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________________ प्रलोप पार्श्वनाथ-प्रासाद चाहिए। यह स्थान इमका अपवाद है। गुहा-चैत्य के , कमल, कमल, वरद, बिजौरा, कारण ही ऐसा हुमा जान पडता हैं। पुस्तक, कमल, वरद, बिजौरा, प्रस्तुत गुहा-चैत्य में स्थापित प्रतिमा दक्षिणाभिमुखी गदा, गदा, वरद, बीजपूरक, है शिल्पशास्त्र का नियम : कमल, पुस्तक, वग्द, बोजपूरक, प्रतिमा दक्षिणाभिमुखी है। जब कि शास्त्रीय नियम कम, वर, कमल, बिजौरा, यह है कि गरगेश, भैरव, चण्डी, नकुलीश, नवगृह और कमल, वर, कमल, बिजौरा, मातकामो की प्रतिमाएं ही दक्षिणाभिमूखी होनी चाहिए. १० सभा कुछ तथव जैन प्रतिमा भी इनका अपवाद नही है। अनेक जैन प्रवेशद्वार के बायी पोर में प्रतिमानो का संकेत :मन्दिर इस प्रकार के पाये गये हैं। १ ऊपर के दो करो में वृत्ताकार वस्तु, वरद, बिजौरा, मन्दिर का बाह्य भाग • कमल, वग्द, कमल, बीजपूरक, ३ मर्प, वग्द, सर्प बिजौरा, इसकी उदरम्य नसे स्पष्ट इसकी मयोजना देवकुलपाठक-देलवाडा के पुरातन दिखती हैं । राजमार्ग पर दागणचौतरे के समीप की ममतल भूमि पर ४ चक्र, वर, चक्र, बिजोग, की गई है। एक ही भित्ति दोनो को अलग करती है। ५ कमल, वर, कमल. बिजीरा, दुर्ग मदश म्थान मे दो वृत्ताकार वृजी मे मे एक का ६ नथैय चिहन प्राज भी विद्यमान है। असम्भव नहीं यहाँ मानसभ की स्थापना रही हो। मन्दिर का बाह्य भाग बहुत ८,९,१० मिट्टी जम जाने में अस्पष्ट कुछ अंशो में मूत्ति विहीन बना दिया है। सौदर्याभिव्यंजक इन मूत्तियों की पक्ति के ऊपर भी किंचित् विशाल ग्रामपट्टी के उपरान्त सर्वत्र देवीमनिया स्थापित है। प्रतिमाएं है, इनमें मे भी स्वल्प ही शेष रह सकी हैं :पत्थर की क्षरगणीलता के कारण पण्डी उतर जाने से बहुत सी प्रतिमानों के आयुध नष्ट हो गये है। प्रत्येक १ म्थान रिकन २ दाहिने ऊपर के हाथ में तू बी की वीणा, बाये में ताडप्रतिमा का स्वतन्त्र परिचय देने की अपेक्षा विहगालोकन पत्राकार पुस्तक, दाये मे दाहिने नीचे के हाथ में ही पर्याप्त होगा : माला और बायें मे कमण्डल, सरस्वती की यह सुन्दर प्रतिमानो का संकेत प्रवेशद्वार में दाहिनी योर मे प्रतिमा स्थान च्युत तो कर दी गई है, प्रारम्भ किया जाता है : - ३-४ विलुप्त १ चतुर्भुज, प्रायुधक्रम कमल, कमल, माला, बीजपूरक, ५ दक्षिणाभिमुख कोमा पर स्थापित प्रतिमा के दोनों २ , , कमल, गदा, वरद, विजोग ऊपर के हाथो में प्रद्धवनाकार संकल थामें है, शेष में ३ , , मर्प, वग्द, बीजपूरक । माला पौर कमाल है, मकर इसका उदर चामुण्डावत् । ६ रिक्त 1. भित्तिसंलगगबिम्ब उत्तमपुरिम सव्वहा प्रमुह ७ चक्र, खण्डित, चक्र, कमण्डलु, -ठक्कुर फैरु वत्थुसार पयरगण, पृष्ठ १२६ । ८ कम,वर, कमल. बिजौरा, 2. विधनेशो भैरवश्चण्डी नकुलीशो ग्रहास्तथा। रिक्न मातरो घनदश्चैव दक्षिणादिडमुखा: (१) ॥३६॥ १० का १० मई, वर, सपं अस्पष्ट, चरण के समीप मृग, 3. प्रसादमण्डन, अध्याय २ । प्रवेशद्वार के बाये भाग की प्रतिमाएं हम प्रकार हैं:
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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