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श्री मुख्तार साहब अजमेर में
फतेहचन्द सेठी श्री साहित्य मनीषी भाचार्य जुगलकिशोर जी मुख्तार स्वामी समन्तभद्राचार्य के सम्बन्ध में जो गवेषणात्मक पूर्ण समाज के उन नवरत्नों में से थे जिन्होंने अपने जीवन को सामग्री मुख्तार सा० ने प्रदान की, वह एक उनकी अनुवट वृक्ष के समान प्रारम्भ किया। जबकि समाज की पम देन है और उनके विश्वास के अनुसार अभी भी किसी भी क्षेत्र में कोई व्यवस्थित योजना नहीं थी। उनके साहित्य के अन्वेषक की अत्यन्त आवश्यकता है।
मेरे ध्यान से सबसे प्रथम वे महासभा के जैन गजट मुख्तार सा० की गतिविधि साहित्य के सभी क्षेत्रों में के सम्पादक के रूप में समाज के सामने पाये । उस काल सागोपाग रही है । कवि, लेखक' शोधक, समालोचक एवं में उन्होंने गजट के माध्यम से जो भी सेवायें दी है वह पत्रकार आदि सभी गुण उनमे पूर्णरूपेण विकसित थे। गजट की फाइलों में आज भी अकित है।
उन्होंने करीबन ४० वर्ष तक समाजकी अमूल्य सेवाये करते फिर 'जन हितैषी' पत्रिका के माध्यम से जनसमाज हए जिनवाणी की सतत् साधना की है। को पत्रकारिता की दृष्टि से नई दिशा प्रदान की। उनके मुख्तार सा० से साक्षात्कार करने एवं उनके सपर्क द्वारा धार्मिक, सामाजिक, ऐतिहासिक एव भौगोलिक में पाने का कार्य इससे पहले कभी नहीं पड़ा। उनके साहित्यिक सामग्री अन्वेषण के रूप में प्राप्त हुई है । उनके साहित्य के द्वारा ही उनकी जानकारी मिली और उससे इस कार्य में श्री नाथूराम जी प्रेमी साथी थे, प्रेमी जी के ही उनके प्रति आदर भाव का बना हुप्रा था। बाद मे इस क्षेत्र से अलग हो गये थे फिर भी मुख्तार सा० अजमेर जैन समाज का सदा से गौरव रहा है और इस क्षेत्र में अडिग होकर आगे बढ़ते गये।
यहाँ के बडापना पचायत के मदिरजी मे हस्तलिखित सन १९५२ या २३ में उन्ही की 'मेरी भावना' रचना शास्त्रों का अपूर्व भण्डार है। जिनके दर्शन से प्राचीन समाज के सामने आई और उसकी लोकप्रियता इतनी काल की हस्तलिखित कलायो का साक्षात् दर्शन भी बढी कि बालक वृद्ध तक ने उसे अपने कण्ठ का हार बना मिलता है। यहाँ के भार को व्यवस्थित सूची नही होने लिया तथा इसका आज तक विविध भाषाओं में अनुवाद से यह पता नहीं लगता था कि यहाँ के भण्डार में कितने भी हो चुका है। पं० धरणीधर जी साहित्याचार्य ने भी अप्राप्य एव अप्राशित ग्रन्थ आज भी विद्यमान है। इसी का अनुवाद तदनुरूप संस्कृत साहित्य में भी किया है। श्री दि० जन सभा के तत्वावधान में मुख्तार सा० से
सफल डा० की भाँति उन्होंने ग्रन्थ परीक्षा द्वारा अनुरोध किया गया कि वे अजमेर पधार कर यहां के समाज को नया जीवन दिया और उसके कारण समाज शास्त्र भण्डार का भी अवलोकन करें। बराबर पत्र-व्यवमे उस समय विद्रोह की छाया और उस विद्रोह का सामना । हार के बाद सन् १९५६ में वे यहां आये और करीबन मस्तार सा० ने डटकर किया। लेकिन इनकी लेखनी में पांच मास तक रहे तथा उन्होंने शास्त्र भण्डार का प्राद्योसदा यह विशेषता रही कि वे जो भी लिखते थे उसे जम
पान्त अवलोकन करके शास्त्र भंडार की परिपूर्ण सूची कर लिखा, जिसके कारण विरोधियों के पास भी उसका । क्रमबद्ध तैयार की। उनके इस पुनीत कार्य मे श्री शुशीलप्रत्युत्तर नहीं था।
चन्द जी पाटनी बाबू हीराचन्द जी बोहरा पं० दीपचन्द प्रन्थ परीक्षा ने धार्मिक जगत की प्रांखें खोल दी जी पाण्ड्या प्रादि अनेक व्यक्तियों ने सहयोग दिया। और समाज में प्रादर्श मार्ग की मान्यता की कसौटी को मुख्तार साहब को कार्य पद्धति एवं निष्ठा उस समय बल मिला । इससे आर्ष ग्रन्थों की बहुत बड़ी रक्षा हुई। देखने को मिली कि वे उस समय इतने तन्मय रहते थे