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अग्रवालों का जैन संस्कृति में योगदान
परमानन्द शास्त्री
उनतालीसवे विद्वान बाबू दयाचन्द जी गोयलीय है। साहित्य-सेवा-पापने साहित्य सेवा के लिये स्वार्य इनका जन्म गढी अबदुल्लाखा जिला मुजफ्फरनगर में त्याग किया था। प्राप के द्वारा लिखित बाल बोष जैनधर्म लाला ज्ञानचन्द्र जी अग्रवाल के यहा स० १९४५ मार्गशीर्ष ४ भाग पाठशालामो मे पाठय पुस्तकों में अब तक निहित पूर्णिमा के दिन हुअा था। आपने सन् १९०७ मे देहरादून है। आपने सदाचार, मितव्ययता, सादगी, चारित्रगठन, से प्रथम श्रेणी म मैट्रिक क्वीन्स कालेज बनारस से एफ० देशसेवा, पिता के उपदेश, शान्ति वैभव, सुख की प्राप्ति ए. और महागजा कालेज जयपुर से बी० ए० की का मार्ग, मुक्तिमार्ग, मुख सफलता और उसके मूल परीक्षाएं अच्छे नम्बरो से पास की थी। पाप की विद्यार्थी सिद्धान्त सदाचारी गलक, विद्यार्थी जीवन का उद्देश, अवस्था में देहरादून में ही सभा सोसाइटियो को देखकर अच्छी प्रादते डालने की शिक्षा आदि अनेक उत्तम पुस्तकें समाज सेवा के भाव पैदा हो गए थे । और आपने स्कूल में लिखी है। इनमे अधिकाश पुस्तके प० नाथूराम जी बम्बई एक जैन सभा स्थापित की थी। इन्ही दिनो पाप देहरादून ने प्रकाशित की है। के लाला चिरजीलाल जी सस्थापक जैन अनाथाश्रम के वे निर्भीक लेखक, जोशीले वक्ता, सुयोग्य शिक्षक सम्पर्क में आये, और उर्दू जैन प्रचारक मे लेख लिखने और निश्वार्थ-समाज-सेवो थे । खेद है कि प्रापका ३० वर्ष लगे। बनारस और जयपुर के वातावरण से आप मे की अल्पायु में ही अक्टूबर सन् १९१६ युद्ध ज्वर में स्वर्गजैनधर्म के अध्ययन करने की रुचि हो गई। पोर समाज- वास हो गया । आपकी साधना, दृढ निश्चय कर्मठ कार्यसेवा के भाव भी सुदृढ हुए।
कर्ता, बहुत परिश्रम ,और अपार मनोबल से संयुक्त थे । आपने ललितपुर जिला झासी मे सैकण्ड मास्टर का आपकी महान सेवाए कभी भुलाई नही जा सकती। पापका कार्य किया, वे वहा की अभिनन्दन जैन पाठशाला के मत्री साहित्य प्राप की कीर्ति का उन्नायक है। थे, । उन्होने अपने मत्रित्व काल मे पाठशाला की खूब चालीसवे विद्वान ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी है, जो उन्नति की । वह समय मापके अर्थ सकट का था। आपने लखनऊ के निवासी थे। उनके पिता का नाम लाला वकालत करने का विचार किया किन्तु प० नाथूराम प्रेमी मक्खनलाल और माता का नाम श्रीमती नारायणी देवी प्रादि मित्रों के निषेध करने पर उसका विचार छोड था। आपका जन्म काला महल मे सन् १८७६ मे हुमा दिया । पश्चात् वे लखनऊ हाईस्कूल मे आ गए, और था । अापने १८ वर्ष की अवस्था मे मैट्रिक्युलेशन की उनका अर्थसकट भी दूर हो गया।
परीक्षा प्रथम श्रेणी मे पास की। तथा ४ वर्ष बाद रूडकी आप ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम हस्तिनापुर की प्रबन्ध- इजीनियरिग कालेज से अकाउन्टेन्ट शिप की परीक्षा पास कारिणी के सदस्य भी रहे थे । और आश्रम के वार्षिक की। परीक्षा पास करने के बाद गवर्नमेन्ट सर्विस मिल उत्सवों पर चन्दे की अपील द्वारा प्राश्रम को अर्थ प्राप्ति गई। यह स्वभाव से ही चचल, कार्य करने मे पट, कराते थे । भारत जैन महामण्डल के जीवदया विभाग के उदीयमान विचारक और लेखक थे। उनके विचारों का पाप मत्री थे, पापने जीवदया पर अनेक उपयोगी ट्रैक्ट पता सन् १८६६ के २४ मई के हिन्दी 'जन-गजट' में लिखे थे । जैन हितपी में आपके अनेक लेख छपे है । उनमे प्रकाशित प्रथम लेख के निम्न अंश से चलता है-"ए कुछ अग्रेजीके अनुवाद रूपमे भी है । जाति प्रबोधक नामका जैनी पडितो | यह जनधर्म प्राप ही के प्राधीन है। इसकी पत्रभी आपने निकाला था। और उसे तीन वर्ष तक चलाया। रक्षा के लिये द्योती (ज्योति) फैलाइये, सोतो को