SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०० अनेकान्त डॉ० प्राणनाथ विद्यालंकार ने तीथंकर नेमिनाथ को कृष्ण लेख में पार्श्वनाथ का उल्लेख मिला है"। डा० गुस्टाका समकालीन बताया है। जबकि जैन साहित्य में फरोट ने पार्श्वनाथ को १०२ वर्ष की आयु मे ही वीर नेमिनाथ स्पष्ट रूप से कृष्ण के चचेरे भाई बताये प्रभु से २५० वर्ष पूर्व मुक्त होना बताया है"। डा. गये हैं। रामधारी सिंह 'दिनकर' ने भी लिखा है कि तेईसवें तीर्थकर नेमिनाथ का दूसरा नाम अरिष्टनेमि था। तीर्थकर पाश्र्वनाथ थे, जो ऐतिहासिक पुरुष है और ऋग्वेद में-जिसमें बड़े-बड़े घोड़े जुते हुए हैं, ऐसे रथ में जिनका ममय महावीर और बुद्ध, दोनों से कोई २५० वर्ष बैठे हुए प्राकाशपथगामी सूर्य के समान विद्यारथ में पहले पडता है। कुछ अन्य विद्वानो ने भी अनुसन्धान बैठे हुए अरिष्टनेमि नाम का माह्वानन के रूप मे उल्लेख पूर्वक तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ को ऐतिहासिक महापुरुष तथा मिलता है"। यजुर्वेद मे भी नेमिनाथ सम्बन्धी उल्लेख महान् धर्म-प्रचारक बताया है। है"। महाभारत में तो नेमिनाथ को रेवत पर्वत से मुक्ति अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर थे जिनके विभिन्न नामों प्राप्त करने का उल्लेख पाया है। डा. गुस्टाफरोट ने मे से वीर-वर्द्धमान" एवं सन्मति नामों का उल्लेख म० नेमिनाथ के सम्बन्ध में विचार प्रगट किए है कि वे श्री प्र. के जैन अभिलेखों में किया गया है। कृष्ण के समकालीन थे और उनका निर्वाण बीर प्रभू से अभिलेखीय उल्लेखों से-जैन साहित्य मे वणित", ८४००० वर्ष पूर्व अर्थात् ८४५०० ई०पू० मे हुआ। चौबीस तीर्थङ्करो की मान्यता सत्य प्रतीत होती है। म्यायाचार्य पं. महेन्द्रकुमार ने नेमिनाथ को श्रीकृष्ण का गुरू अभिलेखों से यह भी प्रमाणित हो जाता है कि वे प्रथम बताया है"। तेवीसवे तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ थे। उदयगिरि अहंन् ऋषभ ही थे, जो अवपिणी काल में अवतरित (विदिशा) के गुप्त सं० १०६ (ई. सं. ४२६) के गुड़ा- हुए थे । अभिलेखो मे जिन कतिपय तीर्थङ्करो के उल्लेख मिले है, उनसे स्पष्ट है कि प्राचीन कालीन तीर्थङ्करो की २८. टाइम्स ऑफ इडिया, १६ मार्च १९३५ ई०पू०६। ३५. राज्ये कुलस्याभिविवर्द्धमाने पभियुतवर्षशतेऽथ२९.पं.कैलाशचन्द्र शास्त्री, जैन धर्म : श्री. भा. दि. मासे सुकार्तिके बहुलदिनेथ पचमे गुहामुखे स्फुटविकटो संघ, चौरासी, मथुरा; १९५५ ई. पू. १५ । कटामिमा जितद्विषो जिनवरपार्श्वसज्ञिकाम् । ३०. तवा रथ वयद्याहु वेमस्तो मेरश्विना सविताय नव्य । इण्डियन एण्टीक्वेरी जि० ११, पृ० ३१० । भरिष्टनेमि परिद्यामियान विद्यामेष वृजन जीरदानम् ॥ ३६. ट्रेक्ट म०६८ वही: पृ०७।। ऋग्वेद, मडल २, अ० ४, व २४ । ३७. सस्कृति के चार अध्याय : पृ० १३० । ३१. वाजस्यनु प्रसव माभूवेमा च विश्वा भुवनानि सर्वत. ३८. (अ) डा. हेनरी, फिलासफी आफ इण्डिया १० स नेमिराजा परियाति विद्वान् प्रजा पुष्टि वर्धयमानो १८२-१८३ ।। अस्मै स्वाहा ।" यजुर्वेद, अध्याय ६, मत्र २५ । (ब) प्रो० पायङ्कर, स्टडीज इन साउथ इण्डियन जैनिज्म, जि० १, पृ० २। ३२. रेवताद्री जिनो नेमि यंगादिविमलाचले । ३६.स० १२०३..... श्री वीर-वद्धमानस्वामि प्रतिष्ठापिक: ऋषीणामाश्रमादेव मुक्तिमार्गस्य कारणम् । महाभारत ......" अहार अभिलेख . स. १२०३, अनुक्र.१ । पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, जैनधर्म वही, पृ० १६ । ४०. “सोऽय जिनः सन्मतिः" ३३. ट्रेक्ट सं० ६८, अ. वि. जैन मिशन अलीगंज, एटा, एपि० इ० जिल्द २ : पृ० २३२-२४० अभि० .८ । वही, पृ०७। ४१. श्री यतिवृषभ; तिलोयपण्णत्तिः भाग २; श्री जैन ३४. रामधारी सिंह दिनकर, संस्कृति के चार अध्याय । सस्कृति सरक्षक संघ शोलापुर, १९४३ ई० पृ. चतुर्थ संस्करण, १९६६ ई. राजेन्द्रनगर, पटना ४, १०१३ । पृ०७॥ ४२. सूत्रधार मण्डन; प्रतिमाशास्त्र : बही; पृ० २०३-२०४
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy