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________________ अनेकान्त और उसकी सेवाएँ डा. दरबारीलाल कोठिया प्राज से चालीस वर्ष पूर्व सन् १९२९ की २१ अप्रैल उस पत्र के द्वारा भाप अपने पाश्रम के उद्देश्यों को पूरा की बात है। स्वर्गीय पण्डित जुगलकिशोर जी मुख्तार कर सके और ऐसे सच्चे सेवक उत्पन्न करें जो वीर के 'युगवीर' ने इसी दिन महावीर-जयन्ती पर समाज और उपासक, वीर गुणविशिष्ट और लोक सेवार्थ दीक्षित हों साहित्य के उत्थान एवं लोकहित की साधना के लिए तथा महावीर स्वामी और जैन प्राचार्यों के सत् उपदेशों दिल्ली मे एक 'वीर सेवक सघ' स्थापित किया था। तीन का ज्ञान प्राप्त कर धर्म में दृढ़, सदाचारवान्, देशभक्त तीन महीने के बाद इस संघ ने अपनी प्रवृत्तियो को चरि- हो।" तार्थ करने के लिए २१ जुलाई १९२६ को "समन्तभद्रा- उपर्य क्त परिकल्पना को श्रद्धेय मुख्तार साहब ने श्रम" की स्थापना करके समाज और साहित्य सेवा का 'अनेकान्त' पत्र के द्वारा बहुत कुछ साकार मूतरूप दिया। सकल्प किया था। आश्रम की स्थापना का उद्देश्य और यह हमें उनके सम्पादन-काल की 'अनेकान्त' की फाइलो उसके द्वारा किए जाने वाले कार्यों का निर्देश 'अनेकान्त' से स्पष्ट ज्ञात होता है। उस प्रधेरे युग में, जब समाज म वर्ष १, किरण १, पृष्ट ५३ पर किया गया है। इन कार्यों न अपने धर्म के बारे में जानकारी थी, न तीर्थंकरो प्रार में "अनेकान्त" मासिक का प्रकाशन भी सम्मिलित है, प्राचार्यों के विषय मे विषय मे और न साहित्य के सबन्ध जिसके द्वारा समाज मे नवजागरण एव नवचेतना पैदा में. 'अनेकान्त' ने इन सबकी जानकारी दी। पोर तो करने के अतिरिक्त लुप्त प्राय जैन ग्रथो की खोज, जैना- क्या जैन दर्शन का प्रसिद्ध और व्यापक सिद्धान्त 'अनेचार्यों और जैन तीर्थकरों का परिचय एवं इतिहास, जैन कान्त' भी भल चुके थे। 'अनेकान्त' का प्रकाशन प्रारम्भ पुरातत्त्व और जैन कला का दिग्दर्शन, जैनधर्म तथा जैन करते हए मुख्तार साहब ने । सम्पादकीय मे इसका कुछ दर्शन के स्याद्वाद, अनेकान्त, अहिंसा प्रादि सिद्धान्तों का चित्र खीचते हए लिखा है कि 'खेद है, जैनियो ने अपने प्रचार-प्रसार जैसे महत्त्व के कार्यों के करने की परि- इस प्राराध्य देवता 'अनेकान्त' को बिल्कुल भुला दिया ह कल्पना की गयी थी। इस परिकल्पना का समाज के और वे अाज एकान्त के अनन्य उपासक बने हुए है। उसा नेतामों और विद्वानो ने तो स्वागत किया ही था। देश का परिणाम है उनका सर्वतोमुग्वी पतन, जिसन सा के अनेक नेताओं ने भी उसकी सराहना की थी। राष्ट्र- मारी विशेपतानों पर पानी फेर कर उन्हें ससार का दृष्टि नेता और काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के संस्थापक महा- मे नगण्य बना दिया है । प्रस्तु, जंनियों को फिर स अनन् मना प० मदनमोहन मालवीय का हम यहाँ वह सदेश- कान्त की प्राण प्रतिष्ठा कराने और ससार को अनेकान्त पत्र 'अनेकान्त से उद्धत कर रहे है जिसमे उन्होने प्राश्रम की उपयोगिता बतलाने के लिए ही यह पत्र 'अनकान्त और मासिक पत्र निकालने के प्रति अपनी हार्दिक सहानु- नाम से निकाला जा रहा है।' भूति प्रकट की है : ___ वस्तुतः 'अनेकान्त' ने द्वादशांग श्रु त क्या हैं ? उसके "आपके आश्रम के उद्देश्य ऊँचे है और उनके साथ कर्ता कौन हैं ? महावीर स्वामी कब हुए और उन्होंने ही मेरी सहानुभूति है। आपका एक मासिक पत्र निकालने क्या उपदेश दिया था? उनके बाद कितने केवली और का विचार भी सराहनीय है। मै हृदय से चाहता हूँ कि श्रुतकेवली हुए और वे कौन से हैं ! गुणधर, घरसेन, १. वर्ष १, किरण १, पृ० ४२ कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, पूज्यपाद, प्रकलक पात्रकेशरी, विद्या.
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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