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________________ अनेकान्त तक्षक जाति की सूचना तक्षशिला विश्वविद्यालय से अस्तित्व इस धरती पर है। एक भी नाम ऐसा नही है मिलती है । जनमेजय ने इसी स्थान पर नाग यज्ञ किया जिनका निशान इस धरती पर नहीं है तथा इन देवों के था उसमें उसने नागजाति को होम दिया था क्योंकि चिह्न और वाहन भी इस धरती के ही पशु-पक्षी है। इस तक्षक जाति ने जनमेजय के पिता परीक्षित को मार डाला अनुमान के आधार पर इन देवो का धरती के निवासी था'नाग जाति का गरुड़ जाति से बहुत वैर था। गरुड होना ही अधिक पुष्ट होता है। का प्रागरूप (SU) सु जाति' है। इसे सुपर्ण भी कहा व्यन्तर देवजाता है। सूपर्ण और नाग दोनों पड़ोसी थे। इमलिए (१) पिशाच, (२) भूत, (३) यक्ष, (४) राक्षस, उनमें स्वाभाविक वैर हो गया था । सुपर्ण जाति (गरुड़) (५) किन्नर, (६) किंपुरुष (७) महोरग, (८) गन्धर्व । जाकात नदी के पूर्व में रहती थी। आज उसे जर्फसन इनमें सर्वप्रथम पिशाच है। पिशाच भी यहाँ की एक कहा जाता है। तक्षक की मूल जाति टोकारिस' थी जो जाति थी जो कश्मीर की तरफ रहती थी यह जाति टोकारि स्थान में रहती थी। जिसको आज तुकिस्तान कच्चा मास खाती थी। पैशाची भाषा प्राकृत की एक कहा जाता है। समुद्र मन्थन के समय देव, दैत्य, नाग, महत्त्वपूर्ण भाषा है। उसका होना ही कितना पुष्ट प्रमाण कच्छप, गरुड, गन्धर्व, आदि सभी जातिया सम्मिलित है कि इसके बोलने वालों के अस्तित्व मे सदेह नही किया थीं। देवासुर संग्राम में इन जातियो ने दैत्यो का साथ जा सकता है। दिया था। विद्युत्कुमार अग्निकुमार आदि कौन थे ? इसका ऐतिहासिक और साहित्यिक पृष्ठो मे कोई उल्लेख नही तिब्बत प्रदेश में भूट्टान नाम का एक प्रदेश है । आज मिलता अनुमान होता है कि ये किसी जाति के मूल नाम के इतिहासज्ञ भूट्टान का भी भूत स्थान से अर्थ बैठाते है। नहीं उपाधिगत नाम हों। जैसे विद्युत्कुमार उस वर्ग को उनका अभिमत है कि यहाँ एक भूत जाति निवास करती थी इसलिए इस स्थान का नाम भूत स्थान और क्रमशः कहा जाता हो कि जिसके हाथ मे विद्युत सम्बन्धी कार्यो । भूट्टान हो गया है। वनवास करते समय राम की हित का सचालन हो अग्नि की सामग्री पर शासन करने वाले कामना के लिए भूत जाति का स्पष्ट उल्लेख वाल्मीकि अग्निकुमार द्वीपों का सरक्षण करने वाले द्वीप कुमार, गमायण मे हुआ है। समुद्रों पर पहरेदारी करने वाले उदधिकुमार दिशामो पर आधिपत्य रखने वाले दिग् कुमार वायु सम्बन्धी यानों का यक्षसचालन करने वाले वायुकुमार और युद्ध के समय साइरन यक्ष भी एक जाति थी जो वृक्ष के नीचे भी अपना की तरह विशेष यन्त्रो का संचालन करने वाले स्तनित घर बना कर रहती थी इसलिए इनका दूसरा नाध वटकुमार कहे जाते हो। हो सकता है इन नामो की कोई वासी भी है। इनको गुफापो में छिपकर रहने का अभ्यास जातियाँ हो या और भी कोई कारण रही हो पर यह तो था इसलिए इनका नाम गुह्यक भी है कालिदास ने अपने स्पष्ट ही है कि किसो के नामकरण में स्थानीय संस्कृति ४. राक्षसाना पिशाचाना रौद्राणां क्रूरकर्मणाम् । तथा प्रासपास के वातावरण का हाथ रहता है। स्थानीय क्रव्यादाना च सर्वेण च मा भूत्पुत्रक ते भयम् ॥१७॥ पशु पक्षियों तथा अनेक अत्यन्त प्रसिद्ध वस्तुओं के आधार -अयोध्या काड सर्ग २५ पर भी अनेक नाम निर्मित होते है । इन भवनपति देवो के ५. मयाचिता देवगणाः शिवादयो महर्षयो भूतगणा: सुरोरगाः जितने भी नाम है वे सब नाम उन पदार्थों के है जिनका अभिप्रयातस्य वन चिराय ते हितानि कांक्षन्तु दिशश्च १. भारतीय इतिहास की रूपरेखा पृ० ५२३ राघवः ॥४३॥ -अयोध्या काड सर्ग २५ २. Thes.s. Gh. IV P.33 ६. यक्षः पुण्यजनो राजा गुह्यको वटवास्यपि ॥ ३. वही -अभिदान चि० देव कांड २ श्लोक १६४
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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