SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर और बुद्ध के पारिपार्श्विक भिक्षु-भिक्षुरिणी UE विनय-सूत्र उन्होने बुद्ध की पारिपाश्विकता स ग्रहल किया गौतमी पा ये नापित कुल मे हा थे । माक्य गजा भदिग, प्रानन्द बौद्ध भिक्षणियो में महाप्रजापति गौतमी का नाम प्रादि अन्य पात्र शाक्य कुमारी के साथ प्रबजित हुए थे। उतना ही प्रतिगम्य है, जितना जैन परम्पग में महासती महाकाश्यप चन्दनबाला का। दोनो के पूर्वतन जीवन-वत्त में कोई महाकाश्यप बुद्ध के कर्मठ शिष्य थे । इसका प्रव्रज्या समानता नही है, पर दोनो ही अपने-अपने धर्म-नायक की ग्रहण से पूर्व का जीवन भी बहुत विलक्षण और प्रेरक रहा प्रथम शिष्या रही है अपने-अपने भिक्षुग्णी-मघ में अग्रणी है। पिप्पली कुमार और भद्राकुमारी का प्रख्यान इन्ही भी। का जीवन व्रत्त है। वही पिप्पलीकुमार माणवक धर्म सघ गौतमी के जीवन की दो बाते विशेष उल्लेखनीय हैं। में पाकर प्रायुप्मान् महाकाश्यप बन जाता है। इसके उसने नारी-जाति को भिक्षु-सध में स्थान दिलवाया तथा सुकोमल और बहुमूल्य चीवर का स्पर्श कर बुद्ध ने प्रगमा भिणियो को भिक्षुमो के समान ही अधिकार देने की की। इन्होने बुद्ध में वस्त्र-गृहण करने का प्रागृह किया। बात बुद्ध मे कही। बुद्ध ने गौतमी को प्रजिन करते बुद्ध ने कहा- मैं तुम्हारा यह वस्त्र ले मी लू, पर क्या ममय कुछ शर्ते उस पर डाल दी थी, जिनमे एक थोतुम मेरे इस जीणं मोटे और मलिन वस्त्र को धारण कर चिर दीक्षिता भिक्षुणी के लिये भी सद्य: दीक्षित भिक्ष मकोगे ?" महाकाश्यप ने वह स्वीकार किया और उमी वन्दनीय होगा। गौतमी ने उसे स्वीकार किया, पर ममय बुद्ध के माथ उनका चीवर-परिवर्तन हा । बुद्ध के प्रव्रजित होने के पश्चात् बहन शीघ्र ही उमने बुद्ध मे जीवन और बौद्ध परम्परा की यह एक ऐतिहामिक घटना प्रश्न कर लिया-"भन्ते । चिर दीक्षिता भिक्षुगी ही मानी जाती है। नव-दीक्षिन भिक्ष को नमस्कार करे, ऐमा क्यो ? क्यो न महाकाश्यप विद्वान थे। ये वृद्ध मूक्तों के व्याख्याकार नव दीक्षित भिक्षु ही चिर दीक्षिता भिक्षणी को नमस्कार के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। बद्ध के निर्वाण-प्रमंग पर ये करे " बुद्ध ने कहा .. "गौतमी | इतर धर्म-मघो में मुख्य निर्देशक रहे हैं। पाच मौ भिक्षयो के परिवार मे भी रोमा नहीं है । हमारा धर्म-मंघ तो बहन श्रेष्ठ है ..'' विहार करने, जिस दिन और जिस समय ये चिता-स्थल प्राज मे ढाई हजार वर्ष पूर्व गौतमी द्वारा यह प्रश्न पहंचते है, उसी दिन और उसी समय बुद्ध की अन्त्येष्टि उठा लेना, नारी-जाति के आत्म-सम्मान का मूचक होती है। उनके दम उत्तर मे पता चलता है, महापुरुष भी कुछ अजातशत्रु ने इन्ही के सुझाव पर राजगृह में बद्ध एक ही नवीन मूल्य स्थापित करते हैं। अधिकाशतः तो वे का धातु विधान (अस्थि गर्भ) बनवाया, जिसे कालान्तर भी लौकिक व्यवहार या लौकिक ढगे का अनुमरण करते से सम्राट अशोक ने खोला और बुद्ध की धानपी को हैं। अम्तृ, गौनमी की यह बात भले ही ग्राज पच्चीम मौ दूर-दूर तक पहुंचाया। वर्ष बाद भी फलित न हुई हो, पर उमने बुद्ध के समक्ष ये महाकाश्यप ही प्रथम बौद्ध मगीति के नियामक अपना प्रश्न रखकर नारी-जाति के पक्ष में एक गौरवपूर्ण तिहाग तो बना ही दिया है। प्राज्ञाकौण्डिन्य, अनिरुद्ध अादि और भी अनेक भिक्षु गौतमी के अतिरिक्त ग्वेमा, उत्सलवर, पटाचाग, ऐमे रहे हैं, जो बुद्ध के पारिपाश्विक कहे जा मकते है। कुण्डल केगा भद्राकापिलायनी प्रादि अन्य अनेक 1. दीर्धानकाय, महापरिनिव्वाण मुत्त । भिक्षणियाँ बौद्ध धर्म-मघ में मुविख्यान रही है। बुद्ध न 2. दोघनिकाय, अट्ठकथा, महापरिनिवारण मुत्त । एनदग्ग वग्ग मुत्त' में अपने दकचालिम भिक्षी तथा 3 विनयपिटक, चूल्लवगा, पचशानिका बन्धक । 1. विनयपिटक, चल्लवग्ग, भिवणी बन्धक
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy