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धनपाल की भविष्यदत्त कथा के रचना काल पर विचार
ही अभिशाप था, जिससे जनता को महान् कष्ट का सामना टित हुई थी। इससे यह प्रशस्ति अपना महत्वपूर्ण स्थान करना पड़ा । राजधानीके प्रथम स्थानान्तरण के समय साहू रखती है । अग्रवाल जाति के लिए यह घटना अनुपम है। वाघूभी दिल्ली छोड़कर दफराबाद चला गया । जहा उसने ऐतिहासिक दृष्टिसे उसका महत्व है हो । उक्त विवेचन से अपनी कीर्तिके लिए, अनेक शास्त्र उपशास्त्र लिखवाए, तथा यह स्पष्ट हो जाता है कि उक्त प्रशस्ति मूलग्रथकार धनअपने लिए श्रुत पंचमी की कथा लिखी या लिखवाई थी। पालकी नही है, जब उक्त प्रशस्ति धनपाल रचित नही तब जिसका समय वि० स० १३६३ पौष शुक्ला १२ सोमवार उसके आधार पर डाक्टर देवेन्द्र कुमार ने ग्रथ की १४वीं रोहिणी नक्षत्र बतलाया गया है। यह बादशाह सन् सदी रचनाकाल की जो काल्पनिक दीवाल बनाने का १३२५ (वि० सं० १३८२) मे मुहम्मद शाह विन तुगलक प्रयत्न किया था वह धराशायी हो जाती है। उसके बल के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा था। इसने सन् पर भविष्यदत्त कथा का रचनाकाल विक्रम की १०वीं १३५१ (वि० स० १४०८) तक राज्य किया है । शताब्दी नही हो सकता। किन्तु पूर्व विद्वानों द्वारा सुनि
श्चित दशमी शताब्दी समय ही अकित रहता है, और वह उपसंहार
तब तक अकित रहेगा जब तक कोई दूसरा सही प्रामाप्रस्तुत भविष्यदत कथा प्रशस्ति इसी के राज्यकाल को णिक आधार नही मिल जाता । प्राशा है डा० देवेन्द्र कुमार रचना है । प्रशस्ति मे अकित घटना उसी के राज्यकाल में जी अपनी इस भूल का परिमार्जन करेगे।
भविसयत्तकहा की सं० १३६३ की लिपि प्रशस्ति जिण चलण णमंसिवि थुइ सुपसंसिवि, मागमि थोवउ किपि णिरु । सुह बुद्धि समासउ कलिमलु णासउ, हो दुत्तर ससार तर ॥ इह जंबूदीवि भरहम्मिखित्ति, संपुण्ण मही बहु रिद्धि वित्ति । तह वण्णण को सक्कइ करेवि, तिकारणि कहिउ समुच्चएवि ।। इत्थतरि प्रइ रमणीउ रम्म, णामेण णयरु 'पासीयवण्ण' । पुरमंदिर गामाराम जुत, धण-कणय-समिद्धउ अइ विचित्तु ।। णिवसहि गायर जण बहु महंत, मह रिद्धि विद्धि संपुण्णवत । धम्मघर सुट्ठ महाविणीय, सकल पुर परियण समीय । सुह भुजहि माहि परम भोय, एवं बिहू तहि णिवसंत लोय । 'दिल्ली' पच्छिम दिसि सट्टि कोस, तहिं सावय जण णिवसहि असेस । जिण धम्मरत्त सुहमइ विसाल, मयरद्धरूवे तणु कणय माल । तहि मजिस पसिद्धउ 'प्रयरवाल', णामेण पउत्तउ 'रयणपालु'। तह सुउ 'महणसिंह परोवयारि, तहि गेहि उपण्ण [६] पुत्त चारि । 'दुल्लहु' 'णइवालु' 'सहजपालु', प्रणिक्कु कणि?उ 'पजुणपालु' । तहिं मज्नि जु दुल्लहु गुणगरिठ्ठ, रयणतउ जायउ तेणि सुट्ठ । 'हिमपालु' पढम पुणु 'देवपालु', तह लहुयउ पउत्तउ 'लद्दपालु'। 'हिमपालु' जु इह मज्झम्मि उत्तु, जिण चरण भत्तु अइ चार चित्तु । 'रइयाही' णामें भज्ज भत्त, वय-णियम-शील-संजम सइत्त । दिल्ली मजमम्मि वसंतएण, तहिं जायउ वाघू पुत्त तेण । पत्ता-इत्थतरि लोयई कालपपोयई खीण विहवि संपत्ता ।
दुह सागरि पडियइं माया जडियइं, णियम-धम्म परिचत्तइं॥१॥