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________________ २१२ वर्णन है। श्री मुख्तार जी ने बम्बई प्रवास में इसकी श्री मुख्तार साहब ने एक और महत्वपूर्ण कार्य का पाण्डुलिपि देखी थी। वहां से पाकर पाप ने अनेकान्त में सूत्रपात किया वह है, विलुप्त प्रायः ग्रन्थों का सन्दर्भो के एक लेख लिखा, जिसमें यह सम्भावना व्यक्त की कि आधार पर पुनराकलन । आपने विशाल जैन-साहित्य में 'तत्त्व विचार' मौलिक ग्रन्थ प्रतीत नही होता। इसे लिखे उल्लेखों के आधार पर ऐसे बहुत से अप्राप्य ग्रन्थो संग्रह ग्रन्थ होना चाहिए'।' मुख्तार जी की इस सूचना ने की एक सूची तैयार की थी। कुछ ग्रन्थों की प्राप्ति भी मुझे सतर्क कर दिया । और जब मैंने सूक्ष्म दृष्टि से ग्रन्थ उन्हें हुई थी। किन्तु अधिकांश कार्य यह अधूरा ही पड़ा का परीक्षण किया तो सचमुच 'तत्त्वविचार' की लगभग है। इसके लिए गहन अध्ययन एव अथक परिश्रम की २५० गाथायें अन्यान्य २०-२२ प्राकृत के अन्थों से सगृहीत आवश्यकता है। फिर भी मुख्तार साहब के इस कार्य को की गयी हैं, जिनमें कुछ श्वेताम्बर ग्रन्थ भी है। श्री पूरा करने से मै समझता हूँ उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि मुख्तार सा० के 'पुरातन जैन वाक्य सूची' ग्रन्थ से इस ही अपित नही होगी, अपितु जैन-साहित्य की बहुत बड़ी सम्बन्ध में मुझे पर्याप्त सहायता मिली। श्री मुख्तार सा० सेवा भी। का यह प्रयत्न अपने ढग का अकेला है। वे कितने श्री मुख्तार साहब की अनुसन्धान प्रवृत्ति के विकास परिश्रमी थे यह जानने के लिए अकेला यही एक ग्रन्थ का फल 'अनेकान्त' है । अनेकान्त के प्रकाशन से केवल पर्याप्त है। जैन-साहित्य ही प्रकाश मे नही पाया, बल्कि जैन विद्वानी की एक लम्बी परम्परा प्रारम्भ हुई है । मुख्तार सा० के अनुसन्धान के क्षेत्र मे श्री मुख्तार सा० का दूसरा सम्पादकीय टिप्पणों से कोई अच्छा से अच्छा लेखक भी प्रशासनीय कार्य जैनाचार्यों के विषय में खोजवीन करने का है। पात्र केसरी और विद्यानन्द की पृथकता आप के नही छूट सका । उन्होने हमेशा लेख को देखा है, लेखको को नहीं । शायद इसी का यह परिणाम है, लेखन में प्रयत्न से ही मान्य हो सकी। पंचाध्यायी के कर्ता की आपने खोज की। तथा महान् प्राचार्य स्वामी समन्तभद्र दिनोंदिन प्रमाणिकता की वृद्धि होती गयी। और कई के इतिहास एव साहित्य के विषय में तो आपने अपना लेखक मुख्तार सा० की इस कृपा से पाठको मे उनसे भी जीवन ही लगा दिया है। श्री मुख्तार सा० की जनशासन ऊँचा स्थान प्राप्त कर सके। इस तरह स्वर्गीय श्री मुख्तार सा० की जन-साहित्य के प्रति इस सेवा को देखते हुए पं० राजेन्द्रकुमार जी के अनुसन्धान के क्षेत्र मे अपूर्व देन है । जीवन के अन्तिम का कथन यथार्थ है-'मुख्तार साहिब यह काम न करते तो दिगम्बर-परम्परा ही अस्त-व्यस्त हो जाती। इस दिनों में भी वे उसी उत्साह और लगन के साथ साहित्यइस कार्य के कारण मैं उन्हें दिगम्बर परम्परा का संरक्षक साधना मे रत रहे। वे अनुसन्धान के एक ऐसे मालोचकमानता है।' इसी तरह महावीर भगवान् के समय आदि स्तम्भ थे, जिससे निरन्तर अनेक दीपक प्रज्वलित होते के सम्बन्ध मे जो मतभेद एव उलझने उपस्थित थीं उनका रहे है । मुख्तार सा० ने हमेशा सब को गति प्रदान की है । ऐसा लगता है, अपने अन्तिम दिनों मे भी वे इस अत्यन्त गम्भीर अध्ययन करके मापने सर्वमान्य समन्वय स्वभाव को नहीं भूले। जब अपनी अन्तिम सांसों के किया और वीर शासन-जयन्ती की खोज तो पापके जीवन कारण गतिरोध हो रहा था तो मुख्तार सा• ने अपनी का एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। सासें उन्हें प्रदान कर दी। समय भी उनसे उपकृत हो गया। ऐसे महान तपस्वी के चरणों में मुझ अकिंचन के १. अनेकान्त, वर्ष प्रथम, किरण ५, पृ० २७५ अनन्त प्रणाम। २. इस विषयक लेखक का एक लेख अनेकान्त की ३. जैन जागरण के अग्रदूत' में प्रकाशित परिचय के प्रगलीकिरण में प्रकाशित हो रहा है। माधार पर।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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