SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त समर्थन डा. यशवंत खुशाल देशपांडे जी ने अपने अभिप्राय में किया है। बाचकों के लिये मैं उसका अनुवाद दे रहा हूँ। : ७२ साप्ताहिक तरुण भारत, नागपुर ता० २३-४-६७ पृष्ठ ८ के प्राधार से अनुवादित लेखक - डा० य० स्तु० देशपांडे शिरपुर यहाँ के श्री पंतरिक्ष पार्श्वनाथ मूर्ति, शिल्प और वास्तु इनके निरीक्षण का हवाल ता० २४ मार्च, १९६४ के तरुण भारत के अंक में "शिरपुर में प्राचीन मूर्ति प्राप्त हुई इस शीर्षक के नीचे का वृत बाचा तब भारतीय और तदगभूत विदर्भके प्राचीन मूर्ति शिल्प इनका अभ्यासक इस नाते मेरा लक्ष वेधा बाद में ता० २४-२-६७ के दैनिक मातृभूमि के अंक में शिरपुर के जैन संस्थान मैनेजर का खुलासा, इस ममले के नीचे एक लेख प्रसिद्ध हुआ है, उस पर से वहाँ दिगम्बर और वेताम्बरों के बीच झगड़ा रहते हुए अब दिगम्बर लोगों ने प्राचीन मन्दिर की देवड़ी का खोदकाम चालु करके सब प्राचीन अवशेष नष्ट करने के के कार्य में लगे हैं, प्रादि मजकूर प्रसिद्ध हुआ है। इस पर से दिगम्बरी और वेताम्बरी लोगों में वहा संघर्ष है। ऐसा मालूम पड़ने पर भी इस संघर्ष का विचार न करते हुए भी प्रत्यक्ष वस्तुस्थिति कैसी है, धौर विदर्भ के प्राचीन वस्तु, शिल्प और मूर्ति का अभ्यास पूर्वक निरीक्षण करने के हेतू मेरे इस वृद्धपन में पराधीनता प्राप्त होने पर भी प्रत्यक्ष शिरपुर जाने का मैने ठहराया और ता० २६,३० मार्च को मेरे मित्र की सहायता से रात को शिरपुर धाकर दिगम्बरियो की धर्मशाला में मुकाम किया। ता० ३० को सवेरे प्रथम पौली मन्दिर की तरफ गया। यह मन्दिर अत्यन्त जीणं शीणं हुधा है और इसके तुरन्त दुरुस्ती की व्यवस्था न हुई तो नष्ट होने की और विदर्भ के प्राचीन वास्तुशिल्प तथा मूर्ति जो कि भारतीय वैदर्भीय संस्कृति का बहुमूल्य प्रतीक है नष्ट होने की सम्भावना है । यह सामान्य प्रादमी को भी दिखता है। मन्दिर के सभामण्डप द्वार का ताला था वह दिगम्बर पुजारी ने लगाया था ऐसा मालूम पड़ा। मैं महा द्वार से प्रवेश करके मन्दिर चौक में धाया। वहाँ अनेक शताब्दी का बैठा हुआ ४-५ फुट मिट्टी का थर निकालके मंदिर बंधा उस समय जो पातवी थी वह प्राप्त हुवी भव मंदिर के सामने के चबूतरे को ३-४ हाथ सीढ़ियां मूलस्वरूप में दीख रही है। वहां विद्यमान दिगंबरी लोगों ने वह चालू जीर्णोद्धार की जानकारी दी और यह लेव्हलींग का कार्य करते समय वहां प्राप्त हुवे हुये चतु मुख बिंब, प्रस्तर स्तंभ और उस परका शिलालेख भी बताया। मैंने उस शिलालेख का वाचन करके टीपणे ली। यह सब लेख दिगम्बरी होने का मालूम पड़ा। मन्दिर के ि दक्षिण, पश्चिम और उत्तर बाजू नेका कार्य तथा वहां मिले हुए प्राचीन वस्तु, जमीन में जो गुप्त कालीन ईंटो की (ईट दो फुट लम्बी) दिवाल के अवशेष हैं उसका निरीक्षरण करके उसका टीपण लिया । के अब तक मन्दिर का पुजारी वहाँ माया, उसने मन्दिर का द्वार खोला फिर हमने कुछ दिगम्बरी लोगों के साथ मन्दिर में प्रवेश किया । मन्दिर के बाहर के स्थापत्य तथा अन्दर के स्थापत्य और शिल्प दिवाल पर उत्कीर्ण मूर्ति तथा तीर्थंकरो के चरित्र के कथा प्रसंग वहां दीख पडे । तथा गर्भागार औौर सभा मण्डप मे प्रस्थापित मूर्ति जिसकी पूजा अभी भी दिगम्बरी करते हैं, दीख पड़ी। इस पर से मेरे मुताबिक किसी भी अभ्यासकों को निश्चय होगा की यह मन्दिर तथा जिसने यह मन्दिर बनवाया वह पवेतांबरी नहीं था तो दिगम्बरी पंच का ही था। यह स्पष्ट है। वहाँ के प्रतिष्ठित ऐसी मन्दिर में की स्थापित दिगम्बरी मूर्ति, दिगम्बरी पुजारी यह देश कर इन मूर्तीयो की अब तक दिगम्बरो की तरफ से ही पूजा होती है यह स्पष्ट है । इसके बाद मन्दिर में जहाँ फर्सी नहीं थी वहा लोदने से ११ दिगम्बर मूर्तिया मिली, उनका निरीक्षख किया और जिन मूर्तियों पर लेख में उनका वाचन करके उतारा किया। यह सब दिगम्बरो के ही है ऐसा मालूम पड़ा। इस पौली मन्दिर में एक भी श्वेताम्बरी मूर्ति दिखी नही । निरीक्षण पूर्ण होने के बाद में अपने निवासस्थान में
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy