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________________ चित्तौड़ का दिगम्बर जैन कीर्तिस्तम्भ परमानन्द शास्त्री चित्तौड़ राजस्थान का प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल रहा वहाँ उन्हे 'व्याख्या प्रज्ञप्ति' भी मिल गई। बाद में उन्होंने है। यह नगर सवा तीन मील लम्बे प्राध मील चौड़े धवला टीका को शक सं० ७३८ में पूर्ण किया। चित्रकूट पाच सौ फूट ऊंचे पर्वत पर बसा हुना है। इसका नाम मे भट्टारकीय गद्दी भी रही है। भट्रारक पद्मनन्दि की चित्तौड़ या चित्रकूट, चित्रकूट दुर्ग या चित्तौड़गढ़ उपलब्ध पट्ट परम्परा १५वी शताब्दी मे दो भागो में विभक्त हो होता है। जो मौर्य राजपूतो के सरदार 'चित्रग' के नाम गई थी। एक पद नागौर में और दूसरा पट्ट चित्तौड़ में से प्रसिद्ध है। इन्होने सातवी शताब्दी के लगभग राज रहा है। चित्तौड के पद का प्रारम्भ भट्रारक प्रभाचन्द्र किया है। बापा रावलने सन् ७३४ मे मौयोंसे इसे हस्तगत से माना जाता है और उस पद के १६ भट्टारकों के नाम किया था। उसके बाद वहां सोलकी, चालुक्य, चौहान उल्लिखित मिलते है। और गुहिलवंशियों आदि राजपूतो ने राज किया है। वि. स. ११९२ मे जयकीति के शिष्य अमलकीति यह वैष्णव सस्कृति का केन्द्र रहा है। यहां के राज्यकीय ने 'योगसार' की प्रति विद्यार्थी वामकीति के लिए लिखगन्दिर बड़े सुन्दर और कलापूर्ण है। वे हिन्दू सस्कृति के वाई थी'। और वि० स० १२०७ मे ही जयकीति ने उज्ज्वल प्रतीक है । चित्रकूट जैन परम्परा का भी प्राचीन प्रशस्ति लिखी थी। प्रस्तुत जयकीति के शिष्य गमकीर्ति समय से केन्द्र रहा है । वहाँ अनेक साधु-सन्तो का निवास थे और रामकीर्ति के शिप्य यश कीति ने 'जगत्सुन्दरी स्थल भी रहा है। उस समय वहाँ उभय सस्कृतिया बरा प्रयोगमाला' नामक वैद्यक ग्रन्थ की रचना की थी। बर पनप रही थी। जैनियों में दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनो जिनदास शाह ने वहाँ पार्श्वनाथ का एक मन्दिर सम्प्रदाय के अनेक मन्दिर और मूर्तियाँ बराबर प्रतिप्ठित निर्माण कराया था, और विक्रम की १६वी शताब्दी में होती रही है। यह नगर अनेक विद्वानो और प्राचार्यों का विहारस्थल रहा है और ग्रन्थ निर्माण स्थल भी। आगत्य चित्रकूटात्ततः सभगवान्गुरोरनुज्ञानात् ।। विक्रम की ८वी शताब्दी के विद्वान याकिनीमुनू हरि- वाट ग्रामे चान्नानतेन्द्र कृत जिन स्थित्वा ।। भद्र सूरि चित्तौड के ही निवासी थे, जिन्होने अनेक प्राकृत- व्याख्या प्रज्ञाप्त मवाय्यपूर्व पट्खण्डतस्तस्मिन् । सस्कृत ग्रन्थो की रचना की है। इन्द्रनन्दि के श्रुतावतार इन्द्रनन्दि श्रुतावतार के अनुसार सिद्धान्त तत्वज्ञ एलाचार्य चित्रकूटपुर के ही २ देखो, जैन सिद्धान्त भास्कर भाग १ किरण ४ पृ.७६ निवासी थे। वीरसेन ने उनके पास चित्रकूट में रहकर ३ श्री जयकीर्ति सुरीणा शिष्येणामलकीर्तिना। षट्खण्डागम आदि सिद्धान्त ग्रन्थों का अध्ययन किया था लिखित योगसाराख्य विद्यार्थीवामकीर्तिनात् ॥ और ऊपर के निबंधनादि आठ अधिकार भी लिखे थे, सं० ११९२ ज्येष्ठ शुक्लपक्षे त्रयोदस्या पडित साल्हेण फिर वे गुरु की आज्ञा से चित्रकूट से वाट ग्राम में आये लिखितमिदं। और वहां मानतेन्द्र के बनवाये हुए मन्दिर मे ठहरे थे। ५ श्री नामीति सि नित: १ काले गते कियत्यपि ततः पुनश्चित्रकूटपुरवासी। रीदृशीचक्रे 'श्रीरामकीर्तिनः ।। स० १२०७ सूत्रधा० श्रीमानेलाचार्यो बभूव सिद्धान्त तत्वज्ञः । देखो, एपिग्राफिया इंडिका जिल्द २ पृ. ४१ पिटर्सन तस्य समीपे सकल सिद्धान्त मधीत्य वीरसेनगुरुः । रिपोर्ट ५ ग्रंथ ६०. उपरितन निबंधनाद्यधिकारानष्ट च लिलेख । ५ देखो, अनेकान्त वर्ष ३, किरण १२, पृ० ६८६ ।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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