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________________ कवि टेकचंद रचित श्रेणिक चरित और पुन्याश्रव कथाकोष श्री नगरचन्द नाहटा 'सन्मति सदेश' के सितम्बर ६८ के अक में श्री चंपालाल सिई का एक लेख 'विदिशाकं कवि टेकचद' नामका प्रकाशित हुआ है। जिसमे उन्होंने कवि के 'बुद्धि प्रकाश' ग्रन्थ का विवरण दिया है। साथ ही कतिपय पूजा ग्रथो का भी उल्लेख किया है। कवि के बुद्धि प्रकाश की २ प्रतिया हमारे सग्रह मे है जिनमे से एक सवत् १६२८ की लिम्बी हुई है अर्थात् ग्रंथ रचना के दो वर्ष बाद की ही प्रति है कवि टेकचंद की दूसरी एक रचना जिसका उल्लेख श्री चम्पालाल सिवई ने नहीं किया है हमारे सग्रह मे है । यह ग्रन्थ भी काफी बडा और महत्व पूर्ण है । और रचना के समय की ही लिखी हुई प्रति हमारे सग्रह मे है। पेद है कि इस महत्वपूर्ण और तत्कालीन लिखित प्रति के प्राथमिक ग्यारह पत्र प्राप्त नहीं है। और १२ वे १६ वे पत्राक तक में भी उदई लग जाने से काव्य का कुछ नष्ट हो गया है। प्रथमे ११ सन्धिया है जिनमे से पहली सन्धी तो इस प्रति मे है ही नहीं, दूसरी सन्धि के भी २६१ नही है । ग्रन्थ की प्रतिम प्रशस्ति इस प्रकार है। श्रेणिक चरित बखानि पूरण कियो महा मुनि प्रांनि । मांगे नर पर्मी भया, तार्न सहसकिरत ते लया ॥८१॥ गुजराती भाषा में सार, नाना छंद ढ़ाल मय धार । सो अब अल्प बुद्धि के जोग, समझें नहीं इम भाषा लोग ।। ८२ हम भी तुच्छ ज्ञांन पर भाय, ढ़ाल छंद का मग नहीं पाय । भाषा देस तनी समझेय, और ढ़ाल इन भेद न लेय ॥ ८३ रथ तणों भ्रम पायो जाय, पं नहि चाल ढाल को प्राय । तब मोसे लघु बुद्धी और रोचिक धर्म - पुन्य कों दौर ॥६४ तिन मिल कही नेह उपजाय, श्रेणिक चरित महा सुख दाय। रथ भलो धर्महित करा, पे इसभाषा समझि न परा ॥ ८५ तात देस भाषा में होय, तो समझे वाचे सब कोय । इमसुनि हम मनहरषत भयो, यह शुभकाज इन्होंनें चयो ॥ ८६ जो यह ग्रंथ बेस छंद में होय, तो वह वाचे पुन्यले सोध । फिरिछंद करते मनवच काय, एक ठामधर्म मंगलगवाया प्रारति रूद्र ध्यान मिटि जाय, धर्म-ध्यान मय परिणत ठाय । ऐसी जानि सरल छंद लेय, रचना करि धर्म धरि जय ॥८८ जो या ग्रन्थ में कथन समानि, सो अन्य ग्रन्थसुं यामें श्रानि । पाय पिरोजन कियविशेष साविधि मार्ग जिन पनि ले॥८६ भूल चूक जो छंद में होय, तथा अर्थ नहीं भाष्यो कोय । तो बुबिजनस क्षमि सुध करो, यह विनती हृदयमें परो ॥१० ॥ दोहा ॥ देस मालवा के विसं, 'रायसेनगढ़ जोय । तहां थान जिन गेह में कथा रची सुख होय ॥ ६१ संवत् भ्रष्टादस दस सही, ऊपरि गिनि तेतोस । मिति प्रासोन सुवितीय, सोमवार निशि ईस ॥१२ ऐसे ग्रंथ पूरण कियो, मगल कारन एक । मनवच तन शुभ जोग धनि, सीस नमावत टेक ॥ ६३ इति श्री महा मंडलेसुर राजा श्रेणिक चरित्रे सामान्य । षट्काल रचना वर्णनो नाम १६ वीं संधि ॥ । इति श्री श्रेणिक चरित्र संपूर्ण शुभ भवतु मंगल । सवत् १८३३ मिति कुवार सुदि १० लिखावत साधर्मी भाई टेकचन्द || लेखक किसनचद ब्राह्मण ॥ ने प्रशस्ति से स्पष्ट है कि इस श्रेणिकचरित्र की रचना सन् १८६२ के आसोज मुदि सोमवार को रायसेनगढ़ मे पूर्ण हुई। प्राप्त प्रति रचना के दिन बाद स्वय टेकने लिखा और किसनचद ब्राह्मण लिखी। मालूम होता है कवि ज्यों-ज्यों ग्रन्थ रचता गया, किसनचद ब्राह्मण उसकी नकल करता गया, अन्यथा ८ दिन मे तो इतना बडा ग्रंथ लिखा जाना सम्भव नही है । प्रति की पत्रसख्या १४२ है । प्रति पृष्ठ १२ पक्तियाँ प्रति पक्ति प्रक्षर ५०५२ के करीब है । इस तरह इस ग्रन्थ का परिमाण ५५०० करीब श्लोकों का बैठता है। इसकी दूसरी प्रति मालवा के भण्डारों में मिलनी चाहिये खोज की पावश्कता है। I
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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