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________________ मानव जातियों का देवीकरण काव्य मेघदूत में यक्ष को प्रमुख पात्र के रूप में स्वीकार यक्ष पौर राक्षस जाति की उत्पत्ति के विषय में किया है । यक्ष का अधिपति कुबेर' कैलास की चोटी पर पौराणिक जगतकी यह मान्यता है कि एक बार सब मनुष्य रहता था इसके पास पुष्पक विमान था। यह विमान मिल कर ब्रह्मा के पास गए और उन्होंने ब्रह्मा से पूछा बहुत तेज गति से दौडा करता था। चैत्ररथ नाम का हमें क्या करना चाहिए ? तभी ब्रह्मा ने कहा--प्राणियों बन ही सुन्दर वन था। अलका उसकी नगरी थी। धन की रक्षा और पूजा करो। जिन्होंने रक्षा का भार लिया का स्वामी माना जाता था। शिव का मित्र था। रावण वे राक्षस और जिन्होंने पूजा का भार लिया वे यक्ष कहका सौतेला भाई था। मनुष्यों को वाहन भी बनाता' था। लाये। एक बार यक्ष और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध आज हम यक्ष और राक्षस शब्द को निम्न अर्थ में छिडा । सारी भूमि रक्त पंकिल हो गई पाखिर यक्ष हार लेते है किन्तु कभी इस धरती पर यक्ष और राक्षस दोनों गए। कुबेर का पुष्पक विमान रावण ने छीन लिया। ही बहुत उच्चस्तरी जाति थी। गवण जब पुष्पक विमान पर चढ कर गिरि को पार कर किन्नर किंपुरुषजाने लगा तब विमान रुक गया । नान्दी ने आकर बताया किन्नर और किपुरुष भी एक यक्ष जाति थी जो प्राज कि यहाँ शिव रहते है उनकी इजाजत के बिना देव दानव, भी हिमाचल प्रदेश के उत्तर भाग में मिलती है। इस यक्ष, राक्षस, किन्नर, नाग, गरुड, गन्धर्व प्रादि कोई भी जाति के मनष्यो का मख घोडे की तरह लम्बा होता था पार नही कर सकता । तब वह शिव के पास गया । शिव लिा दमे तगवदन' भी कहा जाता था। एक बार ने उसे चन्द्रहास दिया। और उसी दिन से वह शिव का चन्द्र के पुत्र बुध ने अनेक स्त्रियो से घिरी त्रिलोक सुन्दरी पुजारी हो गया। इस युद्ध के बाद समग्र यक्ष जाति । को घुमते हुए देखा। वह उसके रूप को देखकर पाश्चर्य राक्षस जाति के साथ मिल गई । चकित हो गया। मन ही मन सोचा नागकुमारियों असुर राक्षस कुमारियो तथा अप्सरापो से भी अधिक सुन्दर यह स्त्री राक्षस जाति भी एक बहुत बलवान जाति थी। कौन है। पास जाकर पूछा तो पाया कि यह त्रिलोक राक्षम संस्कृति का विस्तार दक्षिण में भी था। राक्षस सुन्दरी अपने वर को ढढ रही है। तभी बुध ने पास के जाति का सुप्रसिद्ध अधिपति पाज रामायण के पाठकों से पर्वत की मोर मकेत करते शाक प्रविदित नही है । दक्षिण के कुछ भाग मे अाज भी रावण कुछ विशेष तप करते हुए निवास करो तुम्हे किपुरुष जाति को पूज्य माना जाता है और राम को हेय दृष्टि से समझा मिलो। मन की बातो मे जाना जाता है। उनका अभिमत है कि रावण का चरित्र कितना कैकयो तीर से वीधी हई किन्नरी के समान भूमि पर लेट ऊंचा था कि एक नारी की बिना इच्छा के उस पर हाथ जाती हैं। तक नहीं उठाया और उसने अपने प्रण पर प्राणो का बलि- महोरगदान तक कर दिया। जब कि राम अपनी एक नारी की उरग भी एक जाति थी। यह नाग वश की उपशाखा सरक्षा भी नही कर सका । रावण पहले सूर्यवशी था और ३. बा. रा. उत्तर काड सर्ग ४ इलांक ११-१२.१३-१४ सर्य की पूजा किया करता था सूर्यको रा कहा जाता था। ४ The ss. Ch. ४ P ३२ रा की पूजा करने के कारण उसका नाम रावण पडा ५. किन्न इस्तू किम्पुरुषस्तूरजवदनो मयुः ।। था। -प्र० चि० देव कांड सर्ग ८८ श्लो०१३-२३ १. पौलस्त्यर्वश्रवण रत्नकराः कुबेर ।। ६. वा० रा० उत्तर काड सर्गफ श्लो० १३-२३ अभि० चि० दे० का० २ श्लोक १८६ ७ विदर्शिता यदादेवी-कुब्जया पापया भृशम् । २ यक्षौ नृधर्मधन दो नर वाहन च० ।।. तदा शेतेस्म सा भूमी, दिग्धबिद्धेव किनरी ॥१॥ -अभि० चि० दे० का० २ श्लोक १८६ । -बा० रा० अयोध्या काड सर्ग:
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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