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________________ मोम् अहम अनकान्त परमागमस्य बीज निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविषानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ दिसम्बर वर्ष २२ किरण ५ । । वीर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६ वीर निर्वाण सवत् २४६६, वि० सं० २०२६ १६६६ . श्री आदिनाथ स्तुति (सवैया मात्रा ३२) ज्ञान जिहाज बैठि गनधर से, गुनपयोधि जिस नाहिं तरे हैं। अमर समूह प्रानि प्रवनीसौं, घसि धसि सोस प्रनाम करे हैं। किधों भाल-कुकरम की रेखा, दूर करन की बुद्धि घरे हैं। ऐसे प्रादिनाथ के प्रहनिस, हाथ जोरि हम पांय परे हैं ॥१॥ काउसग्ग मुद्रा घरि वनमैं, ठाडे रिषभ रिद्धि तजि दीनी। निहचल अंग मेरु है मानौं, दोउ भुजा छोर जिन दोनो। फंसे अनंत जंतु जग चहले, दुखो देखि करुना चित लीनी। काढ़न काज तिन्हें समरथ प्रभु, किधों बांह ये दीरघ कोनी ॥२॥ करनों न कछु करन ते कारज, तातै पानि प्रलंब करे हैं। रह्यो न कछु पायन ते पंवो, ताहोते पद नाहिं टरे हैं। निरख चुके नैनन सब यात, नैन नासिका अनो परे है। कहा सुन कानन यों कानन, जोगलोन जिनराज खरे हैं ॥३॥ -कविवर भूधरदास
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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