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________________ उपाध्याय मेघविजय के मेघमहोदय में उल्लिखित कतिपय प्रप्राप्त रचनाएँ निका प्रभव विभवो शुभौ, शुक्लोऽशुभः, प्रमोद प्रजापती- तथा वर्षाधिपेलोके दीप्तदीपोत्सवः स्मृतः ॥२३ शुभी, अङ्गिरा अशुभ, श्रीमुखभावौ शभौ, युवा विरुद्धः, केवलकीति दिगम्बरोऽप्याहधाता समः, ईश्वर बहुधान्यौ शुभौ, प्रमाथी विरुद्ध., माघस्य शुक्लसप्तम्यां यदाभं जायतेऽभितः । विक्रमवृषभौ शुभो, चित्रभानुविरुद्धः, सुभानुतारणौ शुभौ, तदा वृष्टिर्घना लोके भविष्यति न संशयः ॥११॥ पार्थिवो विरुद्धः, व्ययः सम. ॥इति प्रथमा विशतिका।। स्वातियोग.भणियं दुग्गदेवेण जो जाणइ वियक्खणो। माघे च कृष्णसप्तम्यां स्वातिवोगेऽभ्रजितम् । सो सव्वत्थ वि पुज्जो णिच्छयो लडलच्छोय ॥१ हिमपाते पण्डवाते सर्वधान्यः प्रजासुखम् ॥३१६ डा. गोपाणी के कथनानुसार रिष्ट समुच्चय का तर्थव फाल्गुने चैत्रे वैशाखे स्वाति योगजम् । दूसरा नाम कालज्ञान भी है। अर्थात् मृत्यु के पहले विद्युदभ्रादिकं श्रेष्ट-माषाढ़ेऽपि सुभिक्षाकृत ॥३२० उसका ज्ञान प्राप्त करने का विवरण इम रिष्ट समुच्चय प्रस्तुत ग्रन्थ के पृष्ठ ३२४-३७४ और ४४३ में चातुमें है। प्रत्येक मानव के लिये विशेष अन्तिम पाराधना की सिकुलक और पृ० ३५६ और ४८१ मे तिथिकुलक की तैयारी के लिए मृत्यु ज्ञान की विशेष आवश्यकता है ही। गाथाए उद्धृत है । इनमें से पृ० ३७४ वाली उदृत गाथा रिष्ट समुच्चय अपने ढंग का एक ही ग्रन्थ है । इसके से चातुर्मासकुलक का ऊपर नाम देने पर भी मूलग्रन्थ का तीन सस्करण प्रकाशित हो चुके है। पहला सस्करण नाम अरघकाण्ड सिद्ध होता है। प्राकृत भाषा का यह अध्यापक अमृतलाल गोपाणी ने सस्कृत छाया और अग्रेजी अर्घकाण्ड दुर्गदेव के अर्घकाण्ड से भी भिन्न है। यह अनुवाद सहित प्रकाशित किया। दूसरा सस्करण उन्ही नेमीचन्द्र शास्त्री के उदधृत दुर्गदेब के अर्घकाण्ड के के सम्पादित सिंघी जैन ग्रन्थमाला से विस्तृत रूप मे प्रारम्भिक पद्य से स्पष्ट है। चातुर्मासकुलक पौर प्रकाशित हुआ। तीसरा सस्करण डा. नेमीचन्द्र जैन तिथिकुलक कितने बड़े हैं यह तो उनकी पूरी प्रति प्राप्त ज्योतिषाचार्य का हिन्दी अनुवाद सहित जवरचन्द फूल- होने पर ही विदित हो सकता है। मेघ महोदयमे दिये चन्द गोधा जैन ग्रन्थमाला, इन्दौर से संवत् २००५ मे गए उद्धरण नीचे दिए जा रहे है जिनसे इन ग्रन्थों को निकला । उसमें दुर्गदेव की अन्य रचनाओं मे अरघ काड, खोजने में सुविधा रहेगी। मत्र महोदधि और मरण कण्डिका है। रिप्ट समुच्चय चतुर्मास कुलकेऔर मरण कण्डिका एक ही विषय की लघु-वद्ध रचनाए प्राषाढ़पुन्निमाए पुश्वासाढ़ा हविज्ज दिनराई। है । अरघकान्ड मे तेजी मदी का विवरण १४६ गाथाम्रो मा चत्तारि वि मासा खेम सुभिषां सुवासं च ॥६० म है। मत्र महोदधि ३६ गाथा का छोटा मा ग्रन्थ है ग्रह हेटिमाय पुणिम मूलेणं जाइ पढम बे पुहरा । जिसके अन्तिम उल्लेख से दुर्गदेव दिगम्बर सिद्ध होते है। ता दुन्न वि मासाम्रो दुभिक्खं उवरि सुभिक्खं ॥६१ श्री नेमीचन्द्र शास्त्री ने अरघकाण्ड का परिचय देते ग्रह उवरि वे पुहरा पुव्वासाढा हविज्ज नक्खतं । हा लिखा है कि 'इसमें ६० सवत्सरो के फलाफल का भी ता होइ दुण्णि मासा खेमसुभिक्खं वियाणाहि ॥१२ संक्षेप मे सुन्दर वर्णन है।' अत. सम्भव है मेघविजय मे अहव पविसिऊण मूलं भुजइ चत्तारि पुहर जइ कहवि । उल्लिखित दुर्गदेव का सृष्टि सवत्सर अरघकाण्ड का ही ता चत्तारि वि मासा दुभिक्खं होई रसहाणि ॥६३ अग हो । उक्त ग्रन्थ से यहाँ उद्धृत पाठ मिलाकर निर्णय प्रहवा उत्तरसाढ़ा भुजइ चत्तारि पुहरमवियारं । करना आवश्यक है। ता जाणह दुक्कालं मासा उत्तरह चत्तारि ॥६४ तीसरा अलभ्य ग्रन्थ दिगम्बर केवलकीति के मेघमाला ग्रह भजइवे पुहरा पुवाउम्मि उत्तरासाठा । का उल्लेख एव एक श्लोक इस प्रकार है ता उवरि बेमासा होइ सुभिक्खायो रसहाणि ॥९८ केवलकीति-दिगम्बर कृत मेघमालायां पुनरेव- मह भुजइ बे पुहरा मुलं पुथ्वं हविज्ज नवखतं । प्रागच्छति यया भूपे गेहे गेहे महोत्सवः । उपरि पुरवासादा दुक्खं पच्छा सुहं होई ॥६६
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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