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________________ पण्डित भगवतीदास कृत ज्योतिषसार डा० विद्याधर जोहरापुरकर पण्डित भगवतीदास के वैद्यविनोद का परिचय हमने गच्छ के भ० गुणचन्द्र के शिष्य भ० सकलचन्द्र के शिष्य अनेकान्त में प्रकाशित कराया है। इस लेख में इन्ही की भ० महेन्द्रसेन के शिष्य थे। प्रशस्ति के मूल पद्य इस दूसरी रचना ज्योतिषसार का परिचय दिया जा रहा है। प्रकार हैमन्तिम प्रशस्ति ( जो अशुद्ध सस्कृत तथा हिन्दी मे वर्षे षोडशसत्चतुवतिमिते श्रीविक्रमादित्यके है ) के अनुसार इस प्रथ की रचना स० १६६४ मे पूरी पंचम्या दिवसे विशुद्धतरके मासास्वने निर्मले । हुई थी। इसकी रचना के लिए मेघराज के पुत्र बिहारीदास पक्षे स्वातिनक्षत्रयोगशुक्ले वारे बध सस्थिते साधना के पुत्र उदयचंद मुनि की प्रेरणा कारण हुई थी। राजत्साहिसहावदीन भवने साहिजहां कथ्यते ।। ग्रंथकर्ता भगवतीदास अग्रोतक अन्वय (अग्रवाल जाति ) श्रीभट्टारकपद्मनंदिसुधियो देवा बभूवुर्भुवि के वंशल गोत्र में उत्पन्न हुए थे तथा काष्ठासघ माथर- काष्ठासघसिरोमणीभ्युदयदे ख्याती गणे पुष्करे। अनुसार सात है', बौद्धों के अनुसार पाठ है। बौद्ध परं- पूर्व भव - अनुसार अजातशत्रु अनक भवा के पश्चात् विदित कणिक के पूर्वभवों की चर्चा भी दोनो पर परायो में विशेष अथवा विजितावी नामक प्रत्येक बुद्ध होकर निर्वाण मिलती है। घटनात्मक दृष्टि से दोनो चनाएं भिन्न है, प्राप्त करेगा। पर तत्व माप से वे एक ही मानी जा सकती है । दानो का हार्द है-श्रेणिक के जीव ने कणिक के जीव का किमी १. रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, एक जन्म मे वध किया था। तमः प्रभा, महातमः प्रभा. (तरतमाप्रभा)। भगवती सूत्र, शतक १, उद्देशक ५। उल्लेख है। (उदाहरणार्थ देवे, भगवती गूत्र, शतक २. संजीव, कालसुत्त, संघात, जालौरव, धूमरौरव, महा- ६, उद्देशक ७) बौद्ध साहित्य में अन्यत्र ५ नरको प्रवीचि, तपन, पतापन । (जातकट्ठकथा, खण्ड ५, पृ की सूची भी मिलती है। (मज्झिमनिकाय, देवदूत २६६, २७१) दिव्यावदान में ये ही नाम है, केवल सुत्त) तथा जातको में म्फुट रुप से दूसरे नामों का जालौरव के स्थान पर रौरव और धूमरौरव के उल्लेख भी है। 'लोहकुम्भी निग्य' का उल्लेख भी स्थान पर महारौरव मिलता है । (दिव्यावदान, ६७), स्फुट नामो में है (जातकट्ठकथा, खण्ड ६, पृ. २२, सयुत्त निकाय, अंगुत्तर निकाय तथा सुत्तनिपात मे १० खण्ड ५, पृ. २६६; सुननिपात अट्टकथा, खण्ड १, नरको के नाम पाये हैं-प्रवुद, निरन्बद, प्रबब, पृ. ५६ ।) अटट, अहह, कुमुद, सोगन्धिक, उप्पल, पूण्डरीक, ३. Dictionary of Pali Proper Names, Vol 1, पदुम । (स० नि० ६-१-१०; अ. नि. (PTS), P. 35. खण्ड ५, पृ. १७३; सुत्तनिपात महावग्ग, कोकलिय ४. जैन वर्णन-निरयावलिका सूत्र, घासीलालजी महाराज सुत्त, ३।३६) अट्ठकथाकार के अनुसार ये नरकों के कृत सुन्दर बोषिनी टीका, पृ. १२६.१३३; नाम नहीं, पर नरक में रहने की अवधियों के नाम बौद्ध वर्णन-जातकट्ठकथा, सकिच्चजातक, जातक हैं। भागमों में भी इसी प्रकार के काल-मानों का संख्या ५३०।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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