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कविवर पं० श्रीपाल-म्यतित्व एवं कृतित्व
रम्य रूप रंजित नर नायक, सज्जन जन सुखकारो॥३॥ प्रावो सची सह संगे सुन्दरी मिली। सरसती गछ श्रृंगार शिरोमणि, मलसंघ मनोहारी।। वांविर्य श्री शुभचन्द्र मननी रली ॥३॥ कुमदचन्द्र पर कमल दिवाकर, श्रीपाल तुम बलिहारी॥४
पच महावत पंच सुमति धारी। २)
प्रण्य गुपति गुरु अरेवि चारी॥२॥ धान प्रानंद मन प्रति घणो रा, कई वरतपो जय जयकार। सहस अष्टावस शील गण सागर । अभयचन्द्र मनि प्रावया रा, काई सूरत नयर मझार रे ॥१ पुण्य प्रतापे ए प्रगटयो प्रभाकर ॥३॥ घरे घरे उएव प्रति घणाए, काई माननी मगल गायरे । मूलसंघ मडण मनिवर महन्त । अग पूजा ने उवराणा रा, कांई कंकुम पगदे बडाय रे ॥२ सरसति गछ माहि गोर सोहंत ॥४॥ श्लोक वखाणो गोर सोभता रे, वाणी मोठी अपार सार रे। अभयचंद ने पारि प्रानंदकारी। धर्मकया ये माणीने मतिबोधे रा,
जतिवर जगमाहि जपो जे कारी॥५॥ कोई कुमतिनो करे परिहार रे ॥३
परमत वादीगज केसरी कहोर । सवत सतर छलोतरे, काई हरजी मेमजी नी दूंगी भास रे। मकल सिद्धान्त अंब उवधि-नहीए ॥६॥ रामजी ने श्रीपाल हरषी पाए,
मनमथ रूपे बुद्ध प्रभयकुमार । काई बेलजी कुंअरजी मोहनकामदे ॥४ शील सुदसण नित ममे श्रीपाल ॥७॥ गौतम समगोर सोभतारा, कांई बूषे जपो अभयकुमार रे। शुभचन्द्र के पश्चात् भ. गमचन्द्र भट्टारक गादी पर सकल कला गुण मडणोरा, काई देवजो कहे उदयो उदार रे॥ बैठे । कवि ने इनका समारोह देखा था। वे इनसे भी
उक्त दोनो पदों में भ अभयचन्द्र के विषय में कितने अत्यधिक प्रभावित थे । एक गीत में कवि ने उनके उनम तथ्यो का पता लगता है कि वे भ. कुमुदचन्द्र के शिष्य थे चरित्र की निम्न प्रकार प्रशमा की हैनथा अाकर्षक व्यक्तित्व वाले थे। मवत् १७०६ में वे प्रावो रे सखी चद्रवदन गुणमाल । जब एक बार मूरत नगर पधारे थे तो समाज ने उनका
मूरिवर रत्नचन्द्र को वधाम्रो मोतीपर भरे थाल ॥१ हार्दिक स्वागत किया था। सूरत नगर में उस समय हरि
शोल प्राभषण अंग मोहे सयम विवश प्रकार । जी, मेमजी, वेलजी, कुवर मोहनदास समाज के प्रतिष्ठित
अष्टाविंशति मलमुणोत्तम धर्म सदा वश धार ॥२॥ व्यक्ति थे । स्वय कवि भी इस स्वागत समारोह में मम्मि- परिसा सहे निज अंगे रगं, करे परिग्रह त्याग । लित हुअा था ।
श्रीपाल कहे यह पंचम काले, प्रगट करे शिव भाग ॥३ भ. शुभचन्द्र अपने समय के अच्छे विद्वान् थे : भ. मकल- भट्टारकों के अतिरिक्त मघपति वाघ जी एव सधपति कोति की परम्परा में होने वाले भ. विजयकीति के शिष्य हरिजी गीत भी लिखे है व भद्रारको के गीतो में प्रमुख भ. शुभचन्द्र से ये भिन्न है। प्रस्तुत शुभचन्द्र भ. अभयचन्द्र श्रावकों के नामो का उल्लेख किया है। के शिष्य थे । कवि इनकी विद्वता एव मिद्धान्त ज्ञान पर विशेष रूप से मूग्ध था। इनकी प्रशमा म भा कवि न ५ कवि ने एक बार सपरिवार मागीतंगी की यात्रा की गीत लिखे है। एक गीत मे संवत् १७२१ मे इनका भट्टारका
थी जिमका मक्षित वर्णन एक गीत में किया है। इम मघ पद पर अभिषेक होने का वर्णन भी दिया है
का नेतृत्व भ. रत्नचन्द्रने किया था मघ मूरतनगरसे रवाना संवत सतर एक्कीस रे, जेठ वदी पडवे चग।
हुप्रा था नथा बारडोली, बोडोड प्रादि होता हा मांगी जय जयकार करे नरनारी, ढाले कलश उत्तंग रे ॥१६॥
नगी पहुंचा था। वहा उमने कितने प्रकार के उन्मव भी धर्मभूषण सूरी मंत्रज प्राप्पा, थाप्या की शुभचन्द्र।
किये थे । अभयचन्द्र ने पारि विराजि, सेवे सज्जन वृन्द रे ॥२०॥ मागी तुंगी पूजी चालिए रे, वीन चौथे गणवान ।
शभचन्द्र के सम्बन्ध में ही एक प्रौर पद देखिये- गीत गाये वर कामिणी रे, जय जय बोले बाण ।