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________________ श्रीपुर क्षेत्र के निर्माता राजा श्रीपाल नेमचन्द धन्नूसा जैन गत साल कारणवश नागपुर को ३-४ दफे जाने का लेखों से यह स्पष्ट है कि, उसके कर्ता निःसंशय दिगंबर योग प्राया । तब वहाँ के इतिहासज्ञ डा० य० खु देशपाडे जैन ही थे । क्योंकि ऊपर लेख मे मूलसंघ तथा बलात्कार की भी मुलाकात होती थी। सयोगश उनके यहाँ प्रो० गण का उल्लेख है और नीचे के लेख में खटवड गोत्र का मघकर वावगांवकर तथा प्रो० ब्रह्मानन्द देशपाडे की पह- उल्लेख है । ये बाते दिगबर आम्नाय की ही द्योतक हैं। चान हई । सनान विषय होने से परिचय होने में देर न इन लेखो पर से आगे का इतिहास निश्चित होता लगी। शिरपुर के प्राचीन मन्दिर पर अप्रकाशित दो है-पहले लेख का अर्थ-दशक ९०९ या सवत् १०४४ शिलालेख हैं, ऐसा बताने पर वे दोनों वहाँ जाने को के प्राषाढ माह के शुक्ल पंचमी या पच दशमी तिथी को उतारू हुए। और समय पाकर उन्होंने उस शिलालेख के मूलसघ और बलात्कारगण के भट्टारक श्रीजिन..... के तथा कुछ मूर्तिलेख, स्तभलेख प्रादि के छाप भी लाये। उपदेश से रानी राजमति तथा राजा श्रीपाल ने श्रीपार्श्व उसमे से एक छाप उन्होने मुझे दिया, उससे मैं नाथ बिंब की राष्ट्रकूट राजा इद्रराज (चतुर्थ) की मृत्यु संतोषित तो नहीं हुआ। लेकिन कमरों से उसके फोटो होने के बाद श्रीजिन प्रतिष्ठा पूर्वक इस श्रीपुरायतन की निकालने की योजना बनाकर मैं शिरपुर गया। उनका प्रतिष्ठा की। जो वाचन मैं कर सका वह नीचे दिया है । इस वाचन में यह एक स्वतत्र अनुसंधान का विषय है कि आषाढ जो स्पष्ट शब्द दिखाई दिये वह देकर जो मस्पष्ट है या से कार्तिक तक पच कल्याणक प्रतिष्ठा नही होती। अतः होना चाहिये ऐसा लगा वे शब्द कस मे दिये है। ऊपर यह तिथी सिर्फ मन्दिर या वेदी प्रतिष्ठाकी होनी चाहिये । के पट्टी पर का लेख ४ पंक्ति में है । वह इस प्रकार है यानी उस समय विराजमान होने वाली मूर्ति पूर्व प्रतिपंक्ति (१) शाक ६०६ (प्राषाढ़ शुक्ल) पंच".... ष्ठित होगी। मूल संघे..... (बलात्कार गने) भट्टारक श्री जि (२) शिरपुर क्षेत्र में प्राषाढी पूनम तथा कात्तिक पूनमको न......रा)जी) रा(जा) मति...''श्रीपाल भूप..." ऐसे दो दफे यात्रा भरती है। कातिक पूनम वार्षिक उत्सव श्री पार्श्वनाथ बि (३) (ब) ...." (राष्ट्रकूट संघ)'' के रूप में मनाया जाता है। अगर आषाढी पूनम को यह श्रीजिन (प्रतिष्ठित) महो (त्सवे इन्द्र) राज हते श्रीपाल प्राचीन हेमाडपंथी मन्दिर की वर्षपांठ महोत्सव के रूप में इह श्रीपुरायतनं (४) संप्रतिष्ठापितम् ॥ स्वीकार किया जाय तो एक इतिहास की पुष्टि बन जाती नीचेकी पट्टी पर का लेख तीन पक्ति में है वह इस है। जो इतिहास संवत् १०४४ से प्राज यानी सवत् प्रकार है २०२८ तक कायम रहा । (१) "सके १३३८ वैशाख सुदि ८ (गुरो) श्रीमाल- तथा इसमे उल्लेखनीय श्रीपाल राजा राष्ट्रकट संघ यस्थ सेठ रामल पौत्र ठ० भोज पु (२)त्र अमर (कुल) का था यानी राष्ट्रकूटों का सामत था । और स० १०४४ समुत्पन्न सघपति ४० श्री जगसीहेन प्रतरिक्ष श्री पाव से पूर्व ही स० १०३६ में अन्तिम राष्ट्रकूट राजा इन्द्रराज नाथ (३) निजकुल (उद्धारक) खटवा वंश....."राज। 'राज॥ (चतुर्थ) की मृत्यु हो गई यी। उसके बाद राष्ट्रकूटों का इन दोनों शिलालेखों से दोनों लेख भिन्न काल के राजा कोई न होने से उसका निर्देश इसमे न हुआ । साथ तथा भिन्न कर्तृत्व के जान पड़ते है। तथा इन दोनों में यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि सं० १०४४ में
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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