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________________ शुभचन्द्र का प्राकृत लक्षण : एक विश्लेषण डा० नमिचन्द्र शास्त्री एम. ए. डी. लिट्, पारा चण्डकृत प्राकृत तक्षण के अतिरिक्त शुभचन्द्रभट्टारक प्राकृत लक्षण मे रचनाकाल का अकन नहीं किया का चिन्तामणि नामक स्वोपज्ञवृत्ति सहित एक प्राकृत गया है, पर पाण्डव पुराण की प्रशस्ति मे उसका रचनालक्षण नाम का प्राकृत व्याकरण उपलब्ध है। इस व्याक- काल उल्लिखित है तथा उक्त चिन्तामणि व्याकरण का रण ग्रन्थ के आदि और अन्त मे ग्रन्थ का नामकरण अकित भी निर्देश पाया है, अत: इस ग्रन्थ का रचनाकाल वि० है। तथा सं० १६०८ से पूर्व है। श्री ज्ञानभूषणं देवं परमात्मानमव्यम् । अगपण्णत्ती मे त्रैवेद्य और उभय भाषा परिवेदी कहा प्रणम्य बालसन्दुख्य वक्ष्ये प्राकृतलक्षणम् ॥ गया है। अत. ज्ञात होता है कि शुभचन्द्र सस्कृत और ग्रन्थ की अन्तिम प्रशस्ति मे प्राकृत इन दोनों ही भापायों के विद्वान् थे। इनका यह शुभचन्द्रमुनीन्द्र ण लक्षणाधि विगाह्य वै। व्याकरण सरल और प्राशुबोध गम्य है । प्राकृतं लक्षणं चक्रे शब्दचिन्तामणिस्फुटम् ॥५॥ प्रस्तुत व्याकरण में त्रिविक्रम के व्याकरण के समान शब्दचिन्तामणिधीमान् योऽध्येति धृतिसिद्धये । तीन अध्याय में चार-चार पाद है। प्रथम अध्याय के प्राकृतानां सुशब्दानां पारं याति सुनिश्चितम् ॥६॥ प्रथमपाद मे ५६ मूत्र, द्वितीयपाद मे १३० मूत्र, तृतीयपाद प्राकृतं लक्षणं रम्यं शुभचन्द्रण भाषितम् । मे १४७ मूत्र और चतुर्थपाद मे १२८ सूत्र है । तृतीय योऽध्येति वै सुशब्दार्थधनराजो भवेन्नरः ॥७॥- माध्यम के प्रथमपाद मे १७२ सूत्र, द्वितीयपाद मे ४०, अतिम प्रशस्ति तृतीयपाद मे ४३ और चतुर्थपाद मे १४७ मूत्र है । इस उपर्यक्त पद्यो से स्पष्ट है कि प्रस्तुत व्याकरण का प्रकार समस्त द्वादशपादों में कुल १२१५ सूत्र है। सूत्रों नाम प्राकृत लक्षण और वृत्ति का चिन्तामणि है। पर ग्रन्थकर्ता की स्वविरचित चिन्तामणि नामक वृत्ति है, रचयिता शुभचन्द्रने अपनी पट्टावली भी इस ग्रन्थ के चन्द्रनाया: कथा येन दृब्धा नान्दीश्वरी तथा । अन्त मे अकित की है। बताया है कि भुवनकीर्ति के शिष्य पाशाधरकृताचारवृत्तिः सदवृत्तिशालिनी । ज्ञान भूषण हुए, ज्ञानभूषण के शिष्य विजयकीत्ति और सशयवदनविदारणमपशब्द सुखण्डनं परतर्क । विजयकीर्ति के शिष्य शुभचन्द्र थे। इन्होने काव्य, पुराण, सत्तत्त्वनिर्णय वरस्वरूपसम्बोधिनी वृत्ति । चरित, दर्शन, अध्यात्म, व्रतविधान एव व्याकरण विषयक अध्यात्मपद्यवृत्ति सर्वार्थापूर्वसर्वतोभद्रम् । रचनाएँ लिखी है। इनके षड्भाषा कविचक्रवर्ती एवं योऽकृत सद्व्याकरण चिन्तामणिनामधेय च ॥ वेद्य विद्याधर प्रादि विशेषण प्रसिद्ध है। इनके द्वारा २ श्रीमद्विक्रमभूपतेद्विकहते स्पष्टाष्टसंख्ये शते, रचित चन्द्रप्रभचरित, जीवन्धर चरित, करकण्डुचरित, रम्येष्टाधिकवत्सरे सुखकरे भाद्रे द्वितीयातिथौ । श्रेणिक चरित, संशयवदनविदारण, षट्दर्शन प्रमाणप्रेम ....श्रीशाकवाटेपुरे विरचित पुराण चिरम् । यानुप्रवेश, अंगपण्णत्ती, पाण्डवपुराण आदि अड़तालीस -पाण्डवपुराण, ७२, ७३, ७७, ७८, तथा ८६ ग्रन्थ है।' ३ तप्पयसेवणसत्तो तेवेज्जो उहयभासपरिवेई । चन्द्रनाथचरित चरितार्थ पदमनाभचरितं शुभचन्द्रम् । सुहचदो तेण इणं रइयं सत्थ समासेण ॥ मन्मथस्य महिमानमतन्द्रो जीवकस्य चरितं चकार । -सिद्धान्तसारादिसंग्रह के अन्तर्गत
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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