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________________ पृष्ठ विषय-सूची निवेदन क्रमांक विषय १. स्वयंभू स्तुति-मुनि पद्मनन्दि वीर-सेवा-मन्दिर एक शोध-सख्या है। इसमें जैन १४५ २. चित्तौड़ के जैन कौतिस्तम्भ का निर्माणकाल साहित्य और इतिहास की शोध-खोज होती है, और अने-श्री नीरज जैन १४६ कान्त पत्र द्वारा उसे प्रकाशित किया जाता है । अनेक ३. पिण्डशुद्धि के अन्तर्गत उद्दिष्ट आहार पर विद्वान रिसर्च के लिए वीर-सेवमन्दिर के ग्रन्यागार से विचार-५० बालचन्द्र सिद्धान्त शास्त्री १५५ पुस्तकें ले जाते है। और अपना कार्य कर वापिस करते ४. श्रीपुर क्षेत्र के निर्माता राजा श्रीपाल है। समाज के श्रीमानो का कर्तव्य है कि वे वीर-सेवा-नेमचन्द्र धन्नसा जैन मन्दिरको लायब्रेरी को और अधिक उपयोगी बनानेके लिए ५. शुभचन्द्र का प्राकृत लक्षण : एक विश्लेषण प्रकाशित अप्रकाशित साहित्य प्रदान करे । जिससे अन्वेषक -डा० नेमचन्द्र शास्त्री एम. ए. डी. लिट् १६४ विद्वान उससे पूरा लाभ उठा सके । और प्रकाशित सस्थाएं विहारी सतसई की एक अज्ञात जैन भाषा अपने अपने प्रकाशित ग्रन्थों की एक एक प्रति अवश्य टीका-श्री अगरचन्द नाहटा १६८ भिजवाये । प्राशा है जैन साहित्य और इतिहास के प्रेमी ७. ज्ञानसागर की स्फुट रचनाएँ-डा० विद्या सज्जन इस ओर ध्यान देगे। घर जोहरापुरकर मण्डला व्यवस्थापक 'बोरसेवामन्दिर' अध्यातम बत्तीसी-अगरचन्द नाहटा १७२ २१ दरियागंज, दिल्ली ६. अछूता, समृद्ध जैन साहित्य-रिषभदास राका चित्तौड का दिगम्बर जैन कीर्तिस्तम्भपरमानन्द शास्त्री अनेकान्त के ग्राहकों से ११. महावीर कल्याण केन्द्र-चिमनलाल अनेकान्त के प्रेमी पाठकों से निवेदन है कि वे अपना चकुभाई शाह वापिक मूल्य शीघ्र भेज दे । जिन ग्राहकों ने अभी तक १२. अग्रवालो का जैन सस्कृति में योगदान अपना वार्षिक मुल्य नहीं भेजा है। और न पत्र का उत्तर परमानन्द शास्त्री हो दिया है । उनसे सानुरोध प्रार्थना है कि वे अपना वार्षिक १३. साहित्य-समीक्षा-परमानन्द शास्त्री तथा मूल्य ६) रु० शीघ्र भेजकर अनुग्रहीत करें । अनेकान्त बालचन्द्र शास्त्री जैन समाज का ख्याति प्राप्त एक शोध पत्र है, जिसमें धार्मिक लेखों के शोध-खोज के महत्वपूर्ण लेख रहते है । जो पठनीय तथा सग्रहणीय होते है। मूल्य प्राप्त सम्पादक-मण्डल न होने पर अगला अक वी० पी० से भेजा जावेगा। डा० प्रा० ने० उपाध्य व्यवस्थापक : 'अनेकान्त' डा० प्रेमसागर जेन वोरसेवामन्दिर २१, दरियागज, दिल्ली। श्री यशपाल जैन परमानन्द शास्त्री १७४ १०. १७६ १८३ १८५ १६० अनेकान्त में प्रकाशित विचारो के लिए सम्पाटक गडल उत्तरदायी नहीं हैं। -व्यवस्थापक अनेकान्त अनेकान्त का वाषिक मूल्य ६) रुपया एक किरण का मल्य १ रुपया २५ पंसा
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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