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________________ ७१ श्री प्रतरिक्ष पार्श्वनाथ पवली दिगम्बर जैन मन्दिर, गिरपुर जीणोद्धार की प्रावश्यकता है, वह एक तो सरकार ने वैशाख मुदि १३ शुक्रवार काष्ठामंपे........ प्रतिष्ठा । करना या हम को करने की परवाणगी देना।" (४) श्री पाश्वनाथ - ऊँची ८॥ इच-शके १५९१ (६) पुरातत्व विभाग-भोपाल से ता० २६-१२-६३ फालगण मृदी द्वितीया मनगगे भ० सोमसेन उपदेशात का पत्र-"पापकी विनती के अनुसार प्रापको पवली श्रीपुर (नगरे) प्रतिष्ठा । मन्दिर की दुरुस्ती करने की परवाणगी दी जाती है। (५) श्री पार्श्वनाथ- इच ऊंची-स्वस्ति श्री सरकार की तरफ से अभी नही होगी।" आदि। सवत १८११ माघ शु० १० श्री कुन्दकुन्दाम्नाये गुरु (७) पुगतत्व विभाग भोपाल से ता. ५-१२-६८ जानमन उपदशात् प्रादिनाथ तत्पुत्र पासोबा सइतवाल का पत्र-"सरकार की तरफ मे शिरपुर के पवली मन्दिर (पुत्र) कृपाल जन्म निमित्ते वीपुर नगरे मतरिक्ष पाश्र्वकी रिपेरी नही हो सकी, क्योकि यह पवली मन्दिर नाथ पवली जी(जि)नालय जीणोद्वार कृत्य प्रतिष्ठितमिदं मरक्षिन स्थलों के याद मे में निकाल दिया है। पाप बिम्बम् । मालिक ही है, अतः अब आप उचित मरम्मत कर सकते (६) (७) श्री चन्द्रनाथ-३ इंच ऊची, लेख नही। है।" आदि। (८) श्री आदिनाथ-२॥ इच ऊची-लेख नहीं। प्रब बताइये इम मन्दिर के मालिक कोन है और टीप---यह सब प्रतिमा हरे पाषाण की है लेख न. आज तक यह मन्दिर किमके मैनजमेट के अन्दर है तथा ४ नथा ५ इतिहाम के लिये विशेष महत्त्व रखते हैं । किमके कब्जे में है ? म मन्दिर बाबत और दतिहाग (९) श्री रत्नत्रय प्रभु-लाल पाषाण ८॥ इस ऊंची कागे के मन ममाज के मामने रखना है: लेख नहीं। (a) प्राचियालाजिकल म ग्राफांडया, मेडिव्हल (१०) श्री पाश्र्वनाथ ---कालसर पाषाण ॥ इंच उंची। लेख नही। टेपल ग्राफ दी दक्खन बाय कोझेन्म १९३१ पेज ६७ - टीप-लेख : तथा १० यह दो मूर्ति शिल्प की दृष्टि "यह अंतरिक्ष पार्श्वनाथ पवली टेपल दिगम्बर जैनी से विशेष महत्त्व की है और प्राप्त मूनियो में मबसे प्राचीन का है।" अदि। है यानं कम से कम एक हजार साल पहले की है। इन 1) हम्पीरियल गझेटीयर (ग्रामफई) पार्ट ७, दो मनियो का अलग फोटो दिया है । तथा गुप फोटो पेज ६७-बासम डिस्ट्रिक्ट-अनरिक्ष पाश्र्वनाथ का एक्ट-अनारक्ष पाश्वनाथ का भी दिया है। प्राचीन मन्दिर इम जिले मे मबमे आकर्षक कलाकृति का (११) चौबीसी पीतल की-१॥ फुट ऊंची सोने की स्थान है। यह मन्दिर दिगम्बर जैनों का है।" प्रादि। जना का है।" प्रादि। पालिम है । इस पर लेख है। लेकिन यह प्रतिमा तिजोरी अब हम ही मन्दिर मे हाल जो ११ मूनि तथा मे होन में लेख बाचन को नहीं मिली। सम्भलख मिला उनके ऊपर के उपलब्ध लेख देखो - (१२) मन्दिर के बाहर जो २०-२-६७ को शील(१) नेमिनाथ प्रभू-७ इंच ऊची "मवत १७२७ स्तम्भ प्राप्त हुमा उमके कार का लेख-श्री प्रतरीक्ष मागीयर्ष मुदि १३ दाक्ले थी काठमधे माथुरगच्छ नम गुरु कुन्द्र कुन्द नम: मवत १८११ माघ मुद १. पृष्करगगणे श्री लोहाचार्यान्वये भट्टारक श्री लक्ष्मीमनाम्नाये भादिनाथ पुत्र पामांबा सहतवाल." "पुत्र कृपाला भट्टारक श्री गणभद्रोपदेशात् .. - ज्ञानीय वाकु- जन्मे देऊब उद्धार केले । वम उपगत यावायक गोत्र स० क (ल्या) न तस्यात्मज. इम परमे इम क्षेत्र में जीवन भरने वाले कौन हैं स० वामुदव तम्यात्मज. इद विम्ब प्रगन्ति। इसका पता चलता है। इस स्थान को निर्माण करने (२) मिफ २ इच ऊची लेख नही, लांछन नही। वाले नथा कायम गबन वाले और सरक्षण सवर्धन का (३) बी पाश्र्वनाथ-ऊची ७ इच- मम्बत् १७५४ इनिहाम बनाने वाले दिगम्बर जैन ही है। इसी बात का
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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