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________________ भनेकान्त करते है-यह हरिश्चन्द्र है, यह रोहताश्व है। रामलीला मानने की प्रेरणा देता है।" यह एक धारणा जो राधामे कहा करते है-यह राम है, यह मीता है। कृष्णन् जसे मनीषी की बनी, लगता है सापेक्षवाद उन्हे ६. प्रतीति-सत्य-जैसे प्रतीति हो। दूसरे शब्दो मे स्याद्वाद सम्बन्धी उक्त निर्णय पर पुनः सोचने को प्रेरित इसे हम सापेक्ष-सत्य भी कह सकते है। पाम्रफल की करेगा। अपेक्षा प्रामलक छोटा है, ऐसी प्रतीति होती है, और जहाँ इनकी धारणा है निरपेक्ष सत्य को माने बिना गुजा की अपेक्षा वह बडा है, यह भी प्रतीति होती है। काम नहीं चल सकता वहाँ सापेक्षवाद बताता हैसापेक्षवाद का एक बड़ा विभाग इसी एक भेद में समा "परमार्थ मन की कल्पना मात्र है । परमार्थ को प्राकृतिक वस्तुओं और नियमो पर जब हम लादने की कोशिश जाता है। ७. व्यवहार-सत्य-लोक भाषा मे सम्मत वाक्य करते है तो यही नहीं कि हम वस्तु सत्य को छोड आकाश व्यवहार सत्य है। जैसे बहुत बार पूछा जाता है, यह मे उडने लगते है, बल्की उल्टी धारणाप्रो के शिकार हो सड़क कहाँ जाती है ? कोई उत्तर दे सकता है कि महा हो जाते है। लेकिन वस्तुप्रो और उनके गुणो की सापे क्षता का मतलब यह नहीं है कि हम उनकी सत्ता से शय यह तो कही नही जाती यही पडी रहती है। बटोही इन्कार कर दें। सापेक्षता परमार्थ नामधारी किसी भी थका-मादा गाँव के पास पहुँचता है और कहता है"अब तो गाँव पा गया है।" पर कोई यह नही पूछता पदार्थ को सिद्ध नहीं होने देती, किन्तु सापेक्षता द्वारा कि "तम पाये हो या गाँव चलकर पाया है।" तात्पय १. The theory of relativity cann t be logiयही है कि लोक व्यवहार से यह कहना प्रसिद्ध नहीं है। cally sustained without the hypothesis of अतः यह सत्य का ही एक भेद है। an absolute......The Jains admit that ८. भाव-सत्य-यथावस्थित इन्द्रिय सापेक्ष कथन । things are one in their universal aspect जैसे-हम घोला है, कज्जल काला है। पर यह यथाव- (Jati or Karana) and many in their parti. स्थित कथन भी स्थूल दृष्टि की अपेक्षा से है । सूठम दृष्टि cular aspect aspect (Vyakti or Karya), वहाँ भी उपेक्षित है। उसके अनुसार तो हस और कज्जल Both these, according to them are partial में पांच वर्ण है। points of view. A plurality of reals is ___E. योग-सत्य-दो या दो से अधिक वस्तुओं के योग admittedly a relative truth. We must से जो सज्ञा बनी हो। तत्पश्चात् उस योग के अभाव में rise to the complete point of view and भी उस सज्ञा का प्रयोग योग-सत्य है। जैसे-दण्डी, छत्री, look at the whole with all the wealth of स्वर्णकार, चर्मकार आदि । its attributes. If Jainism stops short with pluratily, which is at best a relative and १०. उपमा-सत्य-उपमा अलकार प्रादि सारी partial truth, and does not ask whether साहित्यिक कल्पनाएं इस सत्य मे अन्तनिहित है, इसके there is any higher truth painting to a चार विकल्प हैं-उपमा सद् उपमेय असद्, उपमा असद् One wluch particularises itself in the obउपमेय सद्, दोनों सद् और दोनो असद् । jects of the world, connected with one निरपेक्ष व सम्पूर्ण सत्य : another vitally essentially and immanently, भारतवर्ष के सुप्रसिद्ध विचारक सर राधाकृष्णन् ने it throws over board, its one logic and स्थाद्वाद के विषय में लिखा है "स्याद्वाद निरपेक्ष या exalts a relative truth into an obsulute सम्पूर्ण सत्य की कल्पना किये विना तर्क के धरातल पर नही ठहर सकता...'। वह अपेक्षिक सत्यो को पूर्ण सत्य --Indian Philosophy Vol. 1, pp. 305, 306. one.
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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