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अमर साहित्य-सेवी
श्री पं० कैलाशचन्द सि० शास्त्री स्व. पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार एक आदर्श ही समाज सेवा में योगदान किया प्रतीत होता है। समाजसेवी और साहित्य सेवी थे। मैने जब से होस सन् १९१० के लगभग खतौली मे जो दस्सों और सम्हाला उनका नाम सुना । ऐसा प्रतीत होता है मानों बीसों के बीच मे ऐतिहासिक मुकदमा चला और उसमे उनका निर्माण सेवा के लिये ही हुआ था और वह भी जैन स्व. पं० गोपालदास जी वरया और मुख्तार साहब ने समाज और जैन साहित्य की।
दस्सों के पक्ष में गवाही दी तथा वीसो की अोर से स्व. पं. जब समाज मे प्रचारक नही थे उन्होंने महासभा में न्याय दिवाकर पन्नालाल जी उपस्थित हुए । इस काण्ड ने उपदेशकी का भी कार्य किया। उसके पश्चात् कुछ समय उत्तर भारत के जैन समाज को उद्वेलित कर दिया, उसी तक महासभा के मुखपत्र जैन गजट की सम्पादकी भी की। प्रसंग से मुख्तार साहब ने जिन पूजाधिकार मीमासा नामक यह उस समय की बात है जब समस्त दिगम्बर जैनो को ट्रैक्ट लिखा। इस ट्रेक्ट से ही मुख्तार साहव की लोह एक मात्र सभा महासभा थी और बाबू पण्डित का भेद लेखनी का आभास होता है तथा उनकी अध्ययन शीलता प्रगट नहीं हुआ था। महासभा के निर्माण मे और उसे प्रकट होती है । इसके पश्चात् उनकी ग्रन्थ परीक्षा शीर्षक प्रगति देने मे बाबू और पण्डित दोनो का समान योग रहा लेखमाला जैन हितैषी में क्रमश: प्रकट हुई। उनकी इन है दोनो ने ही कन्धे से कन्धा मिलाकर काम किया है। समीक्षात्रों का या जिन पूजाधिकार मीमांसा का कोई फलतः मुख्तार साहब ने भी प्रारम्भ में महासभा के द्वारा उत्तर मेरे देखने में नहीं आया इसी से प्रकट है कि मुख्तार स्वतंत्र जैन :
पकड़ की कोई बात उनकी सूक्ष्म और पैनी दृष्टि से जैन जगत ने यह समाचार महान् खेद के साथ सुना बच नहीं पाती थी। निर्भीकता एवं सत्यता के वे प्रतीक कि जैन विद्वत् समाज के उदीयमान नक्षत्र, साहित्य महा- थे, पुरातत्त्व सम्बन्धी खोज में आपका सर्वप्रथम अग्रगामी रथी, सुधारक, मीमांसक, विचारक, पालोचक, लेखक, द्रुतगति कदम है । जब आप किसी भी तथ्य को सामने पत्रकार, दार्शनिक विद्वान् पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार लाते थे तब उसका अकाटय एवं युक्ति सगत प्रमाणों के का ९२ वर्ष की आयु मे स्वर्गवास हो गया है।
द्वारा खन्डन का मन्डन करते थे। तब विरोधी पक्ष का माज उनका नश्वर देह हमारे समक्ष नहीं है, पर भी व्यक्ति प्रापका हो जाता था, फिर उसका यह साहस "यशः काय' के रूप मे पाप सतत विद्यमान है। श्रद्धेय नही होता था कि मै दुबारा लिखू । मुस्तार जी आज जैसे उच्च डिग्री होल्डर नही थे। पर किसी भी विषय पर शोध निबंध लिखने वाला उनका ज्ञान, उनका आलोडन, मन्थन, उनका अनुभव स्नातक पहिले मुख्तार जी से समति और पाशीर्वाद लेता इतना विशाल था कि वे अनेक न्यायाचा, दर्शनाचार्य था तब वह अपनी लेखनी चलाता था। साहित्याचार्यों के जनक एव सृजक थे।
सच तो यह है कि श्रद्धेय मुख्तार जी स्वय एक जोती पूर्व जन्म के कुछ ऐसे सस्कार लेकर जन्मे थे कि अापके जागती सस्था थे, वे स्वयं वीर-सेवा-मन्दिर थे। उनकी ज्ञानावरणी कर्म का क्षयोपशम इस रूप में सुखद फलित लोह लेखनी द्वारा लिखित साहित्य उनकी प्रतिभा हुप्रा कि आपने समाज मे एव देश मे साहित्य सेवा, सम्पन्न विद्वत्ता का परिचायक है। 'मेरी भावना' आपको साहित्य प्रचार, अनुसबान, गभीर विवेचना प्रादि कार्यो अमर सार्वजनिक रचना है।। के द्वारा अमर हो गये । पूज्य मुख्तार जी निष्पक्ष एव आपके द्वारा लिखित प्रकाशित साहित्य मैने पढ़ा है, प्रसग वश कटु समालोचक भी थे। अतएव शास्त्राधार इतनी उच्चकोटि के विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ मुझे कम ही देखने से खरी कहने में वे नहीं चूकते थे। उन जैसे मीमासक
को मिले है।
आपके चरणोंमें लेखककी हार्दिक श्रद्धांजलि समर्पित है। एवं समालोचक विद्वान् का प्रभाव सा हो गया।