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________________ अनेकान्त और पर्वत तथा बारह भील भार नदियों के उल्लंख है। वन, मन्दर, मलय, मनिमनोहरमेखला, विन्ध्य, शिखण्डिइसमें कुछ सामग्री ऐसी भी है जा सोमदेव के युग में ताण्डव, सुवेना, मेतबन्ध और हिमालय का उल्लेख किया अस्तित्व में नही थी। एसी सामग्री को सोमदेव ने परम्पग है। इन सबके विषय में इस परिच्छेद मे जानकार दी में प्राप्त किया था। मैंने इस सम्पूर्ण सामग्री का पाच गई है। परिच्छेदों में विवेचन किया है। परिच्छेद पाच में यशस्निलक में उल्लिखित सगेवर पहले परिच्छेद मे यशस्तिलक में उल्लिम्बित सेनालीम तथा नदियों का परिचय दिया गया है । सोमदेव ने मानस जनपदो का परिचय है। अवन्ति, अश्मक, अन्ध्र, इन्द्रकच्छ, या मानसरोवर झाल तथा गगा, यमुना नर्मदा, जलवाकम्बोज, कर्णाट या कर्णाटक, करहाट कालग, थकाशक, हिनी,गोदावर्ग, चन्द्रभागा, मरस्वती, मरयू, लोणा, सिन्धु काची, काशी, कीर, कुरुजागल, कुन्तन केरल, कोग, और सिप्रा नदी का उल्लेख किया है। इस परिच्छेद में कौशल, गिरिकूटपत्तन, चेदि चेग्म, चोल, जनपद, डहाल, इनके बारे में जानकारी प्रस्तुत की गयी है। दशाणं, प्रयाग, पल्लव, पाचान, पाण्डु या पाण्डय, भोज बर्बर, मद्र, मलय, मगध, यौधेय, लम्पाक, लाट, वनवामि, पचम अध्याय यग स्तिलक की शब्द सम्पत्ति विषयक है। यशस्तिलक मम्कृत के प्राचीन, अप्रमिद्ध, अप्रचलित बग या बगाल, बगी, श्रीचन्द, थीमाल, मिन्धु, सूरसेन, नथा नवीन शब्दो का एक विशिष्ट कोश है। मोमदेव ने सौराष्ट्र, यवन नथा हिमालय इन मेनानिस जनपदों में से प्रयानपूर्वक से अनेक शब्दो का यशम्तिलक मे मग्रह किया यशस्तिलक में कई एक का एक बार और अधिकाश का है। वैदिक काल के बाद जिन शब्दों का प्रयोग प्राय एक से अधिक बार उल्लेख हया है । इस परिच्छंद में उन ममान हो गया था जो शब्दकोश ग्रन्थो में तो पाये है, म्बका परिचय दिया गया है। किन्तु जिनका प्रयोग साहित्य में नहीं हुआ या नही के परिच्छेद दो में यशस्निलक उल्लिखित चालीस नगर बगबर हमा, जी शब्द केवल व्याकरण ग्रन्थो मे सीमित और ग्रामी का परिचय है। अहिच्छत्र, अयोध्या, उज्ज थे तथा जिन शब्दों का प्रयोग किन्ही विशेष विषयों के यिनी, एकचऋपुर, एकानसी, कनकगिरि, ककाहि, काकन्दी, ग्रन्थों में ही देखा जाता था, मे अनेक शब्दों का संग्रह पाम्पिल्य, कुशाग्रपुर, किन्नरगीह, कुसुमपुर, कौशाम्बी. यशस्तिलक में उपलब्ध होता है। इसके अतिरिक्त यशचम्पा, चुकार, ताम्रलिप्ति. पद्मावतीपुर, पानिखेट, स्तिनक में ऐसे भी अनेक शब्द है, जिनका सस्कृत साहित्य पाटलिपुत्र, पोदनपुर, पौरव, बलबाहनपुर, भावपुर. भूमि में अन्यत्र प्रयोग नहीं मिलता। बहत से शब्दो का तो तिलकपूर, उत्तर मथग. दक्षिण मथुग या मदुग, माया अर्थ और ध्वनि के आधार पर सोमदेव ने स्वयं निर्माण पुरी, मिथिलापुर, माहिष्मती गजपुर राजगृह, वल्लभी. किया है। लगता है सोमदेव ने वैदिक, पौराणिक, दाशंवाराणसी, विजयपुर, हस्तिनापुर, हमपुर, स्वस्तिमति, निक, व्याकरण, कोश, आयुर्वेद, धनुर्वेद, अश्वशास्त्र, गजसोपारपुर, श्रीमागर या श्रीसागरम्. सिहपुर तथा शखपुर, शास्त्र, ज्योतिष तथा साहित्यिक ग्रन्थो से चुनकर विशिष्ट इन चालीस नगर और ग्रामों के विषय में यशस्तिलक में शब्दो की पृथक्-पृथक् मूचिया बना ली थी और यशस्तिजानकारी पायी है। इस परिच्छंद में इनका परिचय दिया मक में यथास्थान उनका उपयोग करते गये। यशस्तिलक गया है। की शब्द सम्पत्ति के विषय मे सोमदेव ने स्वय लिखा है परिच्छेद तीन में यशस्तिलक में उल्लिखित वृहतर कि "काल के कराल ने जिन शब्दो को चाट डाला उनका भारतवर्ष के पाच देश-नेपाल, सिंहल, सुवर्णद्वीप. विज मैं उद्धार कर रहा है। शास्त्र-समुद्र के तल मे डूबे हुए य.घं, नया कुलत का परिचय दिया गया है। शब्द-रत्नो को निकालकर मैंने जिस बहुमूल्य प्राभूषण का परिच्छेद चार में यशस्तिलक में उल्लिखित पद्रह वन और पर्वतो का परिचय है। सोमदेव ने कालिदासकानन, निर्माण किया है, उसे सरस्वती देवी धारण करें।" कलास, गन्धमादन, नाभिगिरी, नेपालशल, प्रागडि, भीम- प्रस्तुत प्रबन्ध में मैंने ऐसे लगभग एक सहस्र शब्द
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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