________________
सरस्वती-पुत्र मुख्तार सा०
२४१
महान् पाराध्य के प्राश्रय से प्राराधक ऊँचे उठ जाते हैं सम्पादक प्राप ही थे। पापके सन्मति पौर विद्यावती दो वहाँ योग्य पाराधक के माध्यम से अराध्य भी लोक-विश्रुत पुत्रियां हुई थीं जो अल्पावस्था में ही गुजर गई। हो जाते हैं।
___सहारनपुर में दिसम्बर १९४३ को भारत बैंक के 'यो यच्छ्रसः स एव सः' (अर्थात्-जो जिसकी श्रद्धा मैनेजिंग डाइरेक्टर प्रसिद्ध व्यापार-शास्त्री श्री राजेन्द्रकरता है वह वैसा ही हो जाता है) इस न्याय के अनुसार कुमार जी के सभापतित्व में आपकी ६७वीं वर्षगांठ के हम मुख्तार सा० को 'माधुनिक समन्तभद्र' भी कहे तो उपलक्ष्य में विशाल सम्मान समारोह हुप्रा था जिसमें कोई अत्युक्ति नहीं।
आपको अभिनन्दन-पत्र भेंट किया गया था। इस पर भनेमुख्तार सा०-उद्भट विचारक प्रवर तार्किक, कांत वर्ष ६ किरण ५-६ के रूप में मुख्तारश्री सम्मान निर्भय-समीक्षक, सुदृढ समालोचक, प्रामाणिक लेखक कुशल समारोह विशेषांक प्रकाशित हुआ था। संपादक, महान् संशोधक, निर्दोष व्यनुवादक, सूक्ष्म अन्वेषक अभी मई १९६८ मे विद्वद् परिषद् ने भी एटा में मार्मिक तत्वज्ञ, इतिहास मर्मज, प्रोजस्वी वक्ता, प्रबुद्ध कवि, अभिनन्दन-पत्र समर्पित कर तथा 'मुख्तारथी का व्यक्तित्व प्रसाधारण भाष्यकार, प्रकाड पडित, आदर्श विद्वान, प्रवीण और कृतित्व' पुस्तिका प्रकाशित कर उनका हार्दिक सम्मान व्याख्याता, धुरंधर नेता, समन्वयी सुधारक, विचक्षण अनु- किया था। सघाता, महान श्रुतसेवक, विद्वद्-सम्राट, अनेक ग्रन्थ- मख्तार सा० ने अपने देहावसान से कुछ दिनों पहिले निर्माता, सन्मार्गप्रणेता, सद्धर्म प्रचारक, वास्तविक ब्रह्म- अपने टस्ट का नवीन गठन किया था। मान्य ट्रस्टियो से चारी, समीचीन त्यागी, अनुपम समाज-सेवक, साहित्य प्रार्थना है कि वे मुख्तारश्री के प्रामाणिक जीवनचरित तपस्वी, मनस्वी, कार्यार्थी आदि अनेक रूपो के धारक को लिये हए एक विशाल स्मृति ग्रन्थ का प्रकाशन करावे महान् गुणों के सागर साक्षात् सरस्वती-पुत्र ही थे।
तथा उनकी याद मे यह ग्रन्थमाला प्रारम्भ कर तथा उनके आपके पिता श्री का नाम चोधरी लाला नत्थूमल जी छोडे हए अधुरे कार्यों को पूरा करावे यथा--जैन लक्षणाऔर पितामह का चौधरी लाला धर्मदास जी तथा माता वली और जीतसार समुच्चय लोक विजय यन्त्र आदि का नाम भोई देवी था। जाति-जैन अग्रवाल, गोत्र- ग्रन्थो का प्रकाशन तथा प्रवशिष्ट साहित्यिक, ऐतिहासिक सिंहल निवास स्थान सरसावा, तहसील-मकुड, जिला- और परीक्षात्मक निबन्धो का पुस्तकाकार प्रकाशन एवं सहारनपुर था । धर्मपत्नी राजकली देवी थी (जिसकी अप्रकाशित रचनाओ का प्रकाशन करावे । मृत्यु १६ मार्च १९१८ मे हुई थी)। आपका जन्म मग
मुख्तार सा० की अद्यावधि प्रकाशित रचनामों की सर सुदी ११ वि० स० १८३४ में हुआ था। ४ दिसम्बर को प्रकार : १९२७ को ब्रह्मचर्य व्रत लिया। १२ फरवरी १६१४ को १. ग्रन्थ परीक्षा प्रथम भाग (उमास्वामी श्रावकामुख्तारकारी छोडकर श्रुतसेवा का महाव्रत अगीकार
चार, कुन्दकुन्द श्रावकाचार, जिनसेन त्रिवर्णाचार की किया। पौष शुक्ला ३ स० २०२५ दीतवार ता० २२
परीक्षा-इनमे से उमास्वामी श्रावकाचार की परीक्षा दिसम्बर ६८ को प्रापका देहावसान एटा मे अापके भतीजे
अलग से भी छपी है)। श्री डॉक्टर श्री चन्द्रजी जैन सगल के यहाँ हुआ था।
२. ग्रन्थ परीक्षा द्वितीय भाग (भद्रबाहु सहिता)। आपने मैट्रिक तक पढाई की थी । सन् १९०२ मे मुख्तारकारी की परीक्षा पास की थी। प्रापका पहला लेख ८
३. ग्रन्थ परीक्षा तृतीय भाग (सोमसेन त्रिवर्णाचार, मई १८६६ के जैन-गजट (वेदबन्द) मे जैन कालेज के धर्म परीक्षा (श्वे०) अकलक प्रतिष्ठा पाठ पूज्यपाद समर्थन में छपा था। १९००-६ ई० मे आप जैन गजट के
__ श्रावकाचार)। सम्पादक बने तब अश्लील विज्ञापनों के विरोध मे मापने
४. ग्रन्थ परीक्षा चतुर्थ भाग (सूर्यप्रकाश)। लेख लिखे इस विषय में मावाज उठाने वाले सर्वप्रथम (इन चारों भागों को दक्षिण प्रान्त के प्रसिद्ध विद्वान्