SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४ अनेकान्त श्वर रायवादि पिवामहा? सकल विद्वज्जन सार्व भौम सा. विषय मे चर्चा की है ऐसा पता चला है, मगर मेरे सामने भिमान वादीभ सिंहाभिनय-त्रै :- [विय] विश्व सोमसेन वह अक नहीं है । लेकिन उनके लिखाव से इतना तो स्पष्ट भट्टारकाणामुपदेशात् श्री बघेरवाल जाति खटणाड गोत्र है कि उनको जो अपूर्ण लेख मिला, उमसे उनकी जो गलत अष्टोत्तर शत महोतुगशिखरबद्धप्रसादसमुद्धरणधीर त्रिलोक धारणा हुई, वह उनके पूर्व अनुश्रुतियो से एकदम उलटी श्री जिनबिबोद्धारक अष्टोत्तर शत श्री जिन महा थी। और उनके लिखाव को ही छाप उत्तरवर्ती लेखको प्रतिष्ठा कारक अष्टादस स्थाने अष्टादस कोटि श्रुतभडार के लिखाव पर पड़ी। संस्थापक, सवालक्षबदी मोक्ष कारक, मेदपाट देशे चित्रकूट मुनि श्री के हो शब्दो में मै यही कहूंगा कि बास्तु व नगरे श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र चैत्यालय स्थाने निज भुजो शिल्पक शिल्प की दृष्टि से आपने उसका काल कैसा निश्चित पार्जितवित्तबलेन श्री कीर्तिस्तभ प्रारोपक शाह जिजा किया? या उस लेख से ही वह अनुमानित किया ? लेख सूत साह पुनसिंहस्य 'साहदेउ तस्य भार्या पुई तुकार । से निर्माण शैली पर प्रकाश पडना शिल्प शास्त्रज्ञो के लिए तयोः पुत्रः चत्वारः । तेषु प्रथम पुत्र साह लखमण....." प्रधानुकरण होगा । तो भी, जिस लेख से इसके इतिहास चैत्यालयोद्धरण धीरेण निजभुजोपाजितवित्तानुसारेण महा पर प्रकाश पड़ता है वह लेख और भी प्रकाश में आया है। यात्रा प्रतिष्ठा तीर्थ क्षेत्र......। यह नया मिला हुआ लेख पीतलके नन्दीश्वर ५२ चैत्यालय "दुर्भाग्य से यह लेख इतना ही प्राप्त हुआ है । कारण की प्रतिमा पर का है, जो अकोला शहरके सेनगण दिगबर की आगे का भाग प्रयत्न करने पर भी मैं न पन सका। जैन मन्दिर में सुरक्षित है । लेख इस प्रकार है-'स्वस्ति घिस सा गया है। फिर भी उपलब्ध ग्रन्थ से एक चलती श्री सवत १५४१ वर्षे शाके १४०६ प्रबर्तमाने मंत्रि...... हुई भ्रामक परपरा को प्रकाश मिला। सवत्सरे जेष्टमासे शुक्ल पक्षे ११ दिने भानुवासरे..... (२) भट्टारक संप्रदाय पृष्ठ ३१- देवसेन के पट्ट (स्वाति) नक्षत्रे पहिरवाद्या योगे, गरकरने मत गरौ वह्नाड पर सोमसेन अधिष्ठित हुए । विदर्भ स्थित कारजा शहर में देश कारजा नगरे श्री पार्श्वनाथ चैत्यालये श्री मूलसघे इनके शिष्य बघेरवाल जातीय पूना जी खटोड में रहते थे। (इसके आगे सवालक्ष बदी मोक्षदायक तक मजमून एक ही आपने १०८ मन्दिर बनवाए थे। और १: स्थानो पर है।)...चित्रकूट नगरे श्री कीर्तिस्तभस्यारोपक सा. जिजा शास्त्र भडार स्थापित किए थे । चित्तौड किले पर चद्रप्रभ मूत सा. पूनसिहस्य अनाये सा. देकु (३) भार्या तुकाई मन्दिर के सामने आपने एक कीर्तिस्तभ स्थापित किया तयो पुत्राश्चत्वारः । तेषा मध्ये प्रथम पुत्र साह लखमन था। आपका यह वृत्तान्त जिस लेख से मिलता है उसमे भार्या-बाई ज सुभाई सुत संघवी हसराज भार्या हिराई । १४६१ क अक है जा गलत है। द्विनीय पुत्र साह निमा। तृतीय पुत्र सघवी वीरु भार्या क्योकि इन दोनो मे उक्त क्रोधिन सवत्सर नही पाता है। सघवीनी गौराई । चतुर्थ पुत्र सहदेव भार्या सहबाई ।' यह विषय अनुसंधान की अपेक्षा रखता है। यात्रा प्रतिष्ठा तीर्थ क्षेत्र...... रक्षा शालिनः ।..... सघा(३) भारतीय इतिहास : एक दृष्टि पृष्ठ ४४३-१४वी धिपति वीरु.... परमाभ्युदय बिंबोदित""जिनालय प्रतिशती के उत्तरार्ध मे मेवाड के बघेरवाल जैनी साह जीजा ष्ठाप्य प्रणमन्ति।" ने चित्तौड मे प्राचीन चद्रप्रभु चैत्यालय के निकट एक इस मूर्ति लेख से इतना तो स्पष्ट हुमा कि भ० सोमसतखना उत्तुग एव अत्यन्त कलापूर्ण कीर्तिस्तभ या मान• सेन साह जीजाके गुरु नही थे, किंतु वे सधाधिपति बीर के । कहा जाता है इस धमात्मा सेठ ने गुरु थे। क्योंकि यह प्रतिष्ठा संघवी वीरु ने की थी। वे १०८ प्राचीन मन्दिरो का जीर्णोद्धार, उतने ही नवीन साह लखमन के तृतीय पुत्र थे । और लखमन साह पुनसिंह मन्दिरो का निर्माण एवं प्रतिष्ठा की थी। उसके सुरु के ग्राम्नाय वाले वंश मे उत्पन्न हुए थे। पाम्नाय शब्द से दिगबराचार्य सोमसेन भट्टारक थे। स्पष्ट होता है कि साह जीज़ा सुत पुनसिंह का सिर्फ कीर्ति मुनि कांतिसागर ने अनेकान्त वर्ष ८ पृष्ठ १४२ में इस व नाम ज्ञात था। और साक्षात् सम्बन्ध बताने जैसी परं
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy