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________________ प्रनेकान्त ग्राऊंगा । उस वक्त इस नगर का राजा चेलना का पुत्र र कुणिक परिवार के साथ मेरी वदना को घावेगा। तभी । जम्बूकुमार भी मेरे पास था दीक्षा लेने को उत्सुक होवेगा । उस वक्त उसके भाई बन्धु उसे यह कह कर रोक देंगे कि—थोडे ही वर्षों में हम लोग भी तुम्हारे ही साथ दीक्षा धारण करेगे । बन्धु लोगो के इस कथन को वह टाल नही सकेगा और वह उस समय नगर मे वापिस चला जावेगा । तदननर परिवार के लोग उसे मोह मे फमाने के लिये चार सेठो की चार पुत्रियो के साथ उसका विवाह रच देगे । इतने पर भी जम्बूकुमार भोगानुरागी न हो कर उल्टे दीक्षा लेने को उद्यमी होगा। यह देख उनके भाई बन्धु प्रोर कुणिक राजा ( श्लोक १८३ ) उसका दीक्षोत्सव मनायेंगे । उस वक्त मुझे विपुल चल पर विराजमान जान कर वह जम्बू उत्सव के साथ मेरे पास श्री मेरी भक्ति पूर्वक वदना कर सुधमंगणधर के समीप सयम धारण करेगा । मेरे केवलज्ञान के १२वं वर्ष जब मुझे निर्वाण प्राप्त होगा तब सुधर्माचार्य केवली और जम्बूस्वामी श्रुतकेबली होगे । उसके बाद फिर १२व वर्ष में जब सुधर्म केवली मोक्ष जायेगे तब जम्बूस्वामी कां केवलज्ञान होगा । फिर वे जम्बू केवली अपने भव नाम के शिष्य के साथ ४० वर्ष तक विहार कर मोक्ष पधारेंगे। उत्तर पुराण पर्व ७४ श्लोक ३३१ प्रादि मे लिख। है कि : एक दिन उममिनी के स्मशान में महावीर स्वामी प्रतिमायांग स विराजमान थे । उनको ध्यान से विचलित करने के लिये रुद्र ने उन पर उपसर्ग किया। परन्तु वह भगवान को ध्यान से डिगाने में समर्थ न हो सका । तब रुद्र ने भगवान का महतिमहावीर नाम रखकर उनकी बड़ी स्तुति की और फिर नृत्य किया ८६ 1. उसर पुराण के अनुसार कि के पिता का नाम भी कुणिक है छोर का नाम भी कुणिक है। होने मे ' महर्शन महावीर" यह एक ही नाम सिद्ध होता है 2 भारतीय ज्ञानपीठ, काशी मे प्रकाशित उत्तर पुराण पृ० ४६५-६६ में महनि श्रौर महावीर ऐसे २ नाम अनुवादक जी ने दिये है किन्तु मूल में एक वचनात पद ऊपर हम जिस माये है कि राजा पेटक की पुत्री ज्येष्ठा कुंवारी ही धार्मिका हो गई थी और राजा सत्यकि होने से 'महतिमहावीर' यह एक ही नाम सिद्ध होता है देखो पर्व ७४ " समहतिमहावीराख्या कृत्वा विविधः । स्तुती " ||४३६ ॥ | इसी के आधार पर आशाधर ने भी विषष्ठि स्मृति शास्त्र में सर्ग २४ नो० ३४ में "महतिमहावीर” यह एक नाम सूचित किया है । इसी तरह स्वकृत सहस्त्रनाम के श्लोक ९१ में भी 'महति महावीर' यह एक नाम देते हुए उसका घर्ष इस प्रकार किया हैमस्य मलम्य हतिर्हननमहति । महतो महावीर: महति महावीरः । ( पापो के नाश करने में शूरवीर) पाक्षिकादि प्रतिक्रमण ( क्रियाकलाप पृ० ७३ ) में महदिमहावीरेश मागेगा महाकवेगा" पाठ घाता है इसमें भी 'महति महावी' यह एक नाम ही सूचित किया है। महदि प्राकृन का संस्कृत मे महनि मौर महानिदोनो रूप बनते हैं अतः कवि अशग ने अपने गहावीर चरित में 'महातिमहावीर' यह एक नाम दिया है जिसका अर्थ होता है महान् से भी प्रत्यन्त महान् वीर । स्व० प० खूबचन्द जी सा० ने इसके हिन्दी अनुवाद में प्रतिवीर और और महावीर ऐसे दो नाम बनाये हैं जो मूल से विरुद्ध हैं। मूल मैं तो | एक वचनात प्रयोग किया है देखोस महानि महादिरेष वीरः प्रमदादित्यभिधाव्यधत्तनस्य ॥ १२६ ॥ पर्व १७ मत के अनुसार भी "महानिमहावीर. " यह एक नाम हो सिद्ध होता है। = धनंजय नाम माला के श्लोक ११५ में लिखा हैसन्मति मंहति वीरो महावीरोऽ न्त्यकाश्यपः ।। यहा महाति: 'वीर' महावीर ऐगे घनग चलग नाम बनाये हैं यह कवि की प्रतिभा है अमरकीति ने इसके भाध्य में 'महतिः' नाम का धर्म इस प्रकार किया है- महती पूजा यस्य स महतिः । किन्तु उत्तरपुराण प्रादि में 'महति महावीर यह एक नाम दिया है। दो इसलिये भी नही हो मकते कि उत्तर पुराण पर्व ७४ श्लोक २६५ मे 'महावीर' यह नाम सर्पवेषी संगमदेव ने पहिले ही रख दिया था, देखो - स्तुत्वा भवान्महावीर इति नाम चकार म
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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