SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महान साहित्य-सेवी मोतीलाल जैत 'विजय' एम. ए. बी. एड. सुप्रसिद्ध साहित्यकार, वीर सेवा मन्दिर एवं ट्रस्ट के 'मेरी भावना' उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है जो संस्थापक आदरणीय पडित जुगलकिशोर जी मुख्तार राष्ट्रीय कविता की उच्च श्रेणी में रखी जाती है। जैन "युगवीर" जैन समाज मे विश्रुत विद्वान, साहित्यकार, व जैनेतरों ने 'मेरी भावना' को इतना स्नेह दिया कि समालोचक, संशोधक, सम्पादक, पुरातत्त्ववेत्ता, समाज- सहज ही वह भारत की अनेक भाषामों में प्रकाशित हुई सुधारक एव साहित्य प्रचारक थे। उन्होने जैन साहित्य है। 'युगवीर' में एक साथ साहित्यकार, सम्पादक, समाजके प्रचार-प्रसार, संशोधन, सम्पादन मे जो योगदान दिया सुधारक, समालोचक, निबन्धकार एव पुरातत्त्ववेत्ता जैसे है । यद्यपि श्री मुख्तार सा० ने किसी महाविद्यालय, विश्व- अनेक रूप देखने को मिलते हैं। यह उनकी पैनी दृष्टि, विद्यालय अथवा उच्च स्थान पर शिक्षा प्राप्त नहीं की थी स्पष्टवादिता, चिन्तनशीलता, सहृदयता, सरलता एव तथापि उन्हें साहित्य, व्याकरण, दर्शन, ज्योतिष का ज्ञान समता की द्योतक है जो उन्हे सर्वोच्चता के शिखर पर ले था। वे निरन्तर विद्या-व्यसनी रहे । निरतर स्वाध्याय, जा सकी। मनन एव चिन्तन ने उन्हे कुशल अन्वेपक-तत्त्वचितक सरसावा के सन्त का अमरदीप अब "अनेकान्त" के बना दिया। फलस्वरूप आप अप्रकाशित, अनुपलब्ध एव रूप में हमारे समक्ष है। प्राशा है सरस्वती के इस साहित्य प्राध्यात्मिक जैन साहित्य की ओर प्राकृष्ट हुए। महारथी की अक्षय कीति को अक्षुण्य बनाने मे जैनसमाज, जैन साहित्य तथा साहित्यानुरागी वर्ग असीम उत्साह तथा समन्तभद्र भक्त प्राचार्य जुगलकिशोर जी 'मुगनार' न साहम का प्रदर्शन करेगा। उनके द्वारा रचित ग्रन्थी का सम्पादन-प्रवागन ही जैन अखिल भारतीय स्तर पर मान्यता प्राप्त दि० जैन घम के प्रचार एव इसी सदिय तीर्थ का प्रमार, पापना परिपद. विदतपरिपद, दि० जैन परिपद, दि.जैन महा मूल लक्ष्य बनाया । आज से २८ वर्ष पूर्व स्थापित 'समन्त- सभा, भारतवर्षीय दि० जैन मघ एवं वीर सेवा मन्दिर भद्राश्रम, (अब वीरमेवा मन्दिर ट्रस्ट) उनकी लगन का ट्रस्ट प्रभृति संस्थानो का प्राथमिक कर्तव्य है ऐसे साधुजीवन्त स्मारक है। सामाजिक कुरीतियों का उन्मूलन, पुरुष का स्मारक ग्रन्थ प्रकाशित करावे साथ ही उनकी कुप्रथाम्रो का बहिष्कार एव कतिपय ऐसी बाते है जिनसे स्मृति स्वरूप कोई स्थायी योजना बनाते जो महत्वउनकी समाज-सेवा की लगन स्पष्ट दीख पड़ती है। पर्णहो। आधुनिक जैन-युग के 'वीर' श्रीमती विमला जैन राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रबल समर्थक, प्राधुनिक जैन युग सरस्वती पुत्र के गुणों का बखान करना कहाँ तक सम्भव के वीर, जैन साहित्य के उन्नायक, कवि, भाष्यकार, समी- है। उन्होने 'मेरी भावना' के युगवीर के नाम से जैन क्षक, सम्पादक, पत्रकार, इतिहासकार एवं पुरातत्त्ववेत्ता जगत मे अक्षय नाम बना लिया है। डा० नेमिचन्द्र जी विद्वद्वरेण्य पडित जुगलकिशोर जी मुरूनार 'युगवीर' का शास्त्री, प्राचार्य जी के सम्बन्ध में एकदम सत्य लिखते है निधन न केवल जैनसमाज को क्षुब्ध करता है अपितु “यदि प्राचार्य युगवीर बी अन्य कविताओं को दृष्टि से हिन्दी संसार को भी आघात पहुँचाता है । ६२ वर्ष की अोझल कर दे तो केवल 'मेरी भावना' के कारण उसी पायु में जो साहित्यकार साहित्य-प्रणयन मे लगा रहे ऐसे प्रकार अमर रहेगे जिस प्रकार 'उसने कहा था' वाहानी
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy