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________________ अनेकान्त गत होता है, हर जैनेतर प्रासादों में कही.कही केवल के अध्ययन में कभी-कभी अनुभव के प्रभाव में ऐसी गग्गेशप्रतिमा ही स्थापित कर सन्तोष कर लिया जाता विषमतामो का सामना करना पड़ता है। है, उत्तरग के उभयपार्श्व में गवाक्ष आदि भी दृष्टिगोचर रूपशाखाम्रो का अकन बहुत ही सामान्य है, लला होते है, ऐसे अनेक द्वार इम क्षेत्र की विशिष्ट उपलब्धि बिम्बो में पार्श्वनाथ का रूप है। शृगार चौकी सामान है। लगभग यह अश ११ फुट लम्बा चौडा है, साल प्रामाद-द्वारपाला के ममीप ही दोनो मोर क्रमशः प्रस्तर मयोजना से विदित होता है कि वह जीर्णोद्धृत है मकरवाहिनी गगा और कच्छपवाहिनी यमुना की प्रतिमा शैल्पिक वैपम्य भी है। मध्य में जैन तीर्थकरो की मूर्तिय। स्थापित की जाती है। वावाटकवश के मन्दिरों में तो सश्रद्धालू विद्यमान हैं नत्य के अनेक प्रमगो का पालेखन प्राय. सर्वत्र इमका परिपालन किया गया है, कारण कि अाकर्षक है । कक्षासन लगभग सभी गिर चुके थे जिन्हें वाबाटक न केवल गंगाप्रेमी ही थे, अपितु, उनके शको श्री एलिगजी पुरातत्व संग्रहालय के लिए सुरक्षित करवा को परास्त कर गगाप्रदेश पर प्राधिपत्य स्थापित किया लिया है, इनमें त्रिमूर्तियो का मुन्दर अकन है। प्राग्था, हिन्दुकर्मकाण्डमूलक रचनामो मे द्वारपूजन के प्रमग मण्डप मे एक भव्यक कमलाकृति है जिसके अधो भाग में दक्षिणशाखा में गगा और वाम शाखा में यमुना को में यह लेख खुदा है:स्थापित करने का ममर्थन है । बिना किमी माम्प्रदायिक भेदभाव के कैलाशपुरी और नागदा के ममस्त मन्दिरी १ सिद्धी श्री सवत् १७२५ वर्षे में इसका अस्तित्व है। २ श्री मूलसंगे (घे) श्री पारस्व नागहद-नागदा के पार्श्वनाथ मंदिर का प्रवेशद्वार ३ नाथ चैत्यालय पण्डित थान ६ फुट ऊचा और ५ फुट १ इंच चौटा है, उदम्बर, शम्बा ४ सिंह कमल कीथा वटी मरवक्त्र, द्वारपाल, नत्यरता नारी प्रादि का पार. सभामण्डप म्परिक अंकन के साथ पाम्रनम्बमहिन देवी प्रतिमा है मण्डपो की परम्परा के बीज बैदिक यज्ञयाग के जिमकी बायी गोद में एक बालक है, यह अम्बिका की मण्डपो में सम्बद्ध है। कालान्तर में प्रावश्यकतानुसार प्रतिमा है। दाहिनी ओर इमी स्थान में गोमेद यक्ष है। परिवर्तन किये जा रहे । पौराणिक साहित्य और नाटको इराके बायें हाथ में वज्र तथा एक हाथ मे बिजोग एवम् में इमकी मामग्री मुरक्षित है, गुप्त युग में यह विकास शेष खण्डित है। की मीमा पर थी। मध्यकालिक शिल्पियो ने अनुकूल पार्श्वनाथ की अधिष्ठात तो पद्मावती देवी है और परिवर्तन कर माज-मज्जा में उल्लेखनीय अभिवृद्धि की अधिष्ठाता धरणेद्र । अम्बिका तो नेमिनाथ की अधिष्ठान है। शैल्पिक नियमो का परिपालन करते हुए मण्डपो मे है, मदिर पार्श्वनाथ का है, यह विषमता कमी महगा उन-उन सम्प्रदायों के पौराणिक प्रसगो का तक्षण होने प्रश्न उठना है। यहाँ स्पष्ट करना आवश्यक है कि मुनि- लगा था। वाद्ययत्रमाहित नत्यागनाए, विद्याधर गजताल विधान शास्त्री का यह नियम मर्वत्र परिपालित नहीं है पकण्ठ पादि स्थानो के मोदयं की प्रतिष्ठा कर धामिक कि जिम तीर्थकर का मन्दिर हो उमी के अधिष्ठाता यधि- भावो को उद्दीपित किया है। ष्ठान के बिम्ब द्वार के पास स्थापित करने चाहिए। पार्वनाथ मन्दिर मे मभा मण्डपो की लम्बाई अन्तप्राचीन अनेक कामदेव को प्रतिमाए मिली हैं जिनमे गल महित गभंगृहद्वार मे शृगार चौकी के प्रश को छोड चकेश्वरी के स्थान पर अम्बा ही मिलती है, अम्बिका कर २७ फूट है और चौडाई पूर्व में पश्चिम २३ फुट की विशिष्ट मान्यताप्रो के कारण ही ऐमा किया गया २ इच । १६ स्तम्भ मामान्य है। पाठ पर तो प्रश्वारूढा प्रतीत होता है । मुतिविधानमात्र के प्रकाग में प्रनिमामो महिलाए है । मभी के कर में चवर है। गतिमान प्रश्वो
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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