उससे पूछ ली। घटना सुनते ही रानी जोरों से हंस पड़ी और कहने लगी, तेरी जैसी मूरख वसन्त ऋतु की मोहक छटा उपवन में भर गई औरत दुनिया में कोई नही है। और उसके जैसा चतुर थी, मान-मजरी पर कोयलों की कुहुक उठ रही थी। पुरुष नहीं है। एक पुरुष से ठगी जाकर तूने नारी जाति उद्यानों में पुष्पों की बहार पा रही थी। उद्यान कोही नीचा कर दिया। नारी की बद्धि तो बडी पनी पुष्पों की पावन सुरभि से सुवासित हो रहे थे। वसन्ता होती है, पर प्राश्चर्य है उस समय तेरी बुद्धि कहां चली त्सव के दिन राजा और रक सभी वन-क्रीड़ा में रत हो गई। से। सेठ सदर्शन भी अपनी धर्मपत्नी मनोरमा मोर कपिला! ताना मार कर लज्जित हो गई और उत्तर अपने पूत्रों के साथ वन-क्रीडा के लिए भाया था। उसी उप- में ताना कस भी डाला। अच्छा मैं तो मुर्ख ही रही, पर वन में एक भोर रानी प्रभया और पुरोहित पत्नी कपिला प्राप तो चतुर है कुछ कर दिखाएंगी, तभी मैं प्रोगका भी बैठी हुई वसन्त की चर्चा कर रही थी। रानी प्रभया लोहा मानूंगी। व्यर्थ की बातों मे क्या घरावर ने सुदर्शन और उसके परिवार को देखा, वह विस्मय में पुरुष हो भी, तो उसे कोई पथभ्रष्ट नहीं कर सकता। गोते खाने लगी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि मेरे नगर में वह पर स्त्री के विषय में कामविजेता वीतरागी है, वासना इतने सन्दर लोग भी रहते हैं। हम राजा मोर रानी भी मोर प्रलोभन उसे अपने पद से जरा भी विलित नहीं
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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