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________________ श्री मुख्तार साहब अजमेर में २८३ कि उनका उसके अतिरिक्त अन्यत्र ध्यान बढता ही नही में यह ग्रन्थ उपलब्ध हुमा और इसमें सुन्दर एवं हृदयथा । साथी कार्य करते हुए थकान अनुभव करते थे लेकिन ग्राही संस्कृत में ७२ श्लोक है। जिसमें अध्यात्म का उन्होंने कभी थकान अनुभव नहीं की। प्रारम्भिक रूप से लेकर अन्तर मात्मा से साक्षात्कार करशास्त्र संबंधी जानकारी इतनी सूक्ष्मता से लेते थे कि वाता है। इस ग्रन्थ का विस्तृत हिन्दी अर्थ व व्याख्या उनकी दष्टि से कोई बात छुट नही पाती थी। बडे अध्यब- करके मुख्तार साहब ने स्वाध्याय प्रेमियों के लिए एक साय से उन्होंने यह कार्यशास्त्र भंडार को देखते हुए अपूर्व निधि प्रदान कर दी है और इसका सबसे प्रथम कम समय में भी परिपूर्ण किया। प्रकाशन मापने करवा दिया। इस प्रकार एक लु त एवं शास्त्र भंडार की व्यवस्थित सूची तैयार करने या अप्राप्य शास्त्र का उद्धार करके जिनवाणी का उद्धार कराने में उन्ही के सामने अप्राप्य एवं अप्रकाशित शास्त्र किया । इन्होंने अपने जीवन में एक नहीं अपितु अनेक भी आये। जिनके सम्बन्ध में उन्होने अनेकान्त मे बराबर इस प्रकार के शास्त्री का प्रकाशन करके पार्ष मार्ग का प्रकाश डाला। उद्योत किया। वयोवृद्ध होने पर भी वे अपने शरीर से ज्यादा से मुख्तार के इस सेवाव्रत से मुझे भी जीवन मे प्रेरणा ज्यादा १६ घटे तक कार्य लेते रहते थे। यह थी उनकी मिली और अजमेर में जब तक वे रहे तब तक उनके जिनवाणी की सच्ची सेवा। सानिध्य का सौभाग्य पाया। पं. पाशाघर जी रचित ग्रन्थो का प्रकाशन हो चुका वास्तव मे वे जहाँ भी रहे उनका तन, मन व धन है। लेकिन उनका महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ "अध्यात्म रहस्य" जिनवाणी की सेवा में ही लगा रहा और जीवन का अपरनाम "योगोद्दीपन" के सम्बन्ध में नाम ही सुनने मे समस्त बहुत बड़ा भाग उन्होंने सरस्वती माताके चरणो मे आता रहा। परन्तु उसके दर्शन का अवसर समाज को लगाया। मुख्तार सा. के अजमेर रहते समय अजमेर नहीं मिला। प० नाथूराम जी प्रेमी ने भी इस ग्रन्थ को जैन समाज ने अपने को कृतकृत्य समझा। बाह्य से उनका पूर्व में अप्राप्य बताया। __ व्यक्तित्व सामान्य लगता था, लेकिन अतरग मे गूढ़ागार मुख्तार साहब को अजमेर मन्दिर के शास्त्र भडार के समान उनका व्यक्तित्व एव प्रतिभा थी। श्रद्धाञ्जलि राजस्थान के प्रसिद्ध एवं उद्भट विद्वान प० चैन- रस से प्रोत-प्रोत था। वे पक्के सधारक और रूढिवाद के सुखदास जी से जैन समाज भलीभॉति परिचित है । कौन कदर्थक थे । वे निर्भीक वक्ता थे। उनका भाषण एवं जानता था कि भादवा ग्राम के साधारण कुटुम्ब में जन्म प्रवचन दोनों ही आकर्षक थे। उनकी सेवाएं अमूल्य हैं। लेने वाला यह बालक अप्रतिम प्रतिभा का धनी और उनकी विचारधारा उदार और सरस थी, उनके दिवंगत समाज के विद्वानो में इतना उच्चकोटि का स्थान बना हो जाने से राजस्थानी समाज की एक विभूति सदा के सकेगा । पडितजी बाल ब्रह्मचारी, प्रखर प्रोजस्वी वक्ता, लिए उट गई । वीर सेवा मन्दिर के अनुसन्धान कार्य में पत्र सम्पादक, शिक्षक और अच्छे लेखक थे। उन्होने उनका पूरा सहयोग रहता था। उनके स्थान की पूर्ति समाज को बहुत कुछ दिया। उनमे मानवता कूट-कूट कर होना कठिन है । वीर सेवा मन्दिर और अनेकान्त परिवार भरी थी। उन्होंने गरीब विद्यार्थियों को सब तरहका सह- उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हुआ परलोक मे योग देकर उच्चकोटि का विद्वान बनाया। उनके अनेक उनके सुखी होने की कामना करता है। शिष्य है, जो डाक्टर, जैन दर्शनाचार्य, प्रायुर्वेदाचार्य और प्रेमचन्द जैन न्यायतीर्थ की डिग्रियों से अलकृत है जो समाज में सेवाकार्य कर रहे है। उनका हृदय कोमल और मानवता के मंत्री वीर सेवामन्दिर
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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