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________________ साहित्य तपस्वी स्व० मुख्तार सा० प्रगरचन्द नाहटा मनुष्य जन्म के समय तो प्रायः एक समान बालक सकते है । मुख्तार साहब की बहुमुखी प्रतिभा, सतत् प्रध्य होता है । यद्यपि पूर्व जन्म के संस्कार और अपने समय के यनशीलता और विशिष्ट लेखन अवश्य ही हमारे लिये वातावरण द्वारा उसका विकास भिन्नता लिये होता है, एक स्पृहणीय व्यक्तित्वका भव्य चित्र उपस्थित करता है। पर छोटी उम्र तक इतना अधिक अन्तर नही दिखाई मुख्तार साहब का परिचय तो मुझे बहुत पीछे मिला । देता। ज्यों-ज्यों वह बड़ा होता चला जाता है. स्वतन्त्र पर जब मैं जैन पाठशाला में पढता था तभी उनकी 'मेरी गुणों का विकास अधिक स्पष्ट हो जाता है । फिर भी कई भावना' नामक कविता देखने को मिली, और वह बहुत बालक बाल्यावस्था में तो साधारण से लगते हैं । पर आगे ही अच्छी लगी। ऐसी सुन्दर भावना वाले व्यक्ति 'युगचलकर तेज निकल आते है। अपनी प्रतिभा, परिश्रम, वीर' सज्ञक कौन है ? इसका उस समय कुछ भी पता सयोग और परिस्थितिया अपना रंग दिखाती है। कभी- नही था। जब साहित्य-शोध की रुचि पनपी, तथा अनेक कभी तो किसी प्राकस्मिक सयोग से जीवन धारा पूर्णतः नये नये ग्रन्थो का अध्ययन चाल हुमा और तभी मुख्तार बदल जाती है। एक विलासी व्यक्ति परित्यागी बन जाता साहब की 'ग्रन्थ परीक्षादि' पुस्तकें पढ़ने में पाई। कहाँ एक मूर्ख व्यक्ति पंडित बन जाता है। शारीरिक विकास 'मेरी भावना' के लेखक मुख्तार साहब और कहाँ 'ग्रन्थ भी इतना अधिक अन्तर वाला होता है कि एक ही व्यक्ति परीक्षा' के लेखक मुख्तार साहब, । कुछ भी ताल-मेल के समय-समय पर लिये हुए चित्रो से उसे पहचानना नही बैठ सका। 'ग्रन्थ परीक्षा' में गहरी छानबीन करके कठिन हो जाता है। बाल्यावस्था मे जो दुबला-पतला सत्य को बडे नग्न रूप में उपस्थित किया गया है जो होता है, वह बड़े होने पर काफी स्थल याने मोटा-ताजा श्रद्धाशील व्यक्तियो के लिए मर्मान्तक प्रहार और कटु हो जाता है। नेहरू जी आदि अनेक व्यक्तियों के बाल्या- सत्य-सा कहा जा सकता है क्योंकि जिन ग्रन्थो को, जिन वस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था के अनेक चित्रो को देखते प्राचार्यों की रचना मानते रहे उनको उन्होंने बहुत परहै तो यह कल्पना में भी नहीं पाता कि ये सभी एक ही वर्ती रचना सिद्ध किया, और जिन विधि-विधान वाले व्यक्ति के चित्र है। कुछ इसी तरह का प्रान्तरिक-चित्र ग्रन्थों को श्रद्धा एव अादर की दृष्टि से देखा जाता था स्वर्गीय श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार का भी मुझे दिखाई उनमें से रोमांचक बातों को प्रकट मे लाना जिससे देता है। साधारणतया मुख्तारगिरी या याने मुख्तारपने उन ग्रन्थो के प्रति धारणा ही बदल जाय, इस का काम या पेशा करने वाले व्यक्ति भिन्न प्रकार के होते प्रकार का क्रान्तिकारी कदम बहुत विरले व्यक्ति ही है। मुख्तार साहब इस दृष्टि से एक निराले ही व्यक्ति उटा पाते है । कई व्यक्ति सही बात को जानते भी हैं पर थे। जिन्होंने अपने जीवन के करीब ४० वर्ष साहित्य समाज के विद्रोह एवं निंदा के भय से साहस पूर्वक उन्हें सेवा में लगा दिये । मुख्तार साहब की संक्षिप्त जीवनी अभी प्रकट नहीं कर पाते। जबकि मुख्तार साहब ने 'ग्रन्थ डा० नेमिचन्द्र शास्त्री के द्वारा लिखी हुई, जैन विद्वत्परि- परीक्षा में बडा निर्भीक और साहसिक कदम उठाया और षर से प्रकाशित हुई है। उससे अभी तक जो बातें ज्ञात परीक्षा का एक प्रादर्श उपस्थित किया । वास्तव में परीनहीं थी, वे प्रकाश में पाई हैं। उनके निकट सम्पर्क मे क्षक पक्षपात से काम नहीं ले सकता। उसे तो तथ्य पर रहने वाले व्यक्ति मोर भी बहुत-से प्रशात तथ्य बतला ही पूर्ण निर्भर रहना पड़ता है।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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