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________________ मलबषपर्याप्तकौर निगोद . हैं वे तो असनाड़ी मोर उससे बाहर सब लोक में ठसाठस है वहाँ अन्य स्थावर जीव भी रहते हैं। ऐसा वृ० द्रव्य' भरे हुए हैं। ये ही नहीं, पृथ्वी प्रादि अन्य सूक्ष्म स्थावर संग्रह की ब्रह्मदेवकृत संस्कृतटीका में लोकानुप्रेक्षा का जीव भी समस्त लोक में व्याप्त है । इसलिए सातवी पृथ्वी वर्णन करते हुए कहा हैके नीचे ही निगोद कहना ठीक नही है, वह तो तीन लोक "तस्मादधोभागे रज्जुप्रमाणं क्षेत्र भूमि रहित निगोदामें सर्वत्र है। वह सातवीं पृथ्वी से नीचे भी है और अन्यत्र भा हमार अन्यत्र दिपंच स्थावरभूतं च तिष्ठति ।" अर्थ-उस सातवीं पृथ्वी .. भी है। तथा ७वी पृथ्वी के नीचे केवल निगोद ही नही के नीचे एक राजप्रमाण क्षेत्र भूमि रहित है वहाँ निगोद पृ०५६, ६२ में तथा सिद्धांतसार संग्रह (जीवराज को प्रादि लेकर पांच स्थावर जीव तिष्ठते है । ग्रंथमाला) पृ० १४४ मे हिन्दी अनुवादकों ने किया स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा की संस्कृत टीका में (पृष्ठ है जब कि मूल और संस्कृत टीका में ऐसा कुछ ५६ में) भी इसी गद्य को उद्धृत करके यही बात दर्शायी नहीं है। (२) जैन बाल गुटका (प्रथम भाग बाबू ज्ञानचन्द प्रश्न :- "सूक्ष्मनिगोद सर्वत्र है यह ठीक है पर ७वीं जैनी, लाहौर) पृ० ३२ असनाली मे नीचे निगोद :- पृथ्वी के नीचे जो निगोद कही जाती है वह बादर निगोद (३) यशोधर चरित्र (लोकानूप्रेक्षा के वर्णन मे, है।" उत्तर :-ऐसा कहना भी उचित नहीं है। क्योंकि हजारी लालजी कृत भाषा) पृ० १६१-"नर्क निगोद बादर जीव बिना आधार के रह नहीं सकते ऐसा सिद्धान्त पाताल विषे जहाँ क्षेत्र जुराज सात बखानी।" है। गोम्मटसार जीवकांड गाथा १८३ में लिखा है कि(४) द्यानतराय जो कृत चर्चाशतक के हिन्दी वच. "प्राधारे थूलामो सव्वत्थ णिरंतरा सुहमा।" बादर जीव निकाकार हरजीमलजी ने पद्य ८, ११, १२, १३ क । आधार पर रहते है और सूक्ष्म जीव सर्वत्र बिना व्यवधान अपनी टीका मे सातवे नरक के नीचे निगोद लिखा के भरे है। स्वामीकार्तिकेयानुप्रेक्षा में भी लिखा है किहै (यह अथ वीर प्रेस, जयपुर से प्रकाशित हुआ है) पुण्णा वि अपुण्णा वि य थूला जीवा हवति साहारा । (५) बनारसी विलास (वि० स० १७०० मे रचित) छन्विह सुहमाजीवा लोयायासे वि सम्वत्थ ॥१२३।। के "कर्म प्रकृति विधान" प्रकरण मे लिखा है :जो गोलक रूपी पचधाम, अडर खडर इत्यादि नाम। ८. और यही बात नरेन्द्रसेनाचार्यकृत-सिद्धांतसार संग्रह ते सातनरकके हेट जान, पुनि सकललोक नभमे बखान अध्याय ६ श्लोक ६ में कही है :-ततोऽधस्ताद्धरा (६) बुद्धि विलास (बखतराम शाह कृत वि० सं० शून्य रज्जुमान सुदुस्तरम् । क्षेत्रमस्ति निगोतादि १८२७) ग्रंथारंभ में जीवस्थान मनेकपा । इसमें निगोद के प्रागे प्रादि रत्न शर्करा बालुका, पंक घूमतम सोदि । शब्द देकर पचस्थावरो का संसूचन किया है । पं० बहुरि महातम सात ये तिनतल कही निगोदि ।।११।। प्रवर गोपालदासजी वरैया ने भी "जैन सिद्धांतदर्पण" प्रथम हिं भूमि निगोदाल लाबी चौड़ी जानि । पृ० १६६ में यही लिखा है :-"सातवी पृथ्वी के सात सात राजू कही, पुनि सुनिए गुणखानि ॥१६॥ नीचे एक राजू प्रमाण अाकाश निगोदायिक जीवों से (७) छह ढाला (जैन पूस्तक भवन कलकत्ता की भरा हुआ है।" प्रत: सातवी पृथ्वी के नीचे एक सचित्र) पृ०५-यद्यपि निगोद सर्वत्र पाये जाते है राजू में सिर्फ निगोद ही बताना बिल्कुल गलत है। तथापि सात नरकों के नीचे खास निगोदों का स्थान है। 6. पं० माणिकचन्द जी न्यायाचार्य ने "तीन लोक का (5) "जैन मित्र" वैशाख सुदि वि. स. २४६४ वर्णन" लेख मे (सरल जैनधर्म) पृ० १०६ में) "त्रिलोक परिचय" लेख मे लेखिका ने लिखा है- लिखा है :-प्रधो लोक में सबसे नीचे एक राजू तक अधोलोक में नीचे सात नरक हैं इस सबसे नीचे बादर निगोद जीव भरे हुए हैं और उससे ऊपर छह निगोद लोक है। राजुओं में सात पृथ्वियां हैं।
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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