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________________ अनेकान्त जय जय बोले वाण बदे सहलोक, अपनो फरो थाप्यो फो। संघपति राम तिने उपदे से, कहे सु श्रावकाचार रे। अंगी परे उछव करे सह कोय, पीपल नार प्राव्य सुख होय ।। सहेट वंस सिरोमणि, सोहे जीवराज सुत सार रे। (३) स्तुति परक पद श्रीपाल विवध वंदर वाणी, सांभलता जयकार रे॥ श्रीपाल कवि ने कुछ पद भी लिखे है जो स्तुति परक समयहै तथा वर्णनात्मक हैं। पद बड़े हैं और विभिन्न राग- कवि ने अपने समय के बारे मे बहुत कम उल्लेख रागनियों में लिखे गये है इनमे नेमिनाथ गीत, प्रादीस्वरनु किया है। केवल ५ गीतों एवं प्रशस्तियों में विभिन्न घटगीत. बलभद्र की वीनती, विरहमान विनती प्रादि के नाम नामों के समय का संकेत किया है। इनमें सर्व प्रथम सं० विशेषत: उल्लेखनीय है। ये गीत एवं भाव, भाषा एवं १७०६ की घटना है जब भ. अभयचन्द्र सूरत नगर में शंली की दृष्टि से विशेष उच्चस्तर के नहीं है। पधारे थे और समाज ने उनका पूरे उत्साह से स्वागत श्रावकाचार प्रबन्ध किया था। संवत् १७२१ मे भ, शुभचन्द्र का एव सवत् यह कवि की सबसे बड़ी एवं मौलिक कृति है। इस १७३४ में भ. रत्नचन्द्र के महाभिषेक का भी संक्षिप्त कृति मे इसका दूसरा नाम उपासकाध्ययन भी दिया हुआ पाखों देखा हाल दिया है। सवत् १७४८ की जो एक है। ग्रन्थ की एक प्रति भद्रारकीय शास्त्र भण्डार डूगरपुर प्रशस्ति उपलब्ध हई है उसमे भ. रत्नचन्द्र के साथ साथ में संग्रहीत है। इसमे ६ अध्याय है। प्रथम अध्याय में अपने परिवार के भी पूरे नाम दिये है और अपने पुत्र एव सम्यक्त्व एव मिथ्यात्व का वर्णन है। दूसरे अध्याय में पुत्रियों की संख्या एवं उसके नाम भी दिये है इस प्रशस्ति सात तत्व, नव पदार्थ एव गुगणस्थान चर्चा है। तीसरे में से पता चलता है कि संवत् १७४८ में कवि अपने पूरे सम्यग्दर्शन के पाठ अगों का, सप्तव्यसनो तथा शिक्षाव्रत परिवार के साथ थे । उक्त कुछ लेखों से अनुमान लगाया एवं गुणवतों का वर्णन किया गया है। चौथे अध्याय में जा सकता है कि श्रीपाल ने १७वी शताब्दी के अन्तिम प्रतिमानो का वर्णन चलता है जो अन्तिम अध्याय (छठा) भाग मे जन्म लिया था और स. १७५० के करीब वे तक चलता है। बीच बीच में कथाए भी दी हुई है। जीवित रहे थे। इस प्रकार कवि १७-१८वी सदी के एक प्रबन्ध में चौपाई, दूहा, रागदेगारव, दूहाराग भैरव, अच्छे विद्वान थे। दूहाराग, प्रामाउरी, चाल बारामासनी, ढाल मुक्तावली, अब तक कवि की निम्न रचनार उपलब्ध हो चुकी गग मारू, केदारो, गौडी, मल्हार आदि रागो का प्रयोग है। ये सभी हिन्दी मे है और उनकी प्रतिया डूगरपुर एव किया गया है। इसकी रचना हूंबड वश में उत्पन्न होने रियमदेव के शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत है। इन कृतियो के वाले मधपति गम के प्राग्रह वश की गई थी। इसका नाम निम्न प्रकार हैरचनाकाल नही दिया गया है लेकिन एक प्रशस्ति म १. श्रावकाचार प्रबन्ध, २ शातिनाथना भवांतरनुगीत, भट्रारक शुभचन्द्र का उल्लेख किया गया है इसमें यह ३. पद. ४. बलिभद्र स्वामिना गीत, ५. अभयचन्द्र भट्टारक स्पष्ट है कि यह मंवत् ११२१ के पश्चात् लिखी गई थी। , स्वागन, ६. रत्नचन्द्र स्तवन, ७. गीत (श्री शुभचन्द्र कुल कृति के प्रारम्भ में लिखी हई एक प्रशस्ति पढिए-- वश दिवाकर), ८ रत्तचन्दना गीत, ६. सधपति वाघजी सरस्वती गच्छ सिरोमणी, कांइ बलात्कार गणबार रे। गीत, १०. मंधपनि हीर जी गीत, ११. श्रीपाल प्रशस्ति, अभयचन्द्र सूरी सरह हवा, कांद विद्या गुण दातार रे । १२.१४. मुनि शुभचन्द्र गीत, १५. शुभचन्द्र हमची, तस पद पंकज वसि कसं, कांइ श्री सुभान्द्र मुनीन्द्र रे। १६-१६. पद, २०. गुरूगीत (अभयचन्द्र स्तवन), २१. गच्छ नायक गणे पागलो, काइ सेवित मज्जन बन्द रे। गर्वावलि, २२. बलभदनी वीनती, २३. नेमिनाथ की एह गुरना पद अनुसरी, कहयो पंच मिथ्यात विचार रे। वीनती, - ४. विरहमान वीनती, २५. प्रादिनाथकी धमाल, सांभले समकति उपजे, होय निर्मल भवपार रे । २६. भरतेश्वग्नु नवविधाननु गीत, २७. नेमिनाथ गीत, हूबंड वंश बडी साखा रा, जीवा कुल शृंगार रे। २८. प्रादीश्वरन गीत, २६. गीत ।
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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