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तीर्थपुरों की प्राचीनता
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हए हैं। जिनमें क्रमशः सं० ११४५ और सं० १२७८ उन्हें प्रणाम किए जाने का उल्लेख है। बीसवें तीर्थकर तिथियां दी गई हैं। नववें तीर्थङ्कर पुष्पदन्त-जिन्हें सुविध- मुनिसुव्रतनाथ जिनके उल्लेख मउ," पोर खजुराहो के नाथ भी कहा गया है --की प्रतिमा के पासन पर सं० अभिलेखोंमें मिलते हैं, राम-लक्ष्मणके समकालीन बताए गए १२०८ का अभिलेख मिला है। इसी प्रकार पन्द्रहवें हैं।" योगवशिष्ट में रामचन्द्रजी ने अपने विचार इस प्रकार तीर्थकर धर्मनाथ प्रतिमा के पासन पर उत्कीणित सं०
प्रकट किए हैं, कि "न में राम हैं, न मेरी कोई इच्छाएं है" १२७१ का एक अभिलेख होसंगाबाद से भी प्राप्त हुआ
और न मेरा मन विषयों की मोर ही प्राकर्षित है। मैं तो है।" सोलहवें तीर्थडुर शान्तिनाथ से सम्बन्धित म०प्र०
'जिन' के समान अपनी मात्मा में ही शान्ति स्थापित से प्राप्त जैन अभिलेखों में बहोरीबन्द, खजुराहो,' दूब- करना चाहता हूँ।" योगवशिष्ट के इस उल्लेख से प्रमाकुण्ड" और अहार" से प्राप्त मूर्तिलेख मुख्य है। इनकी
णित होता है कि रामचन्द्र के समय में कोई जैन मुनि प्राचीनतम तिथि १० वी शती ज्ञात होती है । सत्रहवे
थे जो प्रात्म-शान्ति के मार्ग में लवलीन थे। जिनकी तीर्थङ्कर कुन्थनाथ से सम्बन्धित सं० १२०३ का पहार"
प्रात्म बुद्धि से प्रभावित होकर रामचन्द्र जी के मन में भी से और स० १२६३ का ऊनसे प्राप्त अभिलेख मुख्य है।
'जिन' के समान शान्ति प्राप्त करने की इच्छा प्रकट हुई।
वे 'जिन' काल निर्धारण करने पर मुनिसुव्रतनाथ ही बताये अठारहवें तीर्थङ्कर अरनाथ या अरहनाथ का एक
गए हैं। बाइसवें तीर्थकर नेमिनाथ थे जिन्हे मऊ से प्राप्त प्रतिमा लेख स० १२०६ का अहार से मिला है जिसमे
सं० ११६६ के अभिलेख में जगत का स्वामी, संसार के १२. श्री सूत्रधारमण्डन, प्रतिमाशास्त्र : अध्याय ६ १०
अन्तक और तीनो लोकोंकी शरण तथा जगतका मंगलकर्ता ३०३-२०४।
कहा गया है। डॉ. फ्यूरर ने नेमिनाथ को बाइसवा १३. मेमॉयर्स अफ दि माकिलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया,
जैन तीर्थङ्कर ऐतिहासिक रूप से स्वीकार किया है। पत्रिका ११, ई० १९२२, पृ० १४ ।
२१. स० १२०६, गोलापूर्वान्वये साह सुपट...अरहनाथं १८. नागपुर मग्रहालय में संग्रहीत
प्रणमन्ति नित्य" प्रहार अभिलेख सं० १२०९, अनु१५. तस्य पुत्र महाभोज धर्मदानाध्ययनरतः ।
क्रमाङ्क ७. तेनेदं कारितं रम्यं शान्तिनाथस्य मन्दिरम् ।
२२. मुनिसुव्रतनाथस्य बिबं त्रैलोक्य पूजितः। इन्स्क्रिप्शन्स अॉफ दि कलचुरि चेदि एरा, जि. ४, कारितं सुतहवेनेदंमात्मश्रियोभिवृद्धये ।। स० ११६६ भाग १ पृ० ३०६ ।
वैसाख सुदि २। धुवेला संग्रहालय में संग्रहीत, प्रविष्ट १६. मं०१०८५...श्री सिवि चनुयदेव : श्री शान्तिनाथस्य क्र. ४२।
प्रतिमाकारी । कनिंघम रिपोर्ट, जि० २१ पृ६१ २३. डॉ० मस्टाफरोट, ट्रेक्ट सं०६८, श्री म. वि. जैन १७. एपि० इ० जि० २ १० २३२-२४० । अभि० मिशन, अलीगंज, एटा, पृ०७॥ पंक्ति ।
२४. नाहं रामो न मे वाञ्छा भावेषु न च मे मनः । १८. ताभ्यामशेष दुरितीघशमैकहैतु निर्मापितं भुवनभूषण
शान्ति मास्थातुमिच्छामि स्वात्मन्येव जिनो यथा । भूतमेतत् श्री शान्ति चैत्यमिति नित्य सुखप्रदानात् -योगवशिष्ठ, भ० १५, श्लोक ८ । मुक्तिश्रियोवदनवीक्षणलोलुपाभ्याम् । प्रहार अभिलेख
२५. क्षु०पार्श्वकीति, विश्वधर्म की रूपरेखा, वही : पृ.३१ । सं० १२३७ ।
२६. कारितश्च जगन्नाथ (नेमि) नाथो भवान्तकः । १६. सं० १२०३ गोलापूर्वान्वये साहु सुपट तस्य पुत्र मे (लोक्यश) रणं देवी जगन्मंगल कारकः ॥ सं.
शान्ति तस्य पुत्र यशकर कुंथुनाथ प्रणमन्ति नित्यं" ११६९ वैसाख सुदि २। धुवेला संग्रहालय में संग्रवही : सं० १२०३ अनुक्रमाङ्क ३ ।
हीत, प्रविष्टि क्र.७। २०.५० परमानन्द शास्त्री, मनेकान्त वर्ष १२, १० १९२ २७. एपि.इं. जि. १, पृ. ३८६ ।