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समन्तभद्र प्रतिपादित कर्मयोग - जुगलकिशोर मु० ११।१७५ समन्तभद्र भारतीस्तोत्र - कवि नागराज ११०१६७ समन्तभद्र वचनामृत-युगवीर ११५, १११०३, ११।१३७, ११:१७१, ११।२२८, ११।२६०, ११०३०६, ११३२६, १२३६७
समन्वय भौर अद्भुत मार्ग प्रकार श्री अगरचंद नाहटा १४ । १६२
समय धौर साधना-साध्वी श्री राजमती १६।२७० समयसार की पन्द्रहवी गाथा और श्री कानजी स्वामी
सपादक १२।१७७, १२/१६५
समयसार की पन्द्रहवी गाथा और श्री कानजी स्वामी
जुगलकिशोर मुख्तार १३५
समयसार की महानता श्री कानजी स्वामी ६।३३ समवसरणमे शूद्रो का प्रवेश - जुगलकिशोर मुख्तार
६।१६६
१. सैद्धान्तिक (धर्म, दर्शन, न्याय, व्याकरण)
सम्यग्दर्शन - साध्वी श्री सघमित्रा १८११६६ सम्यग्दृष्टि और उसका व्यवहार-क्षु सिद्धसागर १३।११७ सर राधाकृष्णन के विचार-८।२३४ अर्थसिद्धि और तत्वार्थवार्तिक पर पट्खण्डागम का
प्रभाव - बालचंद सि. शा. १६।३०
सर्वोदय कैसे ही ? - बा. अनन्तप्रसाद B. Sc. ११।२५ सर्वोदयतीर्थ कैलाशचन्द शा० ११।१७ सर्वोदयतीर्थ के नाम पर - श्री जमनालाल १११३८ सर्वोदयतीर्थ और उसके प्रति कर्तव्या. उपसेन न M.A.LL.B. ११।४४
सर्वोदय या निवोदय प्रो० देवेन्द्रकुमार जैन M. A.
११।१६ सर्वोदय या सामाजिकता श्री ऋषभदास राका ११।२३ सल्लेखनामरण-श्री पूज्य १०५ शु. गणेशप्रसाद वर्णी
१२४६
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संख्या का बढ़ाना अनिवार्य है। कालेजों, विश्वविद्यालयों और जंन स्वयं बनें और दूसरों को बनायें
२०१
सागार धर्मामृत पर इतर श्रावकाचारों का प्रभाव - पं. बाल चन्द सि. शा. २६।१५१
साधु कौन ? एक प्रवचन श्री १०५ पूज्य क्षु. गणेशप्रसाद वर्णी १२।१७३
साधुत्व मे नग्नता का स्थान - पं. बंशीधर व्याकरणाचार्य १३।२४१
सासादन सम्यक्त्व के सम्बन्धमे शासन भेदडा. हीरालाल ६२६२, २०१७
सिद्ध हेमचंद्र शब्दानुशासन - श्री कालिकाप्रसाद शुक्ल
एम. ए., व्याकरणाचार्य १५ १४६, १५/२०६
सुख और दुख श्री जमनालाल जैन विशारद ७ १३५ सुख और समता - बा. उग्रसेन वकील ७।७४ संजद पद का बहिष्कार डा. हीरालाल जंन १००३४६,
१०/३६०
संजद पदके सम्बन्धमे अकलंक देव का महत्वपूर्ण श्रभिमत न्या. प दरबारीलाल जैन पा८३
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सजद शब्द का निष्कासन - प. परमानन्द शास्त्री १० ३५० "सजद" शब्द पर इतनी भापत्ति क्यो ? - नेमचन्द बालचद गाँधी वकील ६।३१४
सजय वेलट्ठिपुत्र और स्याद्वाद - पं. दरबारीलाल न्या. ६।५०
संयम धर्म -ला. राजकृष्ण जैन १२।१३६
सयमी का दिन और रात श्री "विद्यार्थी ४१८२ सवेग - मुनि श्री नथमल जी १७।१५७
स्थायी सुख धौर जाति का उपाय ठाकुरदास जैन
१६।१३६
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स्याद्वादका व्यवहारिक जीवन मे उपयोग प. चैनसुखदास न्यायतीर्थ १६ | १६५
स्व-पर-वरी कौन ? सपादक ४१६
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