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________________ २७४, वर्ष २२ कि. ६ अनेकान्त बनाने के लिए सदा ही इनका उपयोग किया है। पाकांक्षी थे। ये सब वैरागी वीर ही थे और इनकी हम विनयपिटक को ही लें। उसके खन्दकों मे नियमों उक्तियों द्वारा दिव्य-प्रकाश और उदाहरणों द्वारा प्रेरणा पौर उपनियमों का प्रवेश दृष्टांतों द्वारा किया गया है उन सब लोगों को मिलती है जो कि आध्यात्मिक लक्ष्य की और उनमें उसी समय का चित्रण है जब कि बद्ध द्वारा साधना करना चाहते है। इन व्यक्तियों में कुछ तो ऐतिउनकी घोषणा की गई थी। चूल्लवग्ग में भी हम अनेक हासिक ही प्रतीत होते हैं । उनके वचनों में यद्यपि उनके उपदेशप्रद कथानक देखते है। उनमे से कुछ तो धर्म- जीवन की घटनाओं का विवरण कुछ भी नहीं मिलता है, परिवर्तन कथानक हैं तो कुछ ऐसे के जो बुद्ध के या बूद्ध फिर भी तदनुसारी अपदान कथाओं और धर्मपाल की के भिक्षों के जीवन के साथ गुंथे हुए है। सौरिपुत्त, ट रिपत. टीका में इन भिक्षु और भिक्षुणियों के विषय में बहुत सा मोगल्लान, महाप्रजापति, उपाली, जीवक आदि के कथा- विवरण या व्यौरा दिया हुआ है। अधिकांश कथाएँ नकों का सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सार्वकालिक विलकुल यांत्रिक सी निरस लगती हैं। फिर भी धार्मिक उपयोग है। सुतपिटक के दीघनिकाय और मज्झिम- और नैतिक उपदेश की कहानियां होने के कारण उनका निकाय में भी हमे बुद्ध जीवन की कुछ घटनाएँ मिलती एक विशेष शहत्व है। नामों में उनका कोई मूल्य नहीं हैं । पयासीसूत्त जैसे संवाद भी उनमें है और ऐसी पौरा- है, परन्तु त्याग की भावना, कर्म-सिद्धांत की क्रिया, धार्मिक णिक कथाएँ और सिद्ध-पुरुषों की जीवनियां भी कि जो और नैतिक मूल्यों की सत्यता और धर्म-परायण जीवन किसी सिद्धांत का प्रदर्शन करती है या कोई धर्माचार की आवश्यकता की छाप इन कथानकों द्वारा प्रास्तिकों बताती है । छन्न, प्रास्सलायन प्रादि की कथाएँ किसी पर पडती ही है। जब विभिन्न सांसारिक स्थिति के घटना के वास्तविक होने जैसी प्रतीत होती है। डाक स्त्री पुरुषों की कथानों पर जिन्होने धार्मिक दृष्टियों से अंगुलिमाल का कथानक. कि जो भिक्ख होकर अहत के प्रेरणा प्राप्त कर भिक्खु जीवन स्वीकार कर लिया था, पद तक पहुँच गया था, राजा मखदेव की जीवनी कि हम दृष्टिपात करते है तो सहज ही समझ जाते है कि जिसने श्वेत केश के देखते ही प्रव्रज्या ले ली थी और वैराग्य के मूल्यों का इन कथा-लेखकों के दृष्टिकोण का रत्थपाल का संसार-त्याग और सांसारिक सुखों की प्रभाव बहुत ही बडा पडा था। इन कथानकों में से कुछ .असारता पर फिर भारी तिरस्कार, ये त्याग के प्रादर्श को नि.सदेह यथार्थ उपदेशी कथा और जीवन को वास्तविक गौरवान्वित करने वाले गेय कथानकों के कुछ उत्तमोत्तम चित्रों का मनोरंजक नमूना ही है । उदाहरण हैं । विमानवत्थू और पेटवत्थू दोनों ही ग्रथों मे फिर दो बौद्ध वर्णात्मक साहित्य के व्यापक प्राचीन एक आदर्श पर ही बनी ऐसी कहानियाँ दी हैई है कि ग्रन्थ है कि जो कि कथा द्वारा धार्मिक और बेरागी लक्ष्यों जिनमें परभव में सुखी या दुखी जीवन विताने और अमूक का-सिद्धान्तों का उपदेश देते हैं। इनमें से पहला ग्रन्थ प्रमुक सुख दुःख पाने के कारणों का चित्रण है। इन सब है जातक और दूसरा है अपदान । बौद्ध परिभाषा के कहानियों का लक्ष्य कर्म सिद्धांत की सार्वभौमिकता और अनुसार 'जातक' उस कथा को कहा जाता है कि जिसमें परम प्रभाविकता सिद्ध करना ही हैं। सम्बन्धित व्यक्ति बुद्ध अपने किसी पूर्व जन्म में कुछ न कुछ भाग भजते ही जब अपने दुर्भाग्य और सौभाग्य के कारणों का विवेचन है और वह भाग मुख्य नायक का हो या किसी अन्य का करता है तो इस प्रकार के वर्णकों का निश्चय ही श्रद्धा- भी हो सकता है यहाँ तक कि एक सामान्य साक्षी तक शील श्रोताचों पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। उस कथानक का भी । कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धान्तों के साथ मिल में जो भी कमी रह गई हो, टीकाकार उसकी खानापूरी बोधिसत्व का सिद्धान्त, किसी भी कहानी को जातक का कर देते हैं । थेर और थेरी गाथाएँ उन प्रवजित मनुष्यों ८. वही, जातक पर लेख ; बी. सी. लाः ए हिस्ट्री प्राफ और स्त्रियों की प्रात्मा की आध्यात्मिक स्खलनाम्रो की पाली लिटरेचर कलकत्ता १६३० भा०१ पृ. २७१ स्वीकृतियों का संग्रह है कि जो शांति प्राप्ति के उत्कट मादि।
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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