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"युगवीर" के जीवन का भव्य अन्त
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की तपस्या का फल प्रापको मिल गया। स्वप्न इस मालिश करने लगे जिससे उनकी पीड़ा कुछ कम हुई और प्रकार है :
अगले दिन उनका Xray कराया जिसमें हड्डी ठीक थी "रात्रि को ३ बजे के करीब मुझे स्वप्न में पुरुषाकार कही से भी चटकी या टूटी नहीं थी दो-तीन दिन में पीड़ा दिव्य ज्योति का दर्शन हुआ। ज्योतिर्मय पुरुप के नाक व सूजन कम हो गई और टांग के उठाने रखने में आसानी कान मुखादि सब अंग पुष्ट थे। ज्योति के सिवाय कही हो गई परन्तु चल नही पाते थे इसलिए टट्टी पेशाब के किसी दूसरी वस्तु का दर्शन नहीं होता था, ऐसा मालूम लिए कमोड और पोट का प्रबन्ध कर दिया जिससे वह पड़ता था कि एक ही अखण्ड ज्योति पुरुषाकार रूप परि- उसी में टट्टी पेशाब को जाते थे। फिर मुझे इधर ज्वर णित हो रही है। यह ज्योति सरसावा स्थित उस चौबार पाने लगा। पत्र व स्त्री को भी फ्लू हो गया, जिससे कि के दक्षिणी द्वार के मध्य में खड़ी हो गई जिसमे मेरा, सब घर परेशान हो गया; परन्तु उनकी परिचर्या में किसी मेरे भाइयों का तथा पिता और पितामह का जन्म हुआ बात की कमी न आने दी, और इस हालत में भी उनकी है। कोई क्रिया मेरे से ऐसी बनी, जिससे एकदम ज्योति का सेवा तत्परता के साथ करते रहे। रात को मेरा ज्वर कुछ उद्गम हुआ और हृदय मे कुछ-क्षण बाद यह खयाल भी कम हो जाता तो दो चार घन्टे उनके पास बैठकर बातउत्पन्न हुया कि इस प्रकार की क्रिया करके तो मै नित्य चीमा करके या जाता था। ही प्रात्म-ज्योति का दर्शन कर सकूगा। परन्तु वह क्रिया तास म्बर १६६ को याद जगमन्दिर क्या की गई इस बात का कोई स्मरण नही रहा । एसा दास भत्ता वाले दिन के २ बजे उनसे मिलने आये दिव्य ज्योति का दर्शन मुझे जीवन भर में पहले कभी ।
और बात-चीत करके रहे। मुख्तार सा० ने उनसे कहा नही हया । इस दिव्य ज्योति के दर्शन से मुझे कि मामेरी "यगवीर निबन्धावली द्वितीय खड की कुछ बड़ा मानन्द प्राप्त हुया और यह इच्छा बनी रही प्रतिया मुझसे खरीदकर अपनी ओर से वितरण कर दे। कि उसके दर्शन होते रहे । मै इसको प्रात्मदर्शन समझता इधर मे उस निम्ति भी विक्री के लिए कर रहा हूँ हूँ॥" मैने तो इस स्वप्न का अर्थ यह लगाया कि वेदना सो इ E करके यह सब पुस्तकें मेरी निकल जावेगी । के कारण प्रात्मा के प्रदेश अपनी नई योनि जिसमे उसे और सस्था के रुपयो का खचं निकल पावेगा, जो इसके जन्म लेना है ढूढ़ने में लगा हुपा है इसी कारण यह स्वप्न छपाने में खर्च हो गया है। उन्होने उन्हे आश्वासन दिया के रूप में दिखाई पड़ा, ऐसा मेरा विश्वास है मै नही कह कि मैं अवश्य ही कुछ प्रतियाँ खरीद लूगा, आप चिन्ता न सकता कि मेरी धारणा गलत है या उनका विचार टीक करें। मैं दान्टर सा० व पं० दरबारीलाल जी से इस है। मरण से चार रोज पहले रात के दस बजे शायद विषय में बात कर
विषय में बात कर लूगा। अपने स्वास्थ्य की ओर इस शौच के लिए लाठी लेकर चल पड़े तो कमरे से दो कदम
वक्त प्राषि ध्यान रखे, अभी आपकी हम लोगों को बाहर चलकर न मालूम कसे गिर पड़े और कराहने का जरूरत है और आप से बहुत कार्य लेना है। उस वक्त शब्द मेरे कानों में पड़ा, मैं भागकर पाया और पूछा कि तक कोई ऐसी खास बात नहीं मालूम होती थी कि कल कहाँ जा रहे थे। तो बोले-"अपने घर जा रहा हूँ" मैने ये इस संसार को छोड़कर प्रयाण कर जायेगे । २१ ता० कहा घर तो यही है। फिर भी यही कहा-"देखो कि की शाम को उन्होंने औषधि, दूध तथा बादाम की चटनी मैं अपने घर जा रहा हूँ। लेकिन मैं गिर पड़ा मुझे टाँग फलो का रस इत्यादि लेने से बिलकुल मना कर दिया । में चोट लग गई है। मैने टांग का निरीक्षण किया मुझे सिर्फ थोड़ा सा पानी पिया और कुल्ला करके कहा कि टूटी तो नहीं मालूम पड़ी, परन्तु उन्हे दर्द को वेदना बहुत हटायो बस अब खा चुका। मैने भी बहुत आग्रह किया थी और टाँग को हिलाने डुलाने में तकलीफ महसूस करते परन्तु मेरा कहना भी नहीं माना । २१ दिसम्बर की शाम थे । खैर किसी तरह से मैने व मेरे पुत्र महेश ने उन्हें को जब मैं उनके पास जाकर बैठ गया तो उन्होंने मुझे पलंग पर ले जाकर लिटा दिया और टाँग की सिकाई व · गद्गद् कंठ से कहा कि तुम्हारा ज्वर उतर गया, मुझे