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________________ आगम और त्रिपिटकों के संदर्भ में अजातशत्र कुणिक मुनि श्री नगराज नाम-भेद अजातशत्रु विशेषगर्दा का द्योतक न होकर उसके शौर्य का जैन और बौद्ध, दोनों परम्परामो मे नाम-भेद है। द्योतक अधिक प्रतीत होता है। जैन परम्परा जहा उसे 'सर्वत्र 'कूणिक' कहती है, वहाँ बौद्ध 'कूणिक' नाम 'कूणि शब्द से बना है । 'कूणि' का अर्थ परम्परा उसे सर्वत्र 'प्रजातशत्रु' कहती है । उपनिषद्' और है-अगुली का घाव'। 'कूणिक' का अर्थ हुा-अंगुली पुराणो' में भी अजातशत्रु नाम व्यवहत हया है । के घाव वाला । वस्तुस्थिति यह है कि कूणिक मूल नाम है और अजातशत्रु प्राचार्य हेमचन्द्र कहते हैउसका एक विशेषण ( epithet ) कभी-कभी मूल नाम रूढवणादि सा तस्य कूणिता भवदगुलि । से भी अधिक उपाधि या विशेषण प्रचलित हो जाते है । तत सपांशुरमणः सोऽभ्यश्चीयत कूणिका ॥ जैसे-वर्धमान मूल नाम है, महावीर विशेषतापरक, पर प्रावश्यक चणि में कुणिक को 'अशोक चन्द्र' भी कहा व्यवहार मे 'महावीर' ही सब कुछ बन गया है। भारतवर्ष गया है । पर यह विरल प्रयोग है। के मामान्य इतिहास मे केवल अजातशत्रु ही नाम प्रचलित है। मथुरा सग्रहालय के एक शिलालेख मे 'अजातशत्रु महाशिला कंटक युद्ध और वज्जी-विजयकृणिक' लिखा गया है। वस्तुतः इसका पूरा नाम यही अजातशत्रु के जीवन का एक ऐतिमाहिक घटना-प्रसंग होना चाहिए । नवीन साहित्य मे 'अजातशत्रु कूणिक' शब्द जैन शब्दों मे 'महाशिला कटक-युद्ध' तथा बौद्ध शब्दों में का ही प्रयोग किया जाये, यह अधिक यथार्थताबोधक 'वज्जी-विजय रहा है । दोनो परम्पराओं में युद्ध के कारण, होगा। युद्ध की प्रक्रिया और युद्ध की निप्पत्ति भिन्न-भिन्न प्रकार से मिलती है। पर इसका सत्य एक है कि वैशाली 'अजातशत्रु' शब्द के दो अर्थ किये जाते है । न जात: शत्रुर्यस्य अर्थात् "जिसका शत्रु जन्मा ही नही' और गणतन्त्र पर वह मगध की ऐतिसाहिक विजय थी। इस प्रजातोऽपि शत्रु अर्थात् 'जन्म से पूर्व ही ( पिता का ) युद्धकाल मे महावीर और बुद्ध ; दोनो वर्तमान थे। दोनो शत्रु । दूसरा अर्थ प्राचार्य बुद्धघोष का है और वह अपने ने ही युद्ध विषयक प्रश्नो के उत्तर दिये हैं। दोनो ही पाप मे सगत भी है, पर यह युक्ति-पुरस्सर है और पहला परम्परामो का युद्ध विषयक वर्णन बहुत ही लोमहर्षक अर्थ सहज है। कूणिक बहुत ही शौर्यशील और प्रतापी और तात्कालिक राजनैतिक स्थितियो का परिचायक है। नरेण था । अनेकों दुर्जय शत्रुओं को उसने जीता था। प्रतः जंन विवरण, भगवती सूत्र निरयावलिका सूत्र तथा पावश्यक चूणि में मुख्यत उपलब्ध होता है । बौद्ध विवरण १. Dialogues of Buddha, Vol. II, p. 78 बोधनिकाय के महावीरनिव्वाण सुत्त तथा उसकी अट्ठकथा २. वायु पुराण, प्र. ६६, श्लो० ३१९; मत्स्य पुराण, मे मिलता है। अ० २७१, श्लो०६ २. Apte's, Sankrit-English Dictionary, Vol. I, ६. Dr. Journal of Bihar and Orissa Research p. 580. Society, Vol. V, Part IV, pp. 550-51. ३. त्रिषष्टशलाका पुरुष चरिच, पर्व १०, सर्ग ६, श्लोक ४. Dialogues of Budha, Vol. II, p. 78. ३०६ । ५. दीघनिकाय अट्ठकथा, १, १... ४. असोगवण...
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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