SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिष्ठा तिलक के कर्ता नेमिचन्द्र का समय मिलापचन्द्र कटारिया "विद्याभूषण" प्रतिष्ठा तिलक के कर्ता नेमिचन्द्र है इन्होंने प्रतिष्ठा- इस प्रकार नेमचद्र ने अपनी वशावली तो विस्तृत तिलक में अपने वशका वर्णन इस प्रकार किया है- लिख दी परन्तु वे किस साल सवत में हुये यह लिखने की कृपा नही की। यह गृहस्थ थे, इन्होंने उक्त प्रतिष्ठापथ वीरसेन, जिनसेन, वादी सह और वादिराज इनके वश में हस्तिमल्ल गृहाश्रमी हुये । इन हस्तिमल्ल के कुल पाशाधरकृत प्रतिष्ठाशास्त्र को प्राधार बनाकर लिखा है। में परवादिमल्ल मुनि हये । और भी कई हुये जिन्होंने यद्यपि इन्होंने अाशाघरका कही उल्लेख नहीं किया है किंतु दीक्षा ले जैनमार्ग की प्रभावना की । इसी कुल मे लोकपाल दोनो मे इतना अधिक माम्य है कि उसे देखकर यह नि: द्विज गृहस्थाचार्य हुये जो चोल राजा के साथ अपने बधुवर्ग Tथ अपने बधवर्ग सकोच कहा जा सकता है कि-प्रकरारोपण प्रादि कुछ को लेकर कर्नाट देश मे आये। उनके समयनाथ नाम का विशेष प्रकरणो को छोडकर बाकी सारा का सारा तार्किक पुत्र हया । समयनाथ के आदिमल्ल, आदिमल्लके नेमिचंद्र ने अाशाघर के ग्रथ से ज्यो का त्यो ले लिया है। चितामणि, चितामणि के अनंतवीर्य । अनतवीर्य के पार्श्वनाथ मिर्फ दोनों मे शब्द रचना का ही अन्तर है, प्रायः अर्थ पार्श्वनाथ के आदिनाथ । आदिनाथ के वेदिकोदड । वेदि- इकसार है । दोनो का मिलान करने में यह बात कोई भी कोदड के ब्रह्मदेव । और ब्रह्मदेव के देवेन्द्र नामक पुत्र हुआ जान सकता है अतः उनके उदाहरण देने की मैं जरूरत जो महिताशास्त्रों में निपुण था देवेन्द्र की भार्या का नाम नही समझता। किन्तु आशाधर प्रतिष्टापाठ के कितने ही आदिदेवी था। यह ग्रादिदेवी की विजयपार्य और श्रीमती पद्य तो नेमिचद्र ने ज्यो के त्यो भी लिये है। की पुत्री थी। इस प्रादिदेवी के चद्रपार्य ब्रह्मसूरि और इससे स्पष्ट प्रकट होता है कि ये नेमिचद्र पागाधर पार्श्वनाथ ये तीन सगे भाई थे। उस दपति (देवेन्द्र-प्रादिदेवी) के बाद हये है। बाद मे होने का दूसरा हेतु यह है किके तीन पुत्र हये-आदिनाथ, नेमिचद्र और विजयम। इन्होने अपने प्रतिष्ठातिलक के मगलाचरण में इद्रनदि आदिनाथ जिन सहिताशास्त्रो का पारगामी हुआ । इसके आदि कृत प्रतिष्ठाशास्त्रों के अनुसार कथन करने की बात त्रैलोक्यनाय, जिनचद्रादि विद्वान पुत्र हुये । और विज- कही है। और इद्र नदि ने अपनी जिनसहिता मे प्राशाधरयम ज्योतिष का पंडित हुआ जिसका समतभद्र पुत्र साहित्य कृत सिद्धभक्तिपाट को उद्धृत किया है। तथा नेमिचद्र ने का विद्वान हुआ। तथा नेमिचंद्र, अभयचद्र उपाध्याय के अपने प्रतिष्ठाग्रंथ के १८वे परिच्छेद में एकसंधिसहिता के पास पढ़कर तर्क व्याकरण का ज्ञाता हुप्रा । नेमिचद्र के भी बहुत से श्लोक उद्धृत किये है। उधर एक सधि भी दो पुत्र हुये-कल्याणनाथ और धर्मशेखर । दोनों ही महा अपनी जिनमहिता के २०वे परिच्छेद मे इन्द्रनदी का उल्लेख विद्वान हुये । नेमिचंद्र ने सत्यशासन परीक्षा मुख्य प्रकर- करते है । इन सब उल्लेखो से यही निश्चित होता है कि णादि शास्त्र रचे । राजसभाओ मे प्रतिवादियो को जीत आगाधर के बाद इन्द्रनदी, इन्द्रनदी के बाद एकसधि और कर जिसने जैनधर्म की प्रभावना की जिसको राजा द्वारा एक सधि के बाद नेमिचद्र हए है। १० आशाधर जी वि० छत्र, चंवर, पालकी भेट मे मिली। और जो स्थिर कदब स-१३०० तक जीवित थे यह निर्धांत है। गिर का रहने वाला है ऐसे नेमिचद्रने अपने मामा ब्रह्मसूरि अयंपार्य अपने बनाये “जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय" नामक आदि बन्धुओं के प्राग्रह से यह प्रतिष्ठातिलक अथ बनाया प्रतिष्ठापाठ को वि० सं० १३७६ में पूर्ण करते हये लिखते है कि-मैंने यह प्रतिष्ठाग्रथ इन्द्रनंदी, पाशाधर, हस्तिमल्ल
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy