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________________ साहित्य-समीक्षा १९१ वैदिक पुराणों में प्रतिपादित भूगोल के साथ तुलनात्मक था। इस चरित ग्रथ की रचना महाकवि वीर ने वि० समीक्षा करते हुए, जनपद, गाव-नगर, राजधानी, नदियाँ, सं० १०७६ मे माघ शुक्ला दशमी के दिन पूर्ण की थी। पर्वत, वनप्रदेश, वृक्ष सम्पत्ति, जीवजतु और पशु जगत् ग्रन्थ अपभ्रश भाषा की १० सन्धियो मे पूर्ण हुआ है। का चित्रण किया है । तृतीय अध्याय में समाजगठन, कुल- जम्बू स्वामी की लोकप्रियता का सबसे बड़ा उदाहरण कुर, समवसरण, चतुर्विधसघ साधु, गृहस्थ और वर्ण विविध भाषामो मे विविध विद्वानों और कवियो द्वारा जाति प्रादि सामाजिक सस्थानो और रीति-रिवाजों का रची गई शताधिक रचनाएं है । जो उनके जीवनकी महत्ता विवेचन है । चतुर्थ अध्याय मे अन्न, भोजन, पक्वान, फल, पर प्रकाश डालती है। जम्बू स्वामी कथा की दीर्घ पेयपदार्थ, वस्त्र, आभूषण प्रसाधन सामग्री, वाहन, विनोद परम्परा, कथा का मूल स्रोत और उसका तुलनात्मक क्रीडा और कलागोष्ठी आदि सास्कृतिक विषयो का अध्ययन कवि वीर के जम्बू स्वामा चरित्र की विशेषता के अच्छा दिग्दर्शन कराया है। यह अध्याय महत्वपूर्ण है। निदर्शक है। क्योकि इसमे तत्कालीन समाज के रहन-सहन, गोष्ठी डा. विमलप्रकाश जैन ने अपभ्रश भाषा के मूल विनोद आदि का सजीव चित्रण है। पचम अध्याय में । ग्रन्थ का ललित हिन्दी में अनुवाद किया है। साथ ही ग्रथ शिक्षा का स्वरूप और शिक्षा से सम्बद्ध विषयो का- की १४८ पेज की महत्वपूर्ण प्रस्तावना मे ग्रन्थ और प्रथललित कला, चित्र कला, वाद्य, नृत्य गीत आदि का कार के सम्बन्ध में विस्तृत समीक्षात्मक अध्ययन उपस्थित विचार है। छठवे अध्याय मे कृषि प्रादि आजीविका के किया है जिसमें प्रथ के महाकाव्यात्मक लक्षणो, विषय से साधन, असिमसि कृपि, आदि राजनैतिक विचार, अस्त्र-शस्त्र सम्बद्ध विभिन्न चरित्रो, विषय के अभ्यन्तरवर्ती उपाख्यानो नामावली और युद्धादि का कथन दिया है। सातवे अध्याय काव्यग्सो, अलकारो. काव्यगुणों, छन्दो रीति, भाषा, मे धर्म और दर्शन का विवेचन है। मुभाषित लोकोक्तियो और कथा-कहानियो आदि का आदिपुराण का सभी दृष्टियो से विवेचनात्मक मन्दर चित्रण किया है। साथ ही सामाजिक अवस्था भौअध्ययन उपस्थित करने वाला यह प्रथम अथ है। इस गोलिक स्थिति, नागरिक जीवन और वैवाहिक पद्धति का ग्रथ का भारतीय विद्वत्समाज मे अवश्य ही समादर प्राप्त भी दिग्दर्शन कराया है। मूलानुगामी अनुवाद क साथ होगा । और जैन पुराणो के अध्ययन की और विद्वानो सस्कृत टिप्पण और शब्दकोष के कारण ग्रन्थ पठनीय एव की अभिरुचि बढेगी। ग्रथ का प्रकाशन सुरुचिपूर्ण है। सग्रहणीय हो गया है। सम्पादक को वीर कवि के 'जम्बूइसके लिए लेखक और प्रकाशक दोनो ही धन्यवाद के । मामीचरिउ' के आधार से जम्बू स्वामी के आलोचनात्मक पात्र है। निबध पर जबलपुर विश्वविद्यालय, जबलपुर से पी. एच. २. जबूस्वामि चरिउ (मूल हिन्दी अनुवाद और डी. की डिगरी की प्राप्त हुई है, जिसके लिए संपादक प्रस्तावना सहित)-सम्पादक डा. विमलप्रकाश जैन एम. धन्यवाद के पात्र है। भारतीय ज्ञानपीठ का यह प्रकाशन ए. पी. एच.डी. रीडर सस्कृत पालि प्राकृत विभाग जबल- उसके अनुरूप हा है। ग्रन्थ की छपाई सफाई गेटप सभी पुर विश्वविद्यालय, जबलपुर । प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ सुन्दर है। पाठको को इसे मगा कर अवश्य पढना चाहिए। वाराणसी पृष्ठ सख्या ५०२ मूल्य सजिल्द प्रति का १५) ३. लेश्या-कोश-सम्पादक श्री मोहनलालजी वाठिया रुपया। और श्रीचन्द जी जैन चोरडिया। प्रकाशक मोहनलाल प्रस्तुत ग्रन्थ का विषय उसके नाम से स्पष्ट है । अन्थ वाठिया १६ सी डोवार लेन, कलकत्ता-२६ । प्राकार मे जम्बू स्वामी का जीवन-परिचय दिया गया है। जम्बू डिमाई, पृष्ठ संख्या ३००, मूल्य दस रुपया। स्वामी ऐतिहासिक महापुरुष है, जो भगवान महावीर के साक्षात्शिष्य सुधर्म स्वामी द्वारा दीक्षित अन्तिम केवली वाठिया जी ने जैन विषय कोश ग्रन्थमाला स्थापित थे। जिनका परिनिर्वाण सन् ४६३ ईस्वी पूर्व मे हुआ की है। उसका यह प्रथम पुष्प है जिसे आपने दशमलव
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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