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________________ ७० अनेकान्त क्रमश: एक-एक गजमुख, व्यालमुख और मकरमुख शार्दूल चौडे और नौ इंच मोटे शिलापट्र पर धरणेन्द्र' की खडी बहुत सुन्दरता से निदर्शित है। उनके भी ऊपर (दोनों हुई मूर्ति है। इस मूर्ति के घुटनों से नीचे का हिस्सा पोर ) एक-एक कायोत्सर्ग किन्तु अब शिरविहीन तीर्थकर खडित हो चुका है। इसमे सर्पो की फणावलि मस्तक के दर्शाये गये है । सुन्दर मुखाकृति मुस्कराती सी प्रतीत होती पीछे तो दिखायी ही गयी है, दो सर्प मालाकार होकर है । मस्तक पर के तीनों छत्र अब भी मौजूद है, किन्तु वक्ष पर्यन्त लटक भी रहे है। फणावलि के ऊपर लघु उद्घोषक टूट गया है। आकार मे पद्मासन मे तीर्थकर पार्श्वनाथ आलिखित है। गजमुम्ब, सिंहमुख और मकरमुख शार्दूलों की सज्जा भी ३-प्राविनाथ: दर्शनीय है। इसके दोनों ओर चार-चार हाथ है। ऊपर अत्यन्त सौम्य और प्रभावशील मुखमुद्रा वाली प्रादि- दोनों ओर विद्यावर युगल उडते हुए अंकित किये गये है। नाथ की यह प्रतिमा तीन फुट ऊँचे, दो फुट चौडे एव एक इस यक्ष के झीने वस्त्राभूषण भी बडे आकर्षक है। फुट मोटे शिलाफलक पर पद्मासन मे उत्कीर्ण की गयी है । इसके हाथ और पैर प्रायः खडित हो चुके है । जटाए अन्तिम-टूडे ग्राम के इस जैन स्मारक और मूर्तियों कन्धो पर लहरा कर प्रादिनाथ की दीर्घकालीन तपस्या के अध्ययन से अनेक नये तथ्य सामने आते है। पहला यह का स्मरण दिलाती हैं। इसके पादपीठ में (बायें) गोमुख कि इस प्रदेश मे ईमा की सातवी शती मे जैनधर्म का यक्ष के ऊपर एक इन्द्र शेष है, जबकि दायी पोर का इन्द्र व्यापक प्रभाव था और ग्रादिनाथ तथा पार्श्वनाथ की बहुत खडित हो गया है, मात्र उसके नीचे की चक्रेश्वरी (यक्षी) अधिक उपासना होती थी। दूसरा यह कि शिखरविहीन शेष है। सपाट-छत (Flat Yooted) के मन्दिर बनते थे। इस मन्दिर के सपाट छत आदि के कारण इसका निर्माण काल ४. परणेन्द्र (यक्ष): छठी शती ई० तक भी पहुँच सकता है। तीसरा यह कि तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ के यक्ष धरणेन्द्र का यह मूलनायक की अपेक्षा शासन-देव-देवियों की मूर्तियाँ अपेक्षाअकेली मूर्ति, इस श्रेणी की बिरली प्रतिमानो मे गिनी कृत काफी छोटी बनती थी, किन्तु उनकी स्वतन्त्र मूर्तियाँ जायगी। धरणेन्द्र का अंकन प्रायः पद्मावती के साथ भी बनने लगी थी। निर्माण कार्य में स्थानीय लाल और मिलता है। किन्तु यहाँ की कला में, उसको स्वतन्त्र भरे बल्या पत्थर का उपयोग होता था। यदि शासकीय मूर्ति भी बनी, यह एक उल्लेखनीय तथ्य है। यद्यपि इस स्तर पर या अन्य किसी ढग से उत्खनन कार्य कराया मठ मे जमीन के ऊपर मौजूद मूर्तियो मे पाश्र्वनाथ की जाय तो और भी बहुत सी सामग्री प्रकाश में आकर इस मूर्ति नहीं दिखायी पडी, तालाब पर भी पार्श्वनाथ की क्षेत्र के इतिहास पर नया-प्रकाश डालेगी। जो खंडित मूर्तियाँ मौजूद है वे भी प्राकार-प्रकार तथा कला मादि की दृष्टि से इससे नितान्त भिन्न है। इससे यह अनुमान सहज ही होता है कि जमीन मे दबी हुई ५. "ऊर्ध्वद्विहस्तधृतवामुकिरुद्भटाधः सव्यान्यपाणिफणिपाशवरप्रणता । मूर्तियों में पार्श्वनाथ की तथा यक्षी पद्मावती की भी होना श्रीनागराजककुद धरणोभ्रनीलः चाहिए। कूर्मश्रितो भजतु वासुकिमौलिरिज्याम् ॥" वर्तमान मे दो फुट एक इंच ऊँचे, दो फुट एक इंच -पं. प्राशाधर : प्र. सा., अ. ३ पद्य १५१
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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