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________________ ८७ राजा थेणिक या बिम्बसार का पायुप्य काल जो ज्येष्ठा को चाहता था वह भी मुनि हो गया था। मुनि हो गया । वह नवदीक्षित मुनि ग्यारह प्रग दशपूर्वी उत्तरपुराण में इनका इतना ही कथन किया है। किन्तु तु का पाठी हो गया और रोहिणी प्रादि पानौ महाविद्यामो अन्य जैन कथा ग्रन्थों में इनका प्रागे का हाल भी लिखा व मात मौ क्षुद्र विद्यापो की भी उमे प्राप्ति हो गई । बह मिलता है। हरिषेण कथाकोश की कथा न. १७ में विद्या के प्रताप मे मिह का रूप बना कर उन लोगो को लिखा है कि डगने लगा जो लोग सत्यकी मनि की वंदनार्थ पाते जाते एक बार ज्येष्ठा प्रादि कितनी ही मायिकाये माता थे। उसकी ऐमी चेष्टा जान कर मत्यकी मुनि ने उमे पन योग में स्थित उक्त सत्यकि मुनिकी वदनार्थ गई थी। फटकारा और कहा कि तू स्त्री के निमित्त मे एक दिन वहा से लौट कर पहाड़ पर से उतरते समय अकस्मात् भ्राट होवेगा। गुरु वाक्य मूम कर मयाक पुत्र ने निश्चय जल वर्षा होने लगी जिससे प्रायिकाय तितरबितर हो किया कि मैं ऐमी जगह जाकर उप का' जहाँ स्त्री मात्र गई। उम वक्त ज्येष्ठा एक गुफा में प्रवेश कर अपने भीगे कपडे उतार लर निचोडने लगी। उसी समय वे सत्यकि का दर्शन भी न हो सके तब मैं कैसे भ्रष्ट होऊँगा? ऐसा सोच कर वह कैलाश पर्वत पर जा पहुंचा और वहाँ मुनि भी अपना प्रातापन योग समाप्त कर उसी गुफा में पानापन यांग में स्थित हो गया। वहाँ एक विद्याधर की पा घुमे । वहाँ ज्येष्ठा को खुले अग देख एकान पा मुनि के दिल में काम विकार हो उठा । दोनो का मयोग हुआ। पाठ कन्याये म्नान करने को भाई । उनकी अनुपम ज्येष्ठा के गर्भ रहा। मत्यकि तो इस कुकृत्य का गुरु से मुन्दरता को देख कर वह उन पर मोहित हो गया। ज्यो प्रायश्चित्त ले पुनः मुनि हो गये। किंतु ज्येष्ठा सगर्भा थी ही वे कन्यायें अपने वम्याभुषण उतार वापिका के जल में उसने अपनी गुर्वाणी यशस्वती के पाम जा अपना मब स्नान करने को घुमी नब ही उस ने अपनी विद्या के द्वारा हाल यथार्थ मुना दिया। गुर्वाणी ने उसे रानी चेलना के उनके वस्त्राभूषणों को मगा लिया। वापिका मे निकल यहा पहुंचा दिया। चेलना ने शरण देकर ज्येष्ठा को गुप्त कर उन कन्याप्रो को जब तट पर अपने २ वस्त्राभूषण रूप से अपने पास रक्खा। वही उसके पुत्र पैदा हुमा । न ही मिले तो उन्होने उन मुनि से पूछताछ की। मुनि ने पुत्र जन्म के बाद ज्येष्ठा ने अपनी गूर्वागी में प्रायश्चित्त उन में कहा तुम मब मेरी भार्या बनो तो तुम्हारे बम्बादि तुम्हे मिल मकते है । उत्तर में उन कन्यानो ने कहा कि लेकर पुन आर्यिका की दीक्षा ग्रहण करली। यह बात तो हमारे माता पिता के प्राधीन है। वे अगर ___ ज्येष्ठा के जो पुत्र हुमा था उसका लालन पालन भी हमें प्रापको देना चाहे तो हमारी कोर्ट इंकारी नही है। पलना ने ही किया। वह पुत्र बडा उद्दड निकला । एक उमने कहा अच्छा तो तुम मब अपने माता दिन उसकी उडता मे हैरान होकर चेलना के मुख से पठ लो यह कह उमने उनके वस्त्राभूषण दे दिये । उन निकल पडा कि-"दुष्ट जार जात यहा से चला जा" यह कन्यानो ने घर पर जा यह बात अपने पिता देवदारु को यह मुन उसने अपनी उत्पत्ति चेलना में जाननी चाही। कही। देवदारु ने एक बद्ध कंचकी को भेज कर मत्य की चेलना ने मब वृत्तान्त उम को यथावत् मुना दिया। सून पत्र में कहलवाया कि - मेरा भाई विद्य जिह्व मुझे राज्य कर वह अपने पिता सत्यकी मुनि के पास जा दीक्षा ले में निकाल पाप गजा बन बैठा है। अगर आप उससे 1. ब. नेमिदत्तकृत पाराधना कथा कोश मे इम मेरा गज्य दिलामको तो मैं ये मब कन्याये प्रापको दे जगह यायिकाओं का भगवान महावीर की वंदनार्थ सकता है। मन्यकि पुत्र ने ऐसा करना स्वीकार किया जाना लिखा है। वह ठीक नहीं है। क्योकि इस वक्त और अपनी विद्यापो के बल से उसके भाई विद्य जिह्व तक तो अभी महावीर ने दीक्षा ही नहीं ली है। नब को मारकर देवदारु को गजा बना दिया। तब देवदार उनकी बहना की कहना प्रमंगन है। जैमा कि दम पागे ने भी अपनी पाठी वन्यानो की गादी मायांक के साथ बनायेगे। कर दी। वितु व मब कन्यायें निम के समय उसके
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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