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________________ मानव जातियों का देवीकरण प्रत्युत उनको स्वीकार करने मे जैनागमो मे कुछ ऐसे लड़की थी। जिसने दुप्यन्त को पसन्द किया । गगा देवी ने प्रानुमानिक प्रमाण प्राज भी उपलब्ध हैं । प्रौपपातिक सूत्र राजा शान्तनु के साथ पाणि-ग्रहण किया। इन्द्र स्वय में इन देवों के अंग प्रत्यग, गति प्रादि का स्पष्ट विवेचन गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या पर मोहित हो गया था। हना है पर यह वर्णन कहीं नही पाया कि देव पाए और एक बार गौतम ऋषि को अनाम्थिति में उन जैसा रूप उनके पैर धरती से चार अगुल ऊपर थे तथा उनकी पलके धारण कर अहिल्या के पास चले पाए। गौतम ऋषि झपकार नही रही थी जब कि जैन सिद्धान्त यह मानता अचानक पाए और यह देख कर तो क्रोधित होकर अभिहै कि वैक्रिय शरीर धारक देवो के पैर धरती से चार शाप दिया कि तुम्हारा शरीर चलनी की तरह महस्रों छिद्रों अंगुल ऊपर रहते है और आँखें भी झपकारा नहीं करती। वाला हो फिर वग्दान विगंप से इन्द्र के गहन छिद्र सहस्र इन चार प्रकार के देवों के आभूषण तथा मुकुटो के विशेष चक्र के रूप में परिवर्तित हो गये तभी से इन्द्र सहस्र चक्षु चिह्नों का वर्णन करते हुए बताया कि इनके कान में कहलाने लगे। ' कुण्डल था। शरीर मे चन्दन का लेप लगाया हुआ था। रघुवग मे आता है कि स्वय रघु मपन्नीक इन्द्र से झोने वस्त्र पहने हुए थ। दसा अगुलिया म अशाठया पहना मिलने गए। देवासुर संग्राम में दुप्यन्त, दशरथ आदि ने हई थी। मणि रत्नो से जटित भुजाओ पर भुजबन्ध थ, दैत्यो में लड़ने के लिए इन्द्र को मदद की थी'। निरन्तर कर्णपीठ थे। मस्तक से लेकर नीचे तक पुष्प मालाए युद्ध होने के कारण देवो के पास टास्त्र मामग्री बहुत पहनी हुई थी। देश-देश की वेशभूषाए थी। नागफण, अच्छी तैयार हो गई थी। महाभारत की बडाई से पहले गरुड़, बच, पुष्प, सिंह, अश्व, हाथी, मृग, सर्प, वृषभ, अर्जुन स्वय हिमालय को पार कर दिव्य शस्त्र लाने को तलवार, मेंढक, मम्पक आदि चिह्नो से उनके मुकुट चिह्नित कर थे । अब देखना यह है कि इन आभूषणो मे से कौन से देव जब मनुप्यो से मिलने आते तो हिमालय को पार प्राभूषण ऐसे है जिनका उपयोग यहां की मानव करके पाते थे और मनुष्यो को भी देवो मे मिलने जाते जाति नही करती थी। भगवान को वन्दन करने जाते समय महाराज कोणिक ने भी इसी प्रकार के आभूषण समय हिमालय पार करना पड़ता था। इससे स्पष्ट है कि हिमालय की ओर तथा उसकी चोटियो पर देव सस्कृति धारण किये हुए थे। का विकाम था। दूसरी मोर मध्य भूभाग मे मानव रहते इन देवो के मुकुटो में जो पशु-पक्षियों के चिह्न है वे । थे तथा हिन्दुस्तान के दक्षिण-पश्चिम मे दैत्य संस्कृति सब के सब पशु-पक्षी इस धरती के ही है। कोई भी ऐसे प्रचलित थी जिममे अमुर, नाग, मुपण, कच्छप, गरुड़ आदि पशु-पक्षी का चिह्न नहीं है जो इस धरती के अतिरिक्त काफी जातियाँ सम्मिलित थी। इनमे देव जाति बहुत ऊची स्थान के हो। देश काल की दूरी में अखण्डित एकरूपता मानी जाती थी, वह उर्ध्व स्थान में रहती थी। संस्कार नही होती। पाँच महाद्वीपों के भी सब के सब पशु-पक्षी अच्छे थे। दिमाग बहुत अच्छा होता था। लोग उन्हें एक नहीं होते और न सब प्रकार के आभूषणो मे भी एक पूज्य दृष्टि से देग्वा करते थे। आज भी कहते है कि बारूद रूपता होती है तो फिर क्या कारण है कि एक अदृश्य के गोले सबसे पहले चीन में नैयार हुए जो बहुत संभव है दुनियाँ में रहनेवाले प्राणियों की मानव जाति से एकरूपता कि उन्ही देव वंशजों की देन हो । मानव जाति का निवास थी। यही प्रश्न बस हमे यहाँ की जाति विशेष मानने को मध्य मे था। यहा धर्मप्रधान संस्कृति थी। त्याग और विवश कर देता है। तपावल पर इनके सामने स्वय देवता भी नतमस्तक थे। पौराणिक साहित्य से तो यह भी स्पष्ट होता है कि इन देवों और मनुष्यों के बीच वैवाहिक सम्बन्ध होते थे। १. पुगदेवासुरे युद्धे सह राजषिभिः पतिः । देवता की सन्तान मैनका का सम्बन्ध विश्वामित्र से हुआ अगच्छत्वामुपादाय देवगज्यस्य सायकृत ॥११॥ था। उर्वशी राजा पुरुरवा से भोहित थी जो अप्सरा की -वा० रा० अयोध्या काड सर्ग:
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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