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________________ अनेकान्त महाशिलाकंटक संग्राम नकारात्मक उत्तर देकर दून को विजित किया । दूत ने चम्पा नगरी में आकर कूणिक ने कालीकुमार आदि । लोकमार प्रादि कूणिक को सारा सबाद कहा। कूणिक उत्तेजित हुआ। अपने दश भाइयों को बुलाया। राज्य, सेना, धन आदि आवेश मे आकर उसके प्रोठ फडकने लगे अखेिं लाल हो ग्यारह भागो मे बाटा और आनन्दपूर्वक वहा राज्य करने गई । ललाट मे त्रिवली बन गई । दूत से कहा--"तीसरी लगा । कूणिक राजा के दो सगे भाई ( चेल्लणा के पुत्र ) बार बार जाना। म तुम्ह लिाखत पत्र दता हू। इसम लिखा हल्ल और विहल्ल थे। राजा श्रेणिक ने अपनी जीवितावस्था है--'हार-हाथी वापिस करो या युद्ध के लिए सज्ज हो में ही अपनी दो विशेष वस्तुएं उन्हे दे दी थी-सेचनक जायो । ' चेटक की राज सभा मे जाकर उसके सिहासन हस्ती और अठारहसरा देवप्रदत्त हार।। पर लात मारो । भाले की प्रणी पर रखकर मेरा यह पत्र प्रतिदिन विहल्ल कुमार सेचनक हस्ती पर सवार हो, उसके हाथो में दो ।" दूत ने वैसा ही किया। चेटक भी अपने अन्तःपुर के साथ जल-क्रीडा के लिए गगा तट पर पत्र पढ़कर और दूत का व्यवहार देखकर उसी प्रकार जाता। उसके आनन्द और भोग को देखकर नगरी मे उत्तेजित हुआ। आवेश मे पाया दूत से कहा -"मै युद्ध चर्चा उठी-"राजश्री का फल तो विहल्लकुमार भोग रहा के लिए सज्ज हूँ। कूणिक शीघ्र आये, मै प्रतीक्षा करता है, कूणिक नहीं।" यह चर्चा कूणिक की रानी पद्मावती तक हूँ।" चेटक के आरक्षकों ने दूत को पकड़ा और र पहुँची। उसे लगा-"यदि सेचनक हाथी मेरे पास नही, भोज नोपानी देकर सभा से बाहर किया। देवप्रदत्त हार मेरे पास नही तो इस राज्य-वैभव से मुझे कूणिक ने दूत से यह सब सुना । कालीकुमार आदि क्या?" कूणिक से उसने यह बार्ता कही। अनेक बार के अपने दश भाइयों को बुलाया व कहा-"अपने-अपने आग्रह से कूणिक हार और हाथी मागने के लिए विवश राज्य मे जाकर समस्त सेना से सज्ज होकर यहा पायो । हुआ । हल्ल और विहल्लकुमार को बुलाया और कहा- चेटक राजा से मैं युद्ध करूगा ।" सब भाई अपने-अपने 'हार और हाथी मुझे सौप दो।" उन्होने उत्तर दिया- राज्यों में गये। अपने अपने तीन सहस्र हाथी, तीन सहस्र "हमे पिता ने पृथक् रूप से दिये है। हम इन्हे कैसे सौप घोडे, तीन सहस्र रथ, और तीन करोड पदातिकों को दे ?" कुणिक इस उत्तर से रुष्ट हुआ। हल्ल और साथ लेकर आये । कूणिक ने भी अपने तीन सहस्र हाथी, विहल्लकुमार अवसर देखकर हार, हाथी और अपना अन्त:- तीन सहस्र अश्व तीन महस्र रथ और तीन करोड़ पदापुर लेकर वैशाली में अपने नाना चेटक के पास चले गये। तिको को सज्ज किया। इस प्रकार तेतीस सहस्र हस्ती, कुणिक को यह पता चला। उसने चेटक राजा के पास तेतीस सहस्र अश्व, तेतीस सहस्र रथ और तेतीस करोड़ अपना दूत भेजा और हार, हाथी तथा हल्ल-विहल्ल को पदातिको की वृहत् सेना को लेकर कूणिक वैशाली पर पुन. चम्पा लौटा देने के लिए कहलाया। चेटक ने कहा- पाया। "हार हाथी हल्ल-विहल्ल के है। वे मेरे शरण आये है। राजा चेटक ने भी अपने मित्र नव मल्लकी, मै उन्हें वापिस नहीं लौटाता । यदि श्रेणिक राजा का पुत्र, नवलिच्छवी, इन अद्वारह काशी कोशल के राजाप्रो को चेल्लणा का पात्मज, मेग नातृक ( दोहिता ) कूणिक एकत्रित किया। उनसे परामर्श मागा--"श्रेणिक राजा हल्ल-विहल्ल को आधा राज्य दे तो मैं हार-हाथी उसे की चेलणा रानी का पुत्र, मेरा नतृक ( दोहिता ) दिलवाऊ । '' उसने पुन दूत भेजा और कहलाया--- "हल्ल कूणिक हार और हाथी के लिए युद्ध करने पाया है। हम और विहल्ल मेरी अनुज्ञा के बिना हार हाथी ले गये है। सब को युद्ध करना है या उसके सामने समर्पित होना है ?" ये दोनो वस्तुएं हमारे राज्य मगध की है।" चेटक ने पुन.. सब राजामो ने कहा-" युद्ध करना है, समर्पित नही १. कहा जाता है-सेचनक हस्ती और देवप्रदत्त हार का होना है।' यह निर्णय कर सब राजा अपने-अपने देश में मूल्य श्रेणिक के पूरे राज्य के बराबर था। गये और अपने-अपने तीन सहस्र हाथी, तीन सहस्र अश्व, (आवश्यक चुणि, उत्तरार्घ, पत्र १६७) तीन सहस्त्र रथ और तीन करोड़ पदातिकों को लेकर
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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