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अनेकान्त
प्रणाली से जैन विषयों का वर्गीकरण करके इस लेश्या ४. जिनेन्द्र पञ्च कल्याणक स्मारिका-सम्पादककोश की रचना की है। भागमों मे लेश्या के सम्बन्ध में श्री पं पन्नालाल जी साहित्याचार्य आदि, प्रकाशक-श्री जो कुछ भी कहा गया है, उसको विषय वार सकालत सागरचन्द जी दिवाकर एम० ए० प्रधान मंत्री जि. पच किया गया है। लेश्या सम्बन्धि विषयों की संख्या १०० के कल्याणक समिति सागर । लगभग है। उनमे मुख्य विषय निम्न प्रकार है :- गत वैशाख मास में सागर में सम्पन्न हुई पंच कल्याणक द्रव्यलेश्या (प्रायोगिक) द्रव्यलेश्या (विस्रसा) भावलेश्या, प्रतिष्ठा की स्मृति स्वरूप यह स्मारिका उक्त प्रतिष्ठा लेश्याजीव, सलेशीजीव, लेश्या और विविध विषय और सम्बन्धी कार्य-कलाप के प्रचारार्थ की गई है। स्व० लेश्या सम्बन्धी फुटकर पाठ । इनके अन्तर्गत अनेक अवान्तर
पूज्य १० गणेशप्रसाद जी वर्णीका-निवास सागर में विशेष विषय हैं, जिनका विवेचन ग्रन्थ मे किया गया है-प्रकृत
रहा है । उनकी स्मृति को चिरस्थायी रखने के लिए वहां विषयों पर आगमिक वचनों का शाब्दिक अर्थ भी दे दिया
लगभग एक लाख रुपयो के व्यय से वर्णी स्मृति भवन है, और जहां आवश्यकता समझी वहां विवेचनात्मक अर्थ
और उसके ऊपर बाहुबली जिनालय का निर्माण कराया
गया है। जिनालय मे अतिशय मनोज्ञ बाहुबली की विशाल भी दे दिया है। जहा तक मुझे मालूम है किसी जैन विषय पर इस तरह का यह कोश प्रथम बार ही प्रकाशित
मूर्ति विराजमान की गई है। उपयुक्त प्रतिष्ठा इसी मूर्ति हुप्रा है । सम्पादको का विचार है कि इस तरह से सभी का हुइ हा जैन विषयो पर कोश तय्यार कर प्रकाशित किये जाय। यह प्रतिष्ठा महत्त्वपूर्ण रही है। इसमे सम्पन्न प्रत्येक इस कोप मे ३२ श्वेताम्बरीय प्रागमों, तत्त्वार्थसूत्र और कार्यक्रम अाकर्षक था। सिंघई प्रकाशचन्द जी ने प्रस्तुत उसके टीका ग्रन्थो का उपयोग किया गया है जिनमे स्मारिका में प्रतिष्ठा सम्बन्धी सभी कार्यों का विवरण दिगम्बरीय सर्वार्थ सिद्धि तत्त्वार्थ राजवातिक और तत्त्वार्थ 'पाखो देखा' शीर्षक मे बहुत विस्तार से दे दिया है। श्लोक वार्तिक गोम्मटसार जीवकाण्ड शामिल है।
भविष्य में होनेवाली प्रतिष्ठाओं के लिए यहां का कार्यक्रम
आदर्श स्वरूप हो सकता है। कोग के प्रारभ मे हीरा कुमारी वोथरा का प्रामुख है कार्यक्रम के विवरण के अतिरिक्त प्रकृत स्मारिका मे उन्होंने जिन बातो पर प्रकाश डाला है सम्पादको को अन्य कितने ही महत्त्वपूर्ण लेख व भाषण प्रादि भी है तथा उससे लाभ उठाना चाहिये । वे प्राचार्य नेमिचन्द सिद्धान्त प्रतिष्ठा के समय लिये गये बहुत से चित्र भी दे दिये गये चक्रवर्ती की द्रव्य लेश्या की परिभाषा को ठीक नही है। साथ ही आय-व्यय का हिसाब भी दे दिया गया है। मानती उन्होंने उसकी आलोचना की है। किन्तु दिगम्बर प्रतिष्ठा के समय सागर में सम्पन्न हुए भा० दि० परम्परा द्रव्य लेश्याके साथ भावलेल्या का सम्बन्ध नियामिक जैन विद्वत्परिषद् के अधिवेशन की कार्यवाही का भी उसमे नही बतलाता । कुमारी जी ने द्रव्यलेश्या और भावलेश्या सक्षिप्त विवरण है। साथ ही दूर-दूर से प्राकर इस दोनों को एक समझ लिया है जो ठीक नही है। इस तरह अधिवेशन में संमिलित हुए ११६ विद्वानो की नामवली के कोश निर्माण हो जाने पर जैन दर्शन के अध्ययन में भी प्रगट की गई है। विशेष सुविधा हो जायगी। सम्पादक द्वय का यह प्रयत्न
गा। सम्पादक द्वय का यह प्रयत्न इस प्रकार यह स्मारिका अतिशय उपयोगी प्रमाणित अभिनन्दनीय है। यहां यह उल्लेखनीय विशेषता है कि ग्रय होगी। छपाई व सजावट भी उत्तम है । इस सुन्दर का मूल्य १०) रुपया रक्खा गया है किन्तु विशिष्ट विद्वानों स्मारिका के सम्पादन व प्रकाशन में जिन्होंने पर्याप्त विश्वविद्यालयों और विदेशों मे निःशुल्क वितरित किया परिश्रम किया है वे श्री प. पन्नालाल जी साहित्याचार्य जायगा । ग्रन्थ मे प्रूफ संशोधन-सम्बन्धि अशुद्धियां और श्री सागरचन्द जो दिवाकर एम० ए० आदि अतिशय खटकती है।
-परमानन्द शास्त्री धन्यवाद के पात्र है। -बालचन्द्र सिद्धान्त-शास्त्री